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Monday, September 29, 2008

कोलाज


उसने नहीं बनाया
एक भी नफीस चित्र

अपनी पूरी जिन्दगी में
मुक्कम्मल किया है
सिर्फ एक कोलाज

अपनी काग़ज़ की नाव
फाड़ कर बनाई है नदी
पतंग फाड़ कर बनाया है आकाश

प्रेमिका के पत्र फाड़ कर बनाए है
बिना फूलों वाले पेड़

पिता की झुर्रियाँ ले कर बनाई है
घर की दीवारें
अपने सिर के तमाम बाल नोच कर
बनाई है उस घर की छत

और उस घर के बाहर एक
एक बहुत बडा कूड़ेदान बनाया है
नफीस चित्र बानाने की
विधियाँ बताने वाली किताब को फाड़ कर

उसने नहीं बनाया
एक भी नफीस चित्र
अपनी पूरी जिन्दगी में
मुक्कम्मल किया है
सिर्फ एक कोलाज!

रचनाकाल 1990

--अवनीश गौतम

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Nikhil का कहना है कि -

"उसने मां से कुछ भी उधार नहीं लिया,
इसीलिए बना नहीं सका एक नफीस चित्र,
सिर्फ़ एक कोलाज...."
ये रचनाकाल डालने का क्या तात्पर्य है...

निखिल

शोभा का कहना है कि -

उसने नहीं बनाया
एक भी नफीस चित्र
अपनी पूरी जिन्दगी में
मुक्कम्मल किया है
सिर्फ एक कोलाज!
अवनीश जी,
बहुत सुंदर लिख है.

Anonymous का कहना है कि -

अलग से भाव,है ,वो सुंदर चित्र तो नही बना पाया पर आप ने सुंदर कविता लिख डाली
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

क्या बात है...

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

बहुत बढ़िया, जो कुछ लिखा है उससे परे असरदार रचना |
विनय

Harihar का कहना है कि -

भई वाह! क्या गजब की बात कही है अवनीश जी !

Straight Bend का कहना है कि -

Its a very deep thought and a very beautiful analogy. Different, practical, and so close to life. Congrats. Expression of thoughts in words could have been better.

विश्व दीपक का कहना है कि -

उम्दा रचना
बधाई स्वीकारें।

दीपाली का कहना है कि -

सुंदर रचना

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

ओह! क्या बात है! :)

Avanish Gautam का कहना है कि -

निखिल भाई आप लोगों से इस बच्चे को मिलवाना था तो सोचा इसकी उम्र भी बता दी जाए. :)

Sajeev का कहना है कि -

वाह शीर्षक पढ़ कर ही लगा की ये अवनीश भाई की कविता होगी, पढने का बाद जाने क्यों लगा की ये तो मेरी ही कहानी है, देर तक कोलाज जेहन में बैठा रहा .....अपने आप से सवाल पूछता रहा मैं

Rakesh Kumar Singh का कहना है कि -

हमेशा की तरह बेहद सुंदर. रचनाकाल से पता चलता है कि बच्चा बच्‍चा था ही नहीं :)

Anonymous का कहना है कि -

मुझे याद है,फरवरी में वर्ल्ड बुक फेयर में मुझे बेनाम की कविता दिखाई गई,दरअसल वो कविता नही बल्कि कविता के बीच की कुछ पंक्तियाँ थी,मैं पकड़ नहीं पाया,अब्दाजे में मैंने कई सारे लोगों के नाम प्रेदिक्त कर डाले.बाद में मुझे बताया गया कि आप कच्ची लेखनी और पक्की लेखनी में अन्तर नहीं कर पाए.वो,कविता आप ही की थी.
पर,आज,कोई गलती नही की,बहुत ही उम्दा रचना.सर जी,तो क्या हुआ कि उस कमबख्त ने पूरी जिंदगी एक कोलाज को तैयार करने में ही बीता दी,पर अगर वो कोलाज ऐसा हो तो किसी भी तरह की,ग्लानि कि गुन्जाईश नही रह जाती.
अति सुंदर,बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"

Nikhil का कहना है कि -

हा हा हा...
मुझे बच्चे बहुत पसंद लगते हैं,,,,,,

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