प्रश्नों के कटघरे में,
हर उंगलियाँ स्त्री पर थीं....
महारथियों के आगे
दुर्योधन,
और दुर्योधन के साथ कर्ण और पांडव भी !
मन खून से सराबोर,
दिमाग में शून्यता.......
एक स्त्री,
जब कटघरे में होती है
तो प्रश्न और तथाकथित न्याय
उसीके संग होते हैं !
पर एक स्त्री,
जब माँ होती है,
साथ में होती है उसकी निष्ठा ,
तब बच्चे सुदर्शन चक्र बन जाते हैं,
उनकी जीत,
माँ के हर अध्याय पर,
पवित्र शंखनाद करते हैं,
उठी हुई उंगलियाँ,
प्रार्थना में करबद्ध हो जाते हैं,
सुरक्षा कवच बन ये बच्चे
माँ की पूरी ज़िन्दगी बदल देते हैं.........
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी रचना .
माँ होना और साथ में पूरी तरह निष्ठावान होना "सुदर्शन चक्र" का कारण है. माँ का दिया कवच ही बच्चो में सुरक्षा की भावना लाता है और बच्चे "सुरक्षा कवच" बन हर मुसीबत में माँ के आगे खड़े हो जाते है ...!
आपके शब्द जादुई चिराग जैसे है .....!
एक स्त्री,
जब माँ होती है,
साथ में होती है उसकी निष्ठा ,
तब बच्चे सुदर्शन चक्र बन जाते हैं,
Maa ki nistha veja ja bhi kaise sakti hai bhala, Sundar rachna.
MAA KE BAARE ME JITNI BHI LIKHI YA KAHI JAAYE WO BAAT HAMESHA KAM HI RAH JAATI HAI ,AAPNE JIS BHAV SE MAA KE BAARE ME KAHI HAI BAAT WO KABILE TAARIF HAI .... BAHOT BAHOT BADHAAYEEYAAN....
ARSH
sahi maa ke liye suraksha kavach hi hote hain bachchey .... koi maa ko kuch bol ke to dekhe .....bhagwaan se bhi lad jate hain bachchey
और दुर्योधन के साथ कर्ण और पांडव भी !
मन खून से सराबोर,
दिमाग में शून्यता..
bhut highra chintan pandavo ko bhi akhi ktar me khda kar achi vyakhya.
badhai
बात सही है की बच्चे, माँ के लिए सुदर्शन कवच बन जाते है..पर एक स्त्री जब बेटी होती है वो एक चिंता बीना का जीवन जीती है..और जब वो पत्नी बनती है तो कहेने के लिए वो अर्धांगिनी होती है जबकि उसका चलता कुछ नहीं है..जो पति चाहता है वो ही होता है...उसके ऊपर वो अपनी जिन्दगी अपनी तरह जी नहीं सकती..और जब माँ बन जाती है तब बच्चे उसके लिए सब कुछ हों जाते है...फिर उसे और ज्यादा सहेना पड़ता है..क्योकि सब को होता है की बच्चो की वजह से ना वो घर छोड़ के जायेगी ना दुनिया छोड़कर..इसलिए उनकी जोहुकुमी ज्यादा चलती है..तो कभी कभी लगता है की बच्चे सुदर्शन कवच जब बनते है तब तक माँ के अन्दर जीने की ताकात ही नहीं बचती ..तब तक वो पूरी तरह से टूट चुकी होती है..ख़तम हों चुकी होती है..
सुरक्षा कवच बन ये बच्चे
माँ की पूरी ज़िन्दगी बदल देते हैं.........
Narie ki sampurnata ma bnne mai hai.सुरक्षा कवच. ..hi mano jievit kavita hai.Bhavmaie bhasha ka peryog huaa hai.
Badhai.
Manju Gupta
रश्मि जी,
शुरू में कुछ आम सा लगा,,,
पर फ़ौरन ही कविता का रुख पलटा ,,
और एक सुखद सा अनुभव हुआ,,,,
( आपका लिखा अक्सर सकारात्मक ही होता है,,)
माँ के पँख होते हैं बच्चे जिन पर सवार हो कर वो आसमान छू लेती है उनके साये मे उसे सकून मिलता है बहुत ही भावमय कविता है आभार और बधाई
रश्मि जी शायद इसी लिए हर स्त्री माँ बनना चाहती है क्यों की बच्चे उस के लिए नया आकाश ढूंढते हैं
सुंदर रचना
सादर
रचना
kavita kam, bayaan adhik prateet hui.
रश्मि प्रभा जी ने सती की सार्थकता को सिद्ध कर दिया है अपनी काव्य रचना और ईश्वरीय रचना( बच्चे ) के माध्यम से |
रश्मिप्रभा जी,
कविता, विभिन्न परिस्थितियों में स्त्री की भूमिका और दायित्व निर्वाह करने की दक्षता / क्षमता को पूरी तरह से उभार के सामने लाती है। महाभारत कालीन पात्र उसे प्रतिबिम्बित भी खूब करते हैं।
बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक स्त्री,
जब कटघरे में होती है
तो प्रश्न और तथाकथित न्याय
उसीके संग होते हैं !
पर एक स्त्री,
जब माँ होती है,
साथ में होती है उसकी निष्ठा ,
तब बच्चे सुदर्शन चक्र बन जाते हैं,
उनकी जीत,
माँ के हर अध्याय पर,
पवित्र शंखनाद करते हैं,
उठी हुई उंगलियाँ,
प्रार्थना में करबद्ध हो जाते हैं,
सुरक्षा कवच बन ये बच्चे
माँ की पूरी ज़िन्दगी बदल देते हैं.........
रश्मि जी पछ्तावा हो रहा है, इतनी सुन्दर रचना को पढने मे दो दिन विलंब हो गया. इतनी सुन्दर रचना देने के लिये आभार.
कुछ व्याकरण की गलतियाँ दिख रही हैं (सम्भव है मैं गलत हूँ)
'हर उंगलियाँ स्त्री पर थीं' की जगह 'सारी या सभी उंगलियाँ स्त्री पर थीं' या 'हर उंगली स्त्री पर थी' होना चाहिए।
उठी हुई उंगलियाँ,
प्रार्थना में करबद्ध हो जाते हैं
उठी हुईं उंगलियाँ, (उंगली स्त्रीवाचक संज्ञा है)
प्रार्थना में करबद्ध हो जाती हैं
अभिनव रचना.
प्रश्नों के कटघरे में,
हर उंगलियाँ स्त्री पर थीं....
महारथियों के आगे
bahut sundar rachna hai.
बहुत अच्छी कविता |
एक स्त्री,
जब कटघरे में होती है
तो प्रश्न और तथाकथित न्याय
उसीके संग होते हैं !
पर एक स्त्री,
जब माँ होती है,
साथ में होती है उसकी निष्ठा ,
तब बच्चे सुदर्शन चक्र बन जाते हैं,
मैं शैलेश भारतवासी जी से सहमत हूँ |
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)