प्रतियोगिता की तीसरी कविता के कवि अखिलेश कुमार श्रीवास्तव पहली बार हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। पेशे से इंजीनियर हैं। वर्तमान में जुबीलेंट ऑरगेनोसिस लिमिटेड, गजरौला (जेपी नगर) में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। हिन्द-युग्म की एक ख़ासियत यह भी रही है कि इसके अधिकांश लेखक गैरपेशेवर हैं। 14 फरवरी 1980 को गोरखपुर में जन्मे अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थान हरकोट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्ट्टीयूट से केमिकल इंजीनियरिंग में बी॰टेक किया है। अब तक इनका रचनाकर्म स्वांत-सुखाय ही रहा है। कवि का मानना है कि ये यथार्थ और संवेदना के कवि हैं।
पुरस्कृत कविता- मैं हिंदी का लेखक हूँ
मैं हिंदी का लेखक हूँ
मेरी उपलब्धि यह है कि
तमाम मुद्रा स्फीति बढ़ने के बावजूद
मेरे घर के कन्स्तर में आटा
पेंदी से इक बित्ता ऊपर रहता हैं
तमाम सम्मानों के बावजूद
मेरे पुस्तैनी मकान की कुर्की नहीं हुई है
अपने माँ के ट्यूमर के इलाज में
मैं उसे होमियोपैथी की मीठी गोलियाँ
तब तक खिलाता रहा
जब तक वो मर नहीं गयी
मेरे पिता के कफ़न का कपड़ा
उनके जीवन भर पहने कुरते के कपड़े से अच्छा था
वो भी बिना किसी बाहरी रिश्तेदार की मदद के
अगर कंगन और मंगल सूत्र की बात छोड़ दे
तो मैं अपने बीबी के किसी तीसरे गहने को
साहूकार के यहाँ नहीं बेचा
मैं सरस्वती का पुत्र हूँ पर
अपने बेटे को अंग्रेजी स्कूल में
नहीं पढ़ाना चाहता क्योकि
फीस में देर-सवेर होने पर वो
फीस पर लगान वसूलने लगते हैं
शाम होते-होते मेरे पीठ और पेट
एक हो जाते हैं
मैं इसे योग का चमत्कार बता
अपना और भारतीय संस्कृति दोनों का
उद्धार केर लेता हूँ
त्रिलोचन यूँ ही नहीं कहते थे
हिंदी में लेखक होना
बिना घोषणा किये तप करना है
प्रथम चरण मिला स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- तीसरा
पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
23 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही सुन्दर मगर मार्मिक अभ्व्यक्ति है अखिलेश कुमार जी को बहुत बहुत बहुत बधाई
lajawab kavita hai. jitni tareef ki jae kam hai.
मैं हिंदी का लेखक हूँ
मेरी उपलब्धि यह है कि
तमाम मुद्रा स्फीति बढ़ने के बावजूद
मेरे घर के कन्स्तर में आटा
पेंदी से इक बित्ता ऊपर रहता हैं
तमाम सम्मानों के बावजूद
मेरे पुस्तैनी मकान की कुर्की नहीं हुई है
मैं उसे होमियोपैथी की मीठी गोलियाँ
तब तक खिलाता रहा
जब तक वो मर नहीं गयी
मेरे पिता के कफ़न का कपड़ा
उनके जीवन भर पहने कुरते के कपड़े से अच्छा था
वो भी बिना किसी बाहरी रिश्तेदार की मदद के
हिन्दी-लेखक की वेदना का सही चित्र
बधाई अखिलेश जी
Aachhi kawita. wedna ka bahut marmik prastutti.
वाकई आप यथार्थ और संवेदना के कवी है.....बहुत अच्छी तरह यथार्थ को उतरा,बहुत-बहुत बधाई..
सौंदर्य पक्ष कमज़ोर होने के बावजूद बहुत मज़बूत कविता . इस की मजबूती है इस का नाटकीय पक्ष और पाठक को बांधे रखने की गहरी क्षमता .
बाते तो सारी ही अच्छी कही हैं आपने
पर इसमें "कविता' कहाँ है
अरुण 'अद्भुत'
अपने माँ के ट्यूमर के इलाज में
मैं उसे होमियोपैथी की मीठी गोलियाँ
तब तक खिलाता रहा
जब तक वो मर नहीं गय
behad marmik kvita
अपने माँ के ट्यूमर के इलाज में
मैं उसे होमियोपैथी की मीठी गोलियाँ
तब तक खिलाता रहा
जब तक वो मर नहीं गय
behad marmik kvita
Garibi ko darshati samvedensheel marmik kavita hai.Jan kavi Trilochan ji ko yaad kara diya.
बहुत बधाई
Manju Gupta
हिन्दी के कवि की सटीक अभिव्यक्ति. आशा है हिन्दी के प्रबुद्धजन इसा पर गौर करेंगे.
अखिलेश जी की कविता बेहद मार्मिक है | सच्चे लेखक के दर्द को शब्दों में ढाल दिया है अखिलेशजी ने |
एक लाईन बेहद हिला गयी,,,
अगर कंगन और मंगल सूत्र की बात छोड़ दें तो मैंने अपनी बीवी के किसी तीसरे गहने को साहूकार के यहाँ नहीं बेचा है,,,,,
मार्मिक
हिंदी में लेखक होना
बिना घोषणा किये तप करना है
क्या हूँ बहुत ही सुंदर कविता .पूरी कविता की एक एक लाइन सुंदर है
रचना
अखिलेशजी,
अच्छी रचना हेतु बधाई |
कविता तो मनोभावों की अभिव्यक्ति मात्र है
सच तो यह है कि................
ना तो यह व्यवसाय है कोई ना ही कोई धंधा
इसके चक्कर में है होता आँखों वाला अँधा
यश की भूख में गिरता जाता
उसका धंधा सिमटता जाता
परन्तु...............................................
ना तो इससे भरे कनस्तर, ना घर में हो आटा
हिन्दी कवि बनने के भ्रम में मुफलिसी का लगता चाटा
इसलिए .............................................
कविता रचो खूब रचो रचते रहो
लेकिन अपने व्यवसाय से समझौता करके नहीं |
अखिलेश जी,
अब स्थितियाँ बदली हैं। अब तो मैं जितने भी हिन्दी लेखकों को जानता हूँ, उनकी हालत बहुत ठीक है। अब यदि आप लेखक होना मतलब केवल लेखक होने की बात कर रहे हों तो अलग बात है।
आप सब का धन्यवाद .
निराला से लेकर अमरकांत तक की बात कहने की कोशिश की है.
सिर्फ लेखक होकर कितने लोग अपनी आजीविका चला पाए है.
त्रिलोचन ने स्वीकार किया था
की
जिस कवी की छह कविता संग्रह छपे हो वो छह दिन खाना करिध कर नहीं खा सकता.
हिंदी प्रकाशन गृहों को धन्यबाद
Akhilesh Srivastava
मैं भारतवासी जी से सहमत हूँ
हिंदी कवि से प्रश्न : अरे भाई क्या काम करते हो ?
कवि : कविता लिखता हूँ !
प्रश्न : ये कोई काम है क्या? कविता लिखना तो पूजा है ! कृपया अपने व्यवसाय के बारे में बताएँ ?
कवि : आपने तो मेरी ऑंखें खोल दीं ! काश ! यदि मैं किसी व्यवसाय में होता तो आज मेरे ही साथ ये मुफलिसी क्यों होती ?
behtreen rachna hai ....aaj hindi ki jo durdasha hai ......sath hi sath use jude lgon ki .aapne unke dard ko achhi abhivyakti di hai ......badhai
Beautiful words, real picture of a writer in todays society. Congrats once again for such a nice creation.
Jolly Uncle
www.jollyuncle.com
लेखक की गरीबी पर अद्भुत अभिव्यक्ति .
क्या लेखक और कवि को एक माना जाये या
कवि के हालात अलग हैं ?
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार्
मुझे टिप्पणी देने में देर होने का खेद है!....लेकिन यही कहना चाहूंगी कि हिन्दी लेखन को आप हिन्दी भाषा के प्रति का सन्मान समझ्कर या ' हॉबी' समझ्कर अपना रहे है, तब तक ठीक है!... अन्यथा जब तक सरकार की तरफ से हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक यह हिन्दी के लेखक को दो जून की रोटी नसीब नहीं करवा सकती!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)