फटाफट (25 नई पोस्ट):

Sunday, August 02, 2009

बाज़ार मनुष्यता का सेन्सेक्स गिराना चाहता है, लेकिन॰॰


कहते हैं कि जिसके पास क़लम है, और जो ज़रूरत पड़ने पर उसे उठाता है, उसके अंदर का इंसान ज़िंदा है। आज जबकि बाज़ार मनुष्यता को भी एक उत्पाद बनाता जा रहा है, वैसे में एक क़लम ही है जो इसके सामने दीवार बनकर खड़ी है। हालाँकि बहुत से बुद्धिजीवियों का आरोप है कि बहुत से कलमकार भी जाने-अनजाने इस बाज़ार की चपेट में आ चुके हैं, वैसे में यह खोज पाना बहुत मुश्किल है कि कौन अदीब इस बाज़ार को तटस्थ होकर देख पा रहा है, कौन नहीं। हमारे अनुसार सुशील कुमार एक समर्थ कवि हैं, जिनकी कलम यूरो-डॉलर के मायाजाल के खिलाफ संघर्ष करती है।

बाज़ार और कविता

बाज़ार आदमी की
रोजमर्रा की जरूरतों से पैदा हुआ
और कविता उसके मन की
गहरी गुफाओं के एकांत में उठती
लहरों की उथल-पुथल से

पर इससे पेश्तर कि
आदमी बाज़ार की पैमाईश कर पाता,
बाज़ार आदमी का मोल-तोल कर
उसकी गठरी मार
उसके दायरे से लगातार छूटता हुआ
दहकते लावा की तरह
उसके चारो तरफ़ फैलता गया
और कविता के लिये
जगह-जगह ताबूतें रख
आदमी का आदमीनामा भी अपने
बाज़ार-भाव के हिसाब से
तय करता चला गया

हालाँकि
कविता और आदमी दोनो को
इस बात की अच्छी मालूमात है कि
बाज़ार पहले से और भी
अधिक शातिर और चौकन्ना हो चला है !

पर बाज़ार को भी इसका इल्म है कि
ऐसे समय में कविता और आदमी को
अपनी गिरफ़्त में लेने के लिये
कितनी तरकीब की जरूरत होगी !!

तभी तो वह घुसता है अब
आदमी की चेतना में हौले-हौले
संचार के नूतन
तरीकों-तकनीकों को अपनाकर
भाषा की नई ताबिश में

और उसका घुड़सवार बन
ऐसी चाबुक जड़ता है उसकी पीठ पर कि
आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाता हुआ
उसके ईशारे पर दौड़ पड़ता है

दरअसल बाज़ार की
अंदरूनी ख्वाहिश यह रही है कि
आदमी अपनी भावना,
अपनी अभिव्यक्ति को
उसकी दुकान की महरी बना दे
और अपना सेन्सेक्स इतना गिरा दें
कि लानतों से बनी सुविधाओं की
मंदी की मार जीवन-भर वह
हँस-ठठाकर झेलता रहे

वह उसके सोचने के तरीके उसके
हृदय की पुकार
उसकी निजी अंतरंगता को भी
बदल डालना चाहता है युरो में डॉलरों में

यह दीगर है कि
बाज़ार हल्ला बोलकर
कभी उसके पास आता नहीं
उसने कितने ही विदुषक मुहावरे
और कितनी ही लफ़्फ़ाजियाँ रच रखी हैं
आदमी को भुनाने के
जिसकी हरेक कहन में
हजारों नियामतें पाने का
झूठा फलसफा गुप्त होता हैं !

इसलिये आजकल ज्यादातर चुप रहकर
वह
एक ऐसी लिपि... ऐसी भाषा
के ईज़ाद में दिन-रात जुटा है
जो आदमी को फाँसकर उसे केवल
एक ग्राहक-आदमी बना दे, तभी तो

उसने उन कविताओं की
मियाद भी मुक़र्रर कर दी है
जो बाज़ार के बीजगणित से बाहर है
और आदमी को ऐसी कविताई से
दूर रहने की ताकीद भी की है

पर खुद उसके चौबारों घरों...
यहाँ तक कि बिस्तरों पर भी
टी. वी. स्क्रीनों के मार्फ़त
विज्ञापन की नई-नई चुहुलबाजियों के जरिये
काबिज हो चुका है


और हाँ, कविता के लिये
उसने चालाकी से
कवि-भेसधारी हिजड़ों की
ऐसी फ़ौज भी तैयार कर ली है
जो बाज़ार की बोली बोलती है
नये-नये विज्ञापन के रोज़ नये छंद रचती है
और मंचों पर गोष्ठियों में
अपनी वाहवाही लूटती है, लोगों की
तालियाँ बटोरती है

बाज़ार को क्या मालूम कि
कविता अनगिनत उन
आदिमजातों की नसों में
लहु बन कर
दौड़ रही हैं इस समय
जो बाज़ार के खौफ़नाक़ इरादों से बेज़ार होकर
अधजले शब्दों की ढेर से
अनाहत शब्द चुन रहे हैं
और उनसे भाषा की रात के खिलाफ़
अपने हृदय के पन्नों पर
अभी नई कवितायें बुन रहे हैं

बस, पौ फटने की देर है
कि आदमी बाज़ार की साजिशों के विरुद्ध
कबीर की तरह लकुटी लिये
इसी बाज़ार में आपको खड़े मिलेंगे जगह-जगह
जिनके पीछे कवियों का कारवाँ होगा।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Disha का कहना है कि -

सुन्दर रचना है .बधाई.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सुन्दर रचना आभार्

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सुन्दर रचना आभार्

Manju Gupta का कहना है कि -

अंतिम चार पंक्तियों ने कविता में जान डाल दी है .आभार .

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

सुशील जी,

बाज़ार के आदमी पर हावी होने को लिखा गया एक एक शब्द अपने तरीके का सच बोल रहा है, यह ज्यादा लोगों को पसंद नही आने वाला।

लोग या तो अब फॉस्ट फूड/जंक फूड या बस दो मिनिट रेसिपि वाले हो गये है उन्हें प्यार भी बस दो मिनिट में चाहिये; या समझते हैं कविता किसी जिंगल को गुनगुनाने भर को कहते हैं। इस दौर में यह कविता लम्बी, नीरस, उबाऊ और ना जाने क्या-क्या प्रतीत होगी और ऐसा लोग कहेंगे भी।

कविता कान में पड़ने वाले गर्म सरसों के तैल सी होना चाहिये जो कुनकुनी भी लगे और गमकती भी रहे, महसूस होती रहे जितनी भी अंदर जाये।

आपके विचार क्रांतिकारी है और रचना नायाब है।

आपके रचनाधर्म को प्रणाम, और शैलेश जी को आपको हिन्द-युग्म पर लाने के लिये साधुवाद।

अपने कबीर की प्रतीक्षा में

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Sushil Kumar का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Sushil Kumar का कहना है कि -

मुकेश कुमार तिवारी जी, आप जैसे कविता -पाठकों की अब कमी हो गयी है। आभार। ऐसे भी कवि यहीं कहीं पर कहीं न कहीं मिल जायेंगे जिनकी किसी कविता के लिये एक सौ छतीस टिप्पणियां भी मिलती है। अत: नेट पर टिप्पणियों का खेल बड़ा निराला है। मैने लिखा था कि इतनी तो त्रिलोचन बाबा को नहीं मिली होगी तो बहुत गाली दिया लोगों ने मेरी दकियानुसी सोच पर,अब क्या करें? अपने हृदय को पूरा करने के लिये लिखता हूं बस।

manu का कहना है कि -

136 WAALI KAVITAA SE TO KHAIR ACHCHHAA LEKH HAI YE...

:)

इति शर्मा का कहना है कि -

"बाज़ार को क्या मालूम कि
कविता अनगिनत उन
आदिमजातों की नसों में
लहु बन कर
दौड़ रही हैं इस समय
जो बाज़ार के खौफ़नाक़ इरादों से बेज़ार होकर
अधजले शब्दों की ढेर से
अनाहत शब्द चुन रहे हैं
और उनसे भाषा की रात के खिलाफ़
अपने हृदय के पन्नों पर
अभी नई कवितायें बुन रहे हैं"
bahut prerna hai in shabdo me, mujh jaise navagantuk ke liye

सदा का कहना है कि -

बाज़ार को क्या मालूम कि
कविता अनगिनत उन
आदिमजातों की नसों में
लहु बन कर
दौड़ रही हैं इस समय

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां, बधाई ।

सुरेश यादव का कहना है कि -

प्रिय,सुशिल कुमार जी,हिंद युग्म पर आप की कविता पढ़ी .बाज़ार और कविता का सम्बन्ध कभी नहीं रहा इसी लिए कविता मूल्यों से जुडी रह सकी.आप ने कविभेष धारीहिजडों की बात अपनी कविता में कहकर सच्छी कह दी है.बाज़ार का रास्ता यहीं से जाता है,बधाई

BrijmohanShrivastava का कहना है कि -

आदमीनामा भी बाज़ार भावः से प्रभावित |सही है बाज़ार कवि और कविता से ज्यादा चौकन्ना हो गया है बाज़ार ली जो ख्वाहिश आपने लिखी है नितांत सत्य है

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बस, पौ फटने की देर है
कि आदमी बाज़ार की साजिशों के विरुद्ध
कबीर की तरह लकुटी लिये
इसी बाज़ार में आपको खड़े मिलेंगे जगह-जगह
जिनके पीछे कवियों का कारवाँ होगा

कविता अच्छी थी लेकिन काफी लम्बी थी.

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी कविता बहुत बहुत बधाई
विमल कुमार हेडा

raybanoutlet001 का कहना है कि -

christian louboutin outlet
michael kors handbags
air max 90
cheap basketball shoes
michael kors handbags wholesale
michael kors outlet online
cheap oakley sunglasses
michael kors outlet
michael kors handbags sale
michael kors handbags

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)