सन्नाटा है...................
कमरे में ही नहीं,
दिल-दिमाग में भी ...
हर चेहरा ताज - सा दिखता है,
रुतबे में भी,
आतंक में भी !
किसे दोष दूँ?
तत्कालीन व्यवस्था,
या फैशनपरस्ती को ,
या फिर घर की चारदीवारों से निकले क़दमों को !
...........
मुझे बेचारगी से मत देखो,
कुछ कहो,
कुछ भी-
सन्नाटे को तोड़ो !
शब्द नहीं,
तो रो ही लो-
पर,
इस सन्नाटे को तोड़ो !!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या बात कही है आपने ?कविता खुद सन्नाटे को तोड़ती हुई दिख रही है ,हम शब्दों के साथ साथ उनके बयान का भी असर देख रहे हैं
भावपूर्ण उम्दा रचना गहरी सोच से लबरेज
शब्द नहीं, तो रो ही लो-
पर, इस सन्नाटे को तोड़ो !!!
आपके शब्द जादुई होते है, कुछ कर - गुजरने की चाह, एक् नया जोश पैदा कर देते है ... Ilu ..!
उच्च कोटि की कविता- छोटी, मधुर, विचारशील,
-अहसन
sannate ko todo.......
kavita pida aur dahsath ko darshati hai.
"Ro hi lo" pankti kavita ki jan ban gayi hai aur hal bhi.
bhadhaiyan .........
Manju Gupta.
Bahut sunder! kuch sannata aapne toda aur kuch padhne walo ne .... ab tuta hain to kolahal to hoga hi :-)
sannaton ko todti kavita.........sach.
Sundar aur vicharshil rachna
शानदार अभिव्यक्ति......
शब्दों से अहसास करवाती हुई .......
सन्नाटा कितना खतरनाक .भयावह..होता है..
शब्द नहीं,
तो रो ही लो-
पर,
इस सन्नाटे को तोड़ो !!!
शानदार अभिव्यक्ति .......... मेरा एक जूनियर अक्सर मुझसे कहता था "सर, चुप रहने से अच्छा तो गाली ही दे दो.......... सच है की हम सन्नाटे से डरते हैं मेरा एक शेर है :
"सिर्फ और सिर्फ खामोशी तो नहीं
जिन्दगी मौत से बुरी तो नहीं"
पर सन्नाटे को तोड़ते तोड़ते हम कोलाहल में कब प्रवेश कर जाते हैं पता ही नहीं चलता एक शायर ने क्या खूब कहा है :
"ऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहे
या फिर ऐसी बात करें जो खामोशी से अच्छी हो
सादर
अरुण अद्भुत
शब्द नहीं,
तो रो ही लो-
पर,
इस सन्नाटे को तोड़ो !!!
bahut sundar panktiyaan..
रश्मिप्रभा जी,
संवेदना, भावनाओं से भरी हुई कविता के लिये बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत-बहुत शुक्रिया...........
सन्नाटा सच में बहुत खलता है उस को तोड़ने के लिए कुछ भी करो चाहे तो चिल्ला ही लो
सुंदर रचना
रचना
HI
HOW ARE YOU?
I AM NEW READER OF THHIS WEBSITE AND I LIKE IT VERY MUCH.
REGARDING YOUR POEM IT HAS VERY DEEP MEANING BUT DON'T YOU THINK YOU CAN USE SOME MORE FLOWFUL SIMPLE WORDS IN IT BECAUSE IN TODAY'S ERA HINDI USERS ARE LESS THAN OTHER LANGUAGE SPEAKERS.
Here are my few lines for you.May be according to grammar these are not apppropriate but it's my hobby to write.Actually I have no experience of writing but I use to write poems , stories and other vidha's to make myself happy.
................................हाथ नहीं आती...........................................
क्यों ज़मीं पर रहने वालों को जन्नत हाथ नहीं आती,
क्यों खुदा के नेक बन्दों को दूसरो की ज़िन्दगी रास नहीं आती,
हमारे साथ तो हमेशा रहती है,
लेकिन ये parchhayian हाथ नहीं आती,
हम सभी किन्ही जज्बातों से जुड़े हैं,
ऐसे ही सभी रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं,
हाथ की लकीरें तो हम देख सकते हैं ,
तो फिर यह भाग्य की रेखाएं हाथ क्यों नहीं आती,
वो शक्स उन्हें लाख चाहता रहा,
उनके लिए अक्सर आहें भरता रहा,
वो उसे देखती रही लेकिन,
उसकी मोहब्बत कभी उसे मिली नहीं,
तन तो जलते हैं जून की गर्मी में,
मगर रूह कभी निकलती नहीं,
वो उसे जाने क्यों गैर समझते हैं,
और अपनों में कभी शामिल नहीं करते,
वो उनसे दूर होकर मरने चला है "उड़ता"
मगर मौत हैं की उसके हाथ आती नहीं.
khoobsurat kavita
रश्मि जी,
बहुत प्यारी लगी ये रचना आपकी,,,,
सच में बड़े तरीके से कहती हैं अपनी बात,,,,
कम से कम शब्दों में आपकी रचना छू जाती है मन को,,,
मुझे बेचारगी से मत देखो,
कुछ कहो,
कुछ भी-
सन्नाटे को तोड़ो !
शब्द नहीं,
तो रो ही लो-
पर,
इस सन्नाटे को तोड़ो !!!
क्या बात है रश्मिप्रभा जी,
निःसन्देह आपने सन्नाटे को पढकर उसकी
संवेदना को अपनी भावनाओं से भरकर सुन्दर अभिव्यक्ति दी है. कविता के लिये बधाई।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)