किस के दिल में दर्द कितना है निहाँ
दे सके तो दे कोई ये इम्तिहाँ
हम मसीहा हो गए सब नातवाँ
मिट गए हैं तेरे क़दमों के निशाँ
ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ
सब रसूलों में बहुत तकरार है,
टूट जाएगा किसी दिन ये मकाँ
नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ
बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ
मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ
(अर्थ - निहाँ = छुपा हुआ, नातवाँ = कमज़ोर, ज़लज़ला = भूकंप, इन्तिहा = हद, रवाँ = प्रवाहित, रसूल = अवतार पैगम्बर, यक-ब-यक = अचानक, बर्क़ = बिजली, कहकशाँ = आकाश में सितारों भरा रास्ता, तामीर = निर्माण, रंजीदा- नाराज़).
- प्रेमचंद सहजवाला
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ
bahut khoobsurat
बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ
बहोत खूब लिखा है आपने सुंदर बधाई आपको ...
अर्श
खूबसूरत ग़ज़ल है. पसंद आई
मुहम्मद अहसन
नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ
"kiske dil meiN drd kitna hai nihaaN..." waah ! matlaa khud.b.khud ghazal ke lehje aur fitrat ki nishaaNdehi kar rahaa hai.. aur "zalzlon ki ho gaii hai.." aur "sb rasooloN meiN bahot takraar hai.." in ash`aar ke hawaale se ishaaratan aapne bahot kuchh keh diya hai,, sanjeeda fikr aur nafees tarz.e.adaa ki misaal hai aapki ye ghazal.. mubarakbaad qubool farmaaeiN.
प्रेमजी बधाई
ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ
बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ
ये शेर बहुत पसंद आए - सुरिन्दर रत्ती
मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ
isse badhiyaa kuch bhi nahi .
किस के दिल में दर्द कितना है निहाँ
दे सके तो दे कोई ये इम्तिहाँ
नज्र मेरी क्या हुआ ये यक-ब-यक
बर्क़ सी दिखने लगी है कहकशाँ
दोनों शेर बहुत ही लाजवाब हैं याद रहेंगे सदा
सादर
रचना
i think what Muflis has written can be endorsed by me also. it is extremely difficult to find fault with this ghazal.
mohammad ahsan
ज़लज़लों की हो गई है इन्तिहा
ये हवा किस तर्फ होगी अब रवाँ
गज़ल अच्छी लगी
काफी समय बाद आपकी गज़ल पढने को मिली
सुमित भारद्वाज
मुझ पे रंजीदा हुआ भगवान क्यों
पूछता है अपने रब से मुस्लिमाँ
बहुत गहरे अर्थ समाए है आपके हर शेयर में | बधाई
नमस्कार अंकल जी :)... आपकी ग़ज़ल पढ़ी, अच्छी हैं,
सब रसूलों में बहुत तकरार है,
टूट जाएगा किसी दिन ये मकाँ
मुझे ये शेर ख़ास पसंद आया .. आप यू ही हमें सिखाते रहे, :)
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