सती - शिव
(पौराणिक कथा पर आधारित, प्रत्येक पंक्ति में 22 मात्राएं)
शिव को योग्य अपने दक्ष न थे मानते,
ब्याल, भभूत से लिपटे गवार जानते,
सती - महेश्वर का परिणय न थे चाहते,
अपमानित करने का अवसर न चूकते ।
किंतु बसा शिव हृदय, बलिहारी थी सती,
मोहित बेसुध सदा इठलाती थी सती,
अपलक नयनों से छवि निरखती थी सती,
मिला पति महादेव प्रण कर खुश थी सती ।
दक्ष राजा ने यज्ञ का आयोजन किया,
न्योता सभी देवों, ऋषि, मुनियों को दिया,
प्रजापति, विष्णु को विशिष्ट सम्मान दिया,
पुत्री सती, दामाद शिव को न याद किया ।
सती को ज्ञात हुआ, हवन रखा पिता ने,
आग्रह किया पति से चलने का हवन में,
जग रीत बता कर समझाया शंकर ने,
’बिना बुलाए मान नही’, कहा नाथ ने ।
सती ने नाथ से प्यार से फिर हठ किया,
शिव तो अटल थे, सती को भी मना किया,
सती पर मानी नही, जिद कर ठान लिया,
पहुँची महल पिता के, घर निज मान लिया !
पहुँच कर हवन में सभी को प्रणाम किया,
तात से फिर जी भर सती ने गिला किया,
निमंत्रण न भेजने का उलाहना दिया,
हवन में शंभू को क्यों नही याद किया ?
महलों के अयोग्य दक्ष ने करार दिया,
अपशब्द कहे शंकर का अपमान किया,
भूतों का नाथ कह शिव तिरस्कार किया,
मूरत बना शिव की द्वार पर खड़ा किया ।
स्तब्ध सती देख कर नाथ का अपमान,
निज नाथ आए याद फिर दिया था ज्ञान,
न जाना बिन बुलाए मिलता नही मान,
बिखर गई टूट ! पराई हुई संतान ?
सह सकी सती नही भोले का अपमान,
प्रण किया त्याग दूंगी शरीर ससम्मान,
जाऊँगी वापिस, लेकर नही अपमान,
भरी सभा किया फिर अग्नि देव आह्वान ।
राख हुई जल सती छोड़ा यह संसार,
सुनकर घटना हुए, क्रुद्ध सती भरतार,
आ पँहुचे महेश फिर दक्ष के दरबार,
ताण्डव किया वहाँ, मच गई हा-हा-कार ।
नष्ट हुआ समूल, दक्ष को किया तमाम,
ऋषि, मुनि, देव गण करते सभी त्राहिमाम,
ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, सहमें सोच परिणाम,
अनुनय कर शांत किया, शिव पहुँचे स्वधाम ।
कवि कुलवंत सिंह
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
कवि कुलवंत जी ,
पौराणिक कथा को वर्तमान शब्दों में बहुत ही सरल रूप से प्रस्तुत करने के लिए बधाई , और भूली बिसरी कथा को फ़िर से याद दिलाने के लिए धन्यवाद
^^पूजा अनिल
शिव-शिवा की पौराणिक अमर कहानी
कवि कुलवंत जी की कविता में जानी
हार्दिक बधाईयाँ.. बहुत बहुत मेहरबानी
अच्छी लगी आपकी कविता
कवि जी,
आपने मात्रिक छंद लिखकर बहुत हीं साहस का काम किया है। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।
परंतु कुछ शिकायत है मेरी। तुकबंदी और भी सुधारी जा सकती थी। सही तुकबंदी न होने के कारण रचना कहीं-कहीं बचकानी-सी लगती है। कृप्या इस ओर भी ध्यान दें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत सुंदर कविता लिखी है कवि जी आपने
अच्छा
आलोक सिंह "साहिल"
शिव जी और सती जी की कथा बहुत सुन्दर शब्दो मे कही.
सुमित भारद्वाज
पौराणिक कथाओं को यूं पाठकों के सामने सरलता से प्रस्तुत करने के लिए अच्छा प्रयास है ..ये विचार भी बहुत अच्छा है कि हम इस बहाने पौराणिक कहानियो से परिचित हो जाते हैं ..
सुनीता यादव
कविता अच्छी लगी कुलवंत जी।
धन्यवाद।
आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद...
कुलवंत जी,
कविता तो अच्छी है ही, मात्रिक छंद में लिख कर हिन्द युग्म में आपने एक सकारात्मक पहल भी की है, बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
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