1
कतार में खड़े लोग खा रहे हैं
पत्तलों में पूरियाँ,
पत्तल पत्तल पर लिखा है
खाने वाले का नाम।
बनाने वाले का नाम
कहीं नहीं।
2
हरिद्वार से लौटती रेलगाड़ी में
चन्द अधेड़ औरतें
रोती हुई सी गाने लगती हैं
मारवाड़ी में भजन।
उनकी आँखों में छिपे बैठे हैं
किशोरावस्था में छूटे कुछ साधारण से लड़के,
वे लड़के
जो अब करते होंगे कहीं मास्टरी
या होंगे डाकबाबू
या पटवारी
या स्टेशन मास्टर
या कौन जाने,
जा रहे हों बेटी के लिए लड़का देखने,
यहीं किसी डिब्बे में खेल रहे हों ताश
या सामने प्लेटफ़ॉर्म पर ओक से जो पी रहा है पानी,
कौन जाने,
चुंदड़ी लेकर रोते हुए भागा हुआ चन्दर ही हो।
ना भी हो क्या पता!
3
जो आदमी ढो रहे हैं आदमियों को रिक्शे पर,
जो आदमी कर रहे हैं आदमियों के घरों में चौकीदारी,
जो आदमी मुस्कुरा कर परोस रहे हैं आदमियों को खाना,
जो आदमी भेंट कर रहे हैं आदमियों को अपनी सुन्दर औरतें,
पसीने की भूलभुलैया में
जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप,
उन सबके गुस्से को गलाकर
बनाया जाए एक वज्र
और ध्यान रहे,
इस बार डार्विन से न पूछा जाए
कि कौन रहेगा जीवित।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
16 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहोत ही सुन्दर लिखा है आपने कल मैं आपके ब्लॉग पे था और यहाँ से बहोत सारी जानकारियां मिली मुझे ग़ज़ल लेखन के लिए इसलिए लिए आपका आभार हूँ ..
अर्श
Feelings of say to day things of life in very graceful manner leaving impact on mind
जो आदमी ढो रहे हैं आदमियों को रिक्शे पर,
जो आदमी कर रहे हैं आदमियों के घरों में चौकीदारी,
जो आदमी मुस्कुरा कर परोस रहे हैं आदमियों को खाना,
जो आदमी भेंट कर रहे हैं आदमियों को अपनी सुन्दर औरतें,
पसीने की भूलभुलैया में
जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप,
उन सबके गुस्से को गलाकर
बनाया जाए एक वज्र
और ध्यान रहे,
इस बार डार्विन से न पूछा जाए
कि कौन रहेगा जीवित।
sundar panktiyaan.
guptasandhya.blogspot.com
काफी समय बाद आपकी रचना पढने को मिली
तीनो बहुत अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
भाई गौरव वाह! बहुत खूब लिखा है.
पसीने की भूलभुलैया में
जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप,
उन सबके गुस्से को गलाकर
बनाया जाए एक वज्र
और ध्यान रहे,
इस बार डार्विन से न पूछा जाए
कि कौन रहेगा जीवित।
हरिद्वार से लौटती रेलगाड़ी में
चन्द अधेड़ औरतें
रोती हुई सी गाने लगती हैं
मारवाड़ी में भजन।
उनकी आँखों में छिपे बैठे हैं
किशोरावस्था में छूटे कुछ साधारण से लड़के,
वे लड़के
जो अब करते होंगे कहीं मास्टरी
या होंगे डाकबाबू
क्या मार्मिक दृश्य खींचा है तुमने. बहुत गहरा, बहुत दर्द भरा.
स्नेह
मनुज मेहता
gaurav ji ,bhaai ki ko kal aap ke
blog par jaane ko kaha thaa ,wo newyork se apni bhaartiytaa ki asambhav sa taalmel bithaane ki kosish kar rahen hain .ek saptaah me hi india ko itna miss kar rahen hain ,humne unse aapko,mera matlab aapki kavitaayen padhne ki sifaarish ki ,aaj jab aapki kavitaa dekhi to bada sukhad aascharya hua hai .behtareen hai
हिंदी युग्म हमेशा से ही मेरा एक पसंदीदा ब्लॉग रहा है ..
आज मौका मिला कुछ पढने का साड़ी रचनाये काफी अच्छी है
आप सभी लेखों से आग्रह है की इसी तरह लिखते रहे ..हम साहित्य प्रेमियों को जीने के लिए ये सब चीज़ें बहुत जरुरी है
इतनी अच्छी रचनाये हम तक पहुंचेने के लिए हिंदी युग्म को एक बार फिर धय्न्वाद
क्या संजीव और मार्मिक चित्रण खीचा है आपने | बधाई
किशोरावस्था में छूटे कुछ साधारण से लड़के,
वे लड़के
जो अब करते होंगे कहीं मास्टरी
या होंगे डाकबाबू
या पटवारी
या स्टेशन मास्टर
या कौन जाने,
जा रहे हों बेटी के लिए लड़का देखने,
यहीं किसी डिब्बे में खेल रहे हों ताश
या सामने प्लेटफ़ॉर्म पर ओक से जो पी रहा है पानी,
कौन जाने,
चुंदड़ी लेकर रोते हुए भागा हुआ चन्दर ही हो।
ना भी हो क्या पता!
कविता पढ़ते पढ़ते एक दृश्य सा सामने आगया इतनी सुन्दरता से लिखा है .
सादर
रचना
कतार में खड़े लोग खा रहे हैं
पत्तलों में पूरियाँ,
पत्तल पत्तल पर लिखा है
खाने वाले का नाम।
बनाने वाले का नाम
कहीं नहीं।
बहुत पसंद आई आपकी रचना...
गौरव,,,
पर इतने दिनों के इंतज़ार के बाद...ऐसी रचनाये रोज़ पढने का अवसर दे..
achchi hai hamesha ki tarah.
ab to shardiyan aa gayi hai
raat bhi kafi badi hone lagi,
mera kaam kar do kabhi.
nahi to mujhe khud karna padega
पसीने की भूलभुलैया में
जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप,
these two lines are good, rest are just so so without deeper emotions delicately or artistically expressed. that darwin reference is simply hackneyed.
mohammad ahsan
"जिन आदमियों का छूटा हुआ है बहुत सारा विलाप" की कविता क्रमांक 2 और कविता क्रमांक 3 बहुत अच्छी कविताएँ हैं, गौरव सोलंकी की मेरी ओर से बधाई।
हेमेन्द्र कुमार राय
WOW! ARE BADE BHAI KITNA TADPAYA AAPNE.KHAIR,der aaye durust to aaye.
jabardast rachna.
ALOK SINGH "SAHIL"
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आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)