शव का ताप नापते- नापते
याद आ गया.............
जमीन पर खड़ा,
पसीने में भीगा,
काली हड्डियों के ढाँचे से ढका
पतला शरीर ...
मन किया ..
पारा की जगह रंग भरकर,
काले बादलों को झट मिटा कर,
उस अशरीर पर
इन्द्र धनुष के रंग उडेल दूँ ...
फ़िर
मिट जाते एक साथ
चक्र
सुख-दुःख का ,
पाश क्षुधा-तृप्ति का,
मुक्ति का ,
विष-अमृत का ,
अभिशाप-आशीर्वाद का ...
हर कोई अपने-अपने इलाके का जमींदार ....
उनकी हथेली के ताप के स्पर्श से
सिहरते-सिहरते ..
अचानक महसूस हुआ
अग्नि- सम अन्धकार में
हाड़- मांस-रक्त की ऊष्णता ...
मन चीत्कार कर उठा ..
क्यों ???
जिम्मेदारी ली है इन सब की ?
क्या दासी हो काल चक्र की ?
अरे....! बढ़ने दो जुलूस अशरीरों का ..
अशेष,अनजान सुख-दुःख का,
क्षुधा-तृष्णा का ,
मुक्ति का,
विष-अमृत का
हर कोई अपने -अपने इलाके का चौकीदार .....
अपेक्षित समय और कितना ...?
मुझे लगा .......
बीती रात का आलिंगन भूलने से पहले ,
सुबह काम पर चल पड़ने से पहले ,
सूर्यालोक में जीजीविषा के दहन से पहले ,
मन की विविधता व जीने की स्वाधीनता का
पन्द्रह अगस्त के बारे में पूछने से पहले
बता दूँ अशरीर मन को.....
चल ,चल पड़ते हैं ..अशरीर समय को हराने ,
सावन के झरने के जल में
बरखा की बूंद की तरह
दूर किसी झील में विलीन होने ....
घने अंधेरे में दिखता पहाड़ सदृश
बैठा मृत्युंजय जहाज चढ़ने ..
क्रेडिट कार्ड को दीर्घ चुम्बन देते-देते
खिल-खिलाकर हँसने
एक हो जाने .......
सुनीता यादव
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुनीता जी
अशरीर एक कविता मात्र नहीं है. यह शब्दों में खींचा हुआ मृत्यु का साक्षात् स्वरुप है. मैं इस पल अनुभव कर सकता हूँ की किस मनःस्थिति से गुजरते हुए आपने इन शब्दों को रचना का आकार दिया होगा..... 'अबोली' आपकी शिष्या थी उसका आपके प्रति लगाव ... आपकी अपने शिक्षक होने की वास्तविक गरिमा और दायित्व की परिपूर्णता का एक सहज बोध कराता है. सुनीता जी 'अबोली' का मात्र दैहिक अवसान ही हुआ है परन्तु वह कहीं भी नहीं गई है वह सदैव ही अमर रहेगी कालजयी बनकर आपकी रचनाओं में नए नए रूप लेकर हर बार जन्म लेती रहेगी और मैं जनता हूँ वह बड़ी होगी समय के साथ साथ तथा आपकी रचनाओं के माध्यम से वह समाज को रास्ता भी दिखायेगी.
अस्तु ..... इस पल हम ईश्वर से प्रार्थना करें उसकी आत्मा की शान्ति के लिए और उसके परिजनों को सहस प्रदान करने के लिए
मुझे अबोली के विषय मे नही पता था |
कान्त जी के टिप्पणी से ज्ञात हुया |
यदि यह श्रधान्जली है तो, मैं भी इश्वर से अबोली के लिए आपके साथ प्रार्थना कर रहा हूँ |
रचना वेदना पूर्ण है |
अवनीश तिवारी
सुनीता जी, आप की रचना यथार्थ एवम वेदनाओं से परिपूर्ण है आप की रचना से शिक्षक तथा विद्यार्थी के निर्मल प्रेम भाव प्रकट हो रहे हैं मेरी और से भी 'अबोली ' के लिए श्रधांजलि अर्पित है
सुनीता यादव जी,वेदना पूर्ण ये अंदाज पसंद आया.बधाई
आलोक सिंह "साहील"
मैं इस कविता को अबोली से नहीं जोड़ पाया। शायद घटना से अनभिज्ञ होने के कारण मैं अलग अर्थ में खो गया। आपकी पिछली कविता बहुत पसन्द आई थी। यह भी बहुत अच्छी लगी।
कुछ पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी
हर कोई अपने -अपने इलाके का चौकीदार
मन की विविधता व जीने की स्वाधीनता का
पन्द्रह अगस्त के बारे में पूछने से पहले
घने अंधेरे में दिखता पहाड़ सदृश
बैठा मृत्युंजय जहाज चढ़ने ..
क्रेडिट कार्ड को दीर्घ चुम्बन देते-देते
खिल-खिलाकर हँसने
सुनीता जी,
आपकी संवेदना को नमन।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत ही संवेदनशील रचना है ,
पूजा अनिल
सुनीता जी,
एक बेहद भावपूर्ण व संवेदन शील कविता..जिस पर टिप्पणी करने पर स्वंय को असमर्थ पा रहा हूं..शायद मन से निकले भावो के आगे कुछ नहीं..
वेदना पूर्ण कविता.
बेहतरीन कविता है
आज के समय अशरीर और शरीर के अन्तर को मिटाना ही सबसे बड़ी चुनौती है.....
पावस
डा. रमा द्विवेदीsaid....
आपके संवेदनपूर्ण हृदय को शत-शत नमन....
आपकी इसकविता ने बहुत उदास कर दिया. आपने बताया कि ये कविता आपकी छात्रा की असमय मृत्यु के समय आपकी श्रद्धंाजलि के रूप में लिखी गयी है. आपने तो दोहरा दुख सहा है, साक्षात मृत्यु कोदखना और उससे उपजी पीड़ा को शब्द दे पाना. दोनों ही कठिन कार्य हैं. इसके लिए हमारे कोई भी शब्द बेमानी होंगे. मैं खुद पिछले दिनों मौत से इतना नजदीकी साक्षत्कार करके आया हूं. जानता हूं इस राह से गुजरने की पीड़ा.
....
सूरज
सुनूता जी आपकी कविताओं में कुछ नई सोच होती है..
वेदना की जीवंत अभिव्यक्ति। मन का पीर शब्दों में साकार हुआ है।
एकदम ही भावुक विषय है एवं वैसा ही प्रभाव व्यक्त करने का प्रयाश किया है आपने जो वाकई मे पाठक के मन मे एक नई उमंग को संचारित करता है
पढ़ते - पढ़ते मन वेदना से भर गया |अब क्या कहे ?....कोई शब्द ही नही है ,शायद ऐसी रचना पढ़ कर अपनी ही कुछ यादे ताज़ा हो जाती है
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