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Tuesday, August 04, 2009

शीशम, अब नही पैदा होता


कत्थाई-काली
लकड़ियों को मैंने देखा है
हर उस इमारत में
जिनके हौंसलें आसमानी बुलंद थे
और अपना एक जंगल था
शीशम के पेड़ों वाला
दरवाजों से लगाकर श्रृंगार-दान तक सब
मज़बूत / सख्त

जबसे,
जंगलों में उगने लगी हैं कांक्रीट
और जानवर शहरों में रहने लगे हैं
शीशम,
नही पैदा होता है जंगलों में
शायद वो आग ही रही नही
ना ही धरती में वो दम बचा है

शीशम,
अब पाया जाता है घरों में
निशानियों की तरह ड्राईंगरूम में सजे हुये
या कबाड़ में बदले हुये
किसी टाँड़ पर या सीढियों के नीचे
जैसा भी है साबुत, कसा हुआ या टूटा
उतना ही मज़बूत है अब भी
आज इंसान खोखले होने लगे हैं
--------------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०४-जुलाई-२००९ / समय : दोपहर ०१:१२ / जी-२७ (नये घर में)

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

ओम आर्य का कहना है कि -

वाह बहुत ही सुन्दर रचना......जिसकी जितनी तारीफ की जाये उतना ही कम है ......आज जिस रफ्तार मे लकडियाँ काटी जा रही है ......

और कोंक्रिट की जाल जैसे फैलाया जा रहा है ........इसमे धरती ही खोखली नही हो रही है बल्कि इंसान सबसे पहले खोखला हो चुका है ......इस हकिकत को आपने बहुत ही सुन्दर भाव और शब्द दिया है .

आभार
ओम आर्य

Anonymous का कहना है कि -

हिन्दी युग्म ऐसी बहुरुपिया संस्था जो नए नए लोगों को लुभाकर अपना बिजनेश चलाती है, फिर जब लोग पहचान जाते है तो खुद ही चले जाते है.जो इसके पुराने पाधक है वे बोले सही है की नहीं. पैसा कमाने का नया तरीका, भाषा से खेलो लोगो को छालो..,,,,,,..
देखना है कितने दिन तक,,, अंत होगा,,,,, अगर नहीं सुधारे तो बुरा अंत होगा,,,हा हा हा हा

बिना अनुभवी संपादन के कैसे साहित्य छाप रहा है,,,, कल के बच्चे ब्लॉग को पुस्तक बना रहे हे,,, हा हा हा हा

सादर
सुमित दिल्ली

Manju Gupta का कहना है कि -

आज के मानव को चेतावनी अच्छा व्यंग्य है. साल की लकड़ी जंगल नष्ट हो जाने से देखने को भी नहीं मिलती है ,आभार .

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, आभार्

manu का कहना है कि -

शीशम के बारे में जो भी कहा गया है..
वो मन को छू गया है...
पुरानी-धुरानी चीजों को आज भी अहतियात से रखा जाता है...

"शीशम का है...६५ साल हो गए ....
आज कहीं से लाके दिखा दो न....? "
हजारों बार सुना है ये जुमला....


हाँ जी एनी माउस जी.....
कमेन्ट के नीचे सादर लिखने की का जरूरत थी....?
सादर वहां लिखा जाता है जहां कुछ सादर लिखा गया हो...कुछ तमीज जैसी चीज का इस्तेमाल किया गया हो..
पहले किसी अनुभवी संपादक से अपना कमेन्ट ठीक कराइए...
बहुत गलतियां हैं....

फादर
मनु.....

स्वप्न मञ्जूषा का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
अमिता का कहना है कि -

सही कहा आपने शीशम अब घर में फर्नीचर के रूप में ही नजर आता है

जबसे,
जंगलों में उगने लगी हैं कांक्रीट
और जानवर शहरों में रहने लगे हैं
शीशम,
नही पैदा होता है जंगलों में
यही कारण है ग्लोबल वार्मिंग का.

अमिता

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

मितव्ययी शब्दों के साथ, अपना सन्देश पूरी तरह संप्रेषित करती कविता | बधाई,
सादर,

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही खूबसूरत

जबसे,
जंगलों में उगने लगी हैं कांक्रीट
और जानवर शहरों में रहने लगे हैं
शीशम,
नही पैदा होता है जंगलों में
शायद वो आग ही रही नही
ना ही धरती में वो दम बचा है

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