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Monday, June 08, 2009

इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो


यूनिकवि प्रतियोगिता से पिछली कविता एक केमिकल इंजीनियर की थी और आज हम जिस कविता का जिक्र कर रहे हैं वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की है। इस कविता के रचनाकार आलोक उपाध्याय 'नज़र इलाहाबादी' की एक कविता अप्रैल माह की प्रतियोगिता में भी शीर्ष 10 में स्थान बना चुकी है। इस बार इनकी कविता चौथे पायदान पर है।

पुरस्कृत कविता- मेरा आशियाँ ले चलो

सारी भागदौड़ सारी झपकियाँ ले चलो
अपने शहर में मेरा आशियाँ ले चलो
हमेशा भूख ही ने ज़बान खोली है
कब कहा सितारों के दरमियाँ ले चलो

उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो

वो अक्सर हमारे घर में चीज़ें भूलते है
लौटानी है उनको,सब आंधियाँ ले चलो
आज गर्म है तवे उनके, मुद्दत के बाद
जो सेंकनी हो तुमको वो रोटियाँ ले चलो

सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो

उठा के फेंक देंगे ये मकां शहर वाले
नए शहर के लिए ये बस्तियां ले चलो
तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो


प्रथम चरण मिला स्थान- अठारहवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा


पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

वो अक्सर हमारे घर में चीज़ें भूलते है
लौटानी है उनको,सब आंधियाँ ले चलो
आज गर्म है तवे उनके, मुद्दत के बाद
जो सेंकनी हो तुमको वो रोटियाँ ले चलो
आलोकजी ! गहरा असर डालती है आपकी कविता

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

बहुत मज़ा आया पढ़ कर .. हर पंक्ति...लाजबाब है..

"तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो "

बधाई

सादर
शैलेश

निर्मला कपिला का कहना है कि -

उठा के फेंक देंगे ये मकां शहर वाले
नए शहर के लिए ये बस्तियां ले चलो
तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो
बहुत सुन्दर और दिल को छूने वाली पंम्क्तियाँ है बहुत बहुत बधाई

निर्झर'नीर का कहना है कि -

kavita har roop se poorn hai
yakinan kabil-e daad

mohammad ahsan का कहना है कि -

uchch koti ki kavita. qaabil e tareef; achchhi lay, achchhe bhaav, achchhi rawaani.
in lines ka arth samajh nahi aaya.
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

उस पार तो हर चीज़ कीमती

है इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो

हर बार ही हमको बेरंग समझा गया

बाँध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो ......वाह !

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो

Manju Gupta का कहना है कि -

सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो
yatharthvadi kavita ne dil ko lajavab ker diya.
vaha aam ki gutaliya!!!!!!!!!!
Manju Gupta

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अच्छी कविता

Shamikh Faraz का कहना है कि -

उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो

जितनी तारीफ कि जाये कम है.

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

इस नाचीज़ को इतनी बधाई और इतना हौसला देने का बहुत बहुत शुक्रिया ............
आलोक उपाध्याय

अनुपम अग्रवाल का कहना है कि -

तेरी गज़ल की दरिया में गये डूब
पार दरिया के गलबहियाँ ले चलो

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो

अच्छी कविता |

सदा का कहना है कि -

उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो

बहुत ही सुन्‍दर ।

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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