नीम-शब हो, ईद हो और  तेरी दीद हो,
एक पल की जिंदगी का चाँद भी मुरीद हो ।
एक पल की जिंदगी का चाँद भी मुरीद हो ।
कुछ कहूँ तो बेहया, बेतकल्लुफ मैं बनूँ,
मेरे मुंसिफ हैं कई ,एक तुम नहीं वहीद हो।
तेरी बैठक में जो मेरे, नाम के चर्चे बड़े,
काश कि लहज़ा यही, तेरे लिए मुफीद हो।
तेरी बातें एका की, आगे मेरे नाफायदा,
जो ना तू मुझसे कहे,"यार खुश-आमदीद हो"।
ज़िंद पर, ज़ेहन पर मेरे सरहदें हज़ार हैं,
मैं आप हीं दोनों तरफ,किसलिए शहीद हो।
राम-रमज़ान , अली-दिवाली मेरे साथ हैं,
एक खुदा जब तलक, क्यूँकर नाउम्मीद हो।
ग़ालिब-ज़फर-जौक-मीर या हों बुल्लेशाह,
अमन के सुखनवर हीं,माह हो , खुर्शीद हो।
पोर-पोर बिक पड़े , ’तन्हा’ सरेआम हीं,
यारी उस उदू की याँ, जो पेश-ए-खरीद हो।
शब्दार्थ:
नीम-शब = आधी रात
मुंसिफ = निर्णयकर्ता
वहीद = एकमात्र, अद्वितीय
मुफीद =फायदेमंद
खुर्शीद = सूरज
उदू = दुश्मन
याँ= यहाँ
माह= चंद्रमा
खुश-आमदीद= स्वागत
-विश्व दीपक ’तन्हा’
 



 
 







आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है
मेरे लिए कुछ कठिन था | कई शब्द नए मिले विशेषकर उर्दू के |
रचना जम गयी है |
अवनीश तिवारी
hindi to hindi thi, urdu main to aapne kuch mast likh daala hai....
दीपक, बहोत बढिया ग़ज़ल लिखी आपने, उर्दू के शब्दार्थ भी दिए - धन्यवाद -
नीम-शब हो, ईद हो और तेरी दीद हो,
एक पल की जिंदगी का चाँद भी मुरीद हो ।
वाह ..- सुरिन्दर रत्ती
तेरी बैठक में जो मेरे, नाम के चर्चे बड़े,
काश कि लहज़ा यही, तेरे लिए मुफीद हो।
तेरी बातें एका की, आगे मेरे नाफायदा,
जो ना तू मुझसे कहे,"यार खुश-आमदीद हो"।
थोडी मुश्किल थी पर बहुत अच्छी लगी आपकी गजल दीपक जी बधाई :)
तन्हा भाई,बहुत खूब,मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहील"
नीम-शब हो, ईद हो और तेरी दीद हो,
एक पल की जिंदगी का चाँद भी मुरीद हो ।
ये पंक्तियाँ अपने आप में बहुत बड़ी हैं। ऐसा लिखना वाकई कमाल है। मुझे तुम्हारी 'शब जला है' याद आ गई।
पोर-पोर बिक पड़े , ’तन्हा’ सरेआम हीं,
यारी उस उदू की याँ, जो पेश-ए-खरीद हो
मियाँ, किसी किसी शे'र में तो ग़ालिब याद आ जाते हैं। पंख फैलाकर यूं ही उड़ते रहो। :)
उर्दू के शब्द कुछ कठिन लगे , पर धन्यवाद आपका जो आपने शब्दार्थ भी लिखे, बहुत खूब लिखा है तनहा जी , विशेषकर प्रथम और अन्तिम दो पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी , शुभकामनाएँ
पूजा अनिल
डा.रमा द्विवेदी said...
एक खूबसूरत ग़ज़ल के लिए साधुवाद..
तन्हा जी अच्छा लगा.. बहुत खूब.. बधाई..
पाठकॊं के उर्दू-शब्दकोश को समृद्ध करती रचना।
नीम-शब हो, ईद हो और तेरी दीद हो,
एक पल की जिंदगी का चाँद भी मुरीद हो ।
सुंदर भाव पर मात्राओं के हिसाब से थोड़ी दिक्कत है(हो सकता है मेरा अल्पज्ञान हो)।
उर्दू मे आपकी भाषा ऑउर भी सार्थक प्रतीत हो रही है ....
बहुत बढ़िया लिखा है
ज़िंद पर, ज़ेहन पर मेरे सरहदें हज़ार हैं,
मैं आप हीं दोनों तरफ,किसलिए शहीद हो।
बहुत भा गई यह पंक्तिया ,यह सरहदों की दीवारे शायद कभी अपनी सीमायो को त्याग सब एक हो जाए
ज़िंद पर, ज़ेहन पर मेरे सरहदें हज़ार हैं,
मैं आप हीं दोनों तरफ,किसलिए शहीद हो।
यह बात समझ आ जाए तो फ़िर सारे मसले ही हल हो जायें
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)