यूनिकवि प्रतियोगिता से पिछली कविता एक केमिकल इंजीनियर की थी और आज हम जिस कविता का जिक्र कर रहे हैं वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की है। इस कविता के रचनाकार आलोक उपाध्याय 'नज़र इलाहाबादी' की एक कविता अप्रैल माह की प्रतियोगिता में भी शीर्ष 10 में स्थान बना चुकी है। इस बार इनकी कविता चौथे पायदान पर है।
पुरस्कृत कविता- मेरा आशियाँ ले चलो
सारी भागदौड़ सारी झपकियाँ ले चलो
अपने शहर में मेरा आशियाँ ले चलो
हमेशा भूख ही ने ज़बान खोली है
कब कहा सितारों के दरमियाँ ले चलो
उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो
वो अक्सर हमारे घर में चीज़ें भूलते है
लौटानी है उनको,सब आंधियाँ ले चलो
आज गर्म है तवे उनके, मुद्दत के बाद
जो सेंकनी हो तुमको वो रोटियाँ ले चलो
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो
उठा के फेंक देंगे ये मकां शहर वाले
नए शहर के लिए ये बस्तियां ले चलो
तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो
प्रथम चरण मिला स्थान- अठारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा
पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
वो अक्सर हमारे घर में चीज़ें भूलते है
लौटानी है उनको,सब आंधियाँ ले चलो
आज गर्म है तवे उनके, मुद्दत के बाद
जो सेंकनी हो तुमको वो रोटियाँ ले चलो
आलोकजी ! गहरा असर डालती है आपकी कविता
बहुत मज़ा आया पढ़ कर .. हर पंक्ति...लाजबाब है..
"तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो "
बधाई
सादर
शैलेश
उठा के फेंक देंगे ये मकां शहर वाले
नए शहर के लिए ये बस्तियां ले चलो
तुझे खुद को सौंप डाला बेखुदी से पहले
अब नशे में हैं हमें चाहे जहाँ ले चलो
बहुत सुन्दर और दिल को छूने वाली पंम्क्तियाँ है बहुत बहुत बधाई
kavita har roop se poorn hai
yakinan kabil-e daad
uchch koti ki kavita. qaabil e tareef; achchhi lay, achchhe bhaav, achchhi rawaani.
in lines ka arth samajh nahi aaya.
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
उस पार तो हर चीज़ कीमती
है इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बाँध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो ......वाह !
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो
yatharthvadi kavita ne dil ko lajavab ker diya.
vaha aam ki gutaliya!!!!!!!!!!
Manju Gupta
अच्छी कविता
उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो
जितनी तारीफ कि जाये कम है.
इस नाचीज़ को इतनी बधाई और इतना हौसला देने का बहुत बहुत शुक्रिया ............
आलोक उपाध्याय
तेरी गज़ल की दरिया में गये डूब
पार दरिया के गलबहियाँ ले चलो
सच बोलने की बदसुलूकी हमसे है हुई
तुम बेफ़िक्र हो कर ये कारवां ले चलो
वजूद रहे न निशां कोई बाकी रहे मेरा
मेरे छत पर बेमौसम बदलियाँ ले चलो
अच्छी कविता |
उस पार तो हर चीज़ कीमती है
इस बार आम की गुठलियाँ ले चलो
हर बार ही हमको बेरंग समझा गया
बांध कर मुठ्ठी कुछ तितलियाँ ले चलो
बहुत ही सुन्दर ।
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