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Sunday, November 02, 2008

सब रसूलों में बहुत तकरार है


किस के दिल में दर्द कितना है निहाँ
दे सके तो दे कोई ये इम्तिहाँ

हम मसीहा हो गए सब नातवाँ
मिट गए हैं तेरे क़दमों के निशाँ

ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ

सब रसूलों में बहुत तकरार है,
टूट जाएगा किसी दिन ये मकाँ

नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ

बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ

मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ

(अर्थ - निहाँ = छुपा हुआ, नातवाँ = कमज़ोर, ज़लज़ला = भूकंप, इन्तिहा = हद, रवाँ = प्रवाहित, रसूल = अवतार पैगम्बर, यक-ब-यक = अचानक, बर्क़ = बिजली, कहकशाँ = आकाश में सितारों भरा रास्ता, तामीर = निर्माण, रंजीदा- नाराज़).

- प्रेमचंद सहजवाला

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

manvinder bhimber का कहना है कि -

नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ

bahut khoobsurat

"अर्श" का कहना है कि -

बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ

बहोत खूब लिखा है आपने सुंदर बधाई आपको ...

अर्श

Anonymous का कहना है कि -

खूबसूरत ग़ज़ल है. पसंद आई
मुहम्मद अहसन

Straight Bend का कहना है कि -

नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ

daanish का कहना है कि -

"kiske dil meiN drd kitna hai nihaaN..." waah ! matlaa khud.b.khud ghazal ke lehje aur fitrat ki nishaaNdehi kar rahaa hai.. aur "zalzlon ki ho gaii hai.." aur "sb rasooloN meiN bahot takraar hai.." in ash`aar ke hawaale se ishaaratan aapne bahot kuchh keh diya hai,, sanjeeda fikr aur nafees tarz.e.adaa ki misaal hai aapki ye ghazal.. mubarakbaad qubool farmaaeiN.

SURINDER RATTI का कहना है कि -

प्रेमजी बधाई
ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ
बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ
ये शेर बहुत पसंद आए - सुरिन्दर रत्ती

neelam का कहना है कि -

मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ
isse badhiyaa kuch bhi nahi .

Anonymous का कहना है कि -

किस के दिल में दर्द कितना है निहाँ
दे सके तो दे कोई ये इम्तिहाँ
नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ

दोनों शेर बहुत ही लाजवाब हैं याद रहेंगे सदा
सादर
रचना

Anonymous का कहना है कि -

i think what Muflis has written can be endorsed by me also. it is extremely difficult to find fault with this ghazal.
mohammad ahsan

Unknown का कहना है कि -

ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ

गज़ल अच्छी लगी
काफी समय बाद आपकी गज़ल पढने को मिली

सुमित भारद्वाज

सीमा सचदेव का कहना है कि -

मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ
बहुत गहरे अर्थ समाए है आपके हर शेयर में | बधाई

anu का कहना है कि -

नमस्कार अंकल जी :)... आपकी ग़ज़ल पढ़ी, अच्छी हैं,

सब रसूलों में बहुत तकरार है,
टूट जाएगा किसी दिन ये मकाँ

मुझे ये शेर ख़ास पसंद आया .. आप यू ही हमें सिखाते रहे, :)

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