आओ फिर सादे कागज़ पर चांद लिखें,
आओ फिर आकाश उड़ा दें कागज़ को,
शाम हुई है, चांद को उगना होता है....
वो होंगे और जो दूरी पे रोया करते है,
हम तो थामते हैं तेरे लब अक्सर,
देखो फिर बज उठा मोबाईल मेरा...
रिश्तों की एक पुड़िया मेरे पास है
चाहो तो चख लो,रख लो या फेंको तुम
तुमको कैसा स्वाद लगा, बतलाओ तो
आसमां आज बहुत सफे़द-सा है,
इक कफ़न-सा शहर पे पसरा है
शहर की मौत पे अब जा के यकीं आया है....
मैं मुगालते मे ही रहा हूं, कई बरसों तक
कि जिंदा लाशें भी चलती हैं ज़मीं पर अक्सर,
आज आंखों से कुछ रिसा है तो यक़ीन हुआ
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
--निखिल आनंद गिरि
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
itani hasrat hi nahi ki pooja jaaun-----bahit hi badia dil ko chune vale bhav hain bdhai
मैं मुगालते मे ही रहा हूं, कई बरसों तक
कि जिंदा लाशें भी चलती हैं ज़मीं पर अक्सर,
आज आंखों से कुछ रिसा है तो यक़ीन हुआ
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
dil se nikle sachche udgaar ,bahut badhiya ,nikhil ji
आसमां आज बहुत सफे़द-सा है,
इक कफ़न-सा शहर पे पसरा है
शहर की मौत पे अब जा के यकीं आया है....
वाह,क्या खूब कहा..
आलोक सिंह "साहिल"
तारीफ़ के लिए शब्दों की कमी जान पड़ती है ...बहुत ही मनभावन ...
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आसमां आज बहुत सफे़द-सा है,
इक कफ़न-सा शहर पे पसरा है
शहर की मौत पे अब जा के यकीं आया है....
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
निखिल जी,
इतनी प्यारी कविता पढने के बाद आप जब भी मिलेंगे, हम यह अवश्य कहेंगे कि ....."जानती हूँ इसे " :)
बहुत अच्छे भाव लिये , आपकी और आपके शहर की कहानी कहती यह कविता बड़ी अच्छी लगी.
बधाई.
पूजा अनिल
गजब भाई... गजब...
आपकी पिछली कविता पर किसी ने कहा था कि कहाँ से लाते हो इतनी उपमायें... आज मैं वही सवाल दोहरा रहा हूँ... :-)
अब कहने को कुछ नहीं है... सारी त्रिवेणियाँ जबर्दस्त हैं... एक मेरी तरफ से भी...
वैसे त्रिवेणी छंदमुक्त होती हैं...
मुझे त्रिवेणी पसंद है..
पर क्या ये कविता होती है?
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
आसमां आज बहुत सफे़द-सा है,
इक कफ़न-सा शहर पे पसरा है
शहर की मौत पे अब जा के यकीं आया है....
मैं मुगालते मे ही रहा हूं, कई बरसों तक
कि जिंदा लाशें भी चलती हैं ज़मीं पर अक्सर,
आज आंखों से कुछ रिसा है तो यक़ीन हुआ
शुक्रिया....
पूजा जी, जल्दी मिलिए और कहिए कि जानती हैं मुझे...
पहली पंक्ति पढ़ते ही मैं नीचे गया और नाम पढ़ा .. और जो शक था सही निकला ..चाँद वान्द को बार बार चार चाँद लगाने मैं आप माहिर हैं ...
कविता ने जरुर अपना कम कर दिया है और अगर नहीं भी किया होगा तो कर देगी (समझ रहे हैं ना )... बहुत अच्छी रचना
सादर
दिव्य प्रकाश
उफ़........क्या लिखा है..........
अलग अंदाज की लिखी, खूबसूरत कविता
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
क्या बात है बहुत नही बहुत बहुत बहुत सुंदर
सादर
रचना
कहीं ख़याल में रह रह के कसमसाती है.....
ख़मोश नज़्म मेरी शाम की कहानी है.....
मैं जानता हूँ .....जानता हूँ......जानता हूँ..इसे.............
रिश्ते चख या न चख ,...निभा लेकिन........
निखिल भाई आपको लास्ट टाइम भी कहा था के ...कविता के नीचे अपना नाम देने की कोई ख़ास जरूरत नही है आपको.......
कभी तीन में लिखा नही है मैंने...........कोशिश की.......और ये एक और ...चौथी लाइन भी जुड़ गयी...........
सही ग़लत देख ले.........
इतनी हसरत ही नहीं कि कभी पूजा जाऊं,
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
बढिया कविता निखिल भाई
सुमित भारद्वाज
चाँद की बात पढते ही लगा कि आपने लिखा होगा
एक उम्मीद भर है कि कभी भूले से,
तुमको मिल जाऊं तो कह दो कि "जानती हूं इसे...."
दो पंक्तियों मैं पूरी कविता का अर्थ बखूबी प्रकट हुआ है..
अद्भुत रचना !!!
बधाई निखिल जी
बेहद खूबसूरत कविता .....
बहुत ही बढ़िया लगी आपकी यह रचना निखिल
"वो होंगे और जो दूरी पे रोया करते है,
हम तो थामते हैं तेरे लब अक्सर,
देखो फिर बज उठा मोबाईल मेरा..."
मैने इन पंक्तियों को पढ़ा, देर तक सोचता रहा. मैं तो अक्सर मोबाईल पर किसी की आवाज सुन उसे बहुत दूर महसूस करने लगता हूं. मेरे भीतर का सदैव जाग्रत मन यह याद दिलाता रहता है बार-बार कि यह दूरी का अस्वीकार नहीं, स्वीकार है.
sabhi triveniyan acchi lagi, khaaskar last wali aur rishte ki pudiya bahut pyaari lagi
शानदार
शानदार
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)