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लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है
कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
खुद को खानाखराब रखता है
आग आँखों में और मुट्ठी में
वो सदा इन्किलाब रखता है
जो है देखें जमाने की सीरत
खुद को वो कामयाब रखता है
उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुटठी में माहताब रखता है
बाट खुशियों की जोहता है तू
दिल में क्यों फिर अजाब रखता है
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है
'श्याम' से गुफ़्तगू करोगे क्या
वो सभी का जवाब रखता है
श्याम' चितचोर,नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
38 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut hi khubsurat gazal hai har shabd aur ehsas ko bkhubi sajaayaa gayaa hai is liye kise ek shear ke baare me nahin kahoongi bdhai
वाह! श्याम जी वाह!
क्या शेर कहे हैं,
=दिलशेर 'दिल'
उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुटठी में माहताब रखता है
बहुत सुंदर , यानि जब जी चाहा चांदनी बिखेर ली
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है
ये शेर भी खूब लिखा है , सचमुच आईना अपनी फितरत से मजबूर है |
दिल में गम की किताब ही होगी,
किन्तु कागज बिना छपे होंगे।
शेर अच्छे हैं दिल को छूते है,
गम की भट्टी में ही तपे होंगे।।
लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है
आग आँखों में और मुट्ठी में
वो सदा इन्किलाब रखता है
यही दो शेर थे जो आपने हिंदयुग्म के वार्षिकोत्सव में मुझे काव्यपाठ पर बुलाने से पहले कहे थे.....मुझे लगता है, हिंदयुग्म के हर सदस्य के लिए इन दो शेरों के बहुत गहरे मायने हैं....
आप यूं ही लिखते रहें..
निखिल
उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुटठी में माहताब रखता है
वाह-वाह श्याम सखा जी
अरुण मितल जी लीजिये आपकी पसन्द और एक बात लोग चाहे खुद छंद मुक्त कविता लिखें ,दाद गज़ल पर ही देते हैं,बेशक हिन्द युग्म की पुरानी पोस्टिंग पर आई टिपणियां देख लें।
अनाम
ANAAM JI,
MERE HISAAB SE AAP JINKI BAAT KAR RAHE HAIN......UNKI KALAM KO CHHANDON KI ITNI DARKAAR NAHI HAI.....
UNKI KAHI BAAT BHI DIL PAR AISE HI ASAR KARTI HAI...JITNAA KE GHAZAL..UNKE BHAAW HAMESHAA CHHOOTE HAINNN.....KABHI KUCHH LIKHNAA HO MILTA JULTA SA....TO YAHI LAAINE DIMAAG ME AATI HAIN..
RAAT KISI NE CIGRATE PEEKER...SHAHAR KE MAATHE PAR FOONKI HAI...SUBHA SE KOHRE MEIN LIPTI HAI SAARI DILLI......
YE KYOON CHHAPAA HAI MUJH MEIN...?
अनाम जी ,
अगर हम ग़लत नही हैं ,तो आप मनु जी ही हैं ,नाम तो छुप सकता है ,मगर लिखने का अंदाज तो अब सबको समझ में आ ही जाता है |
श्याम जी "दिल में किताब " बहुत ही बढ़िया भाव ,मन को मोहने वाले हैं ,
साधुवाद
लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है
हमेशा की तरह.. अच्छा लिखा है :-)
madam,
aap ne ek baar kafi pahle bhi ek anaam ko likhaa th ke "manu ji ki daant dejhkar haseee" aa gayee...wo main hi tha...is liye maine kewal itnaa hi poochha tha ke pakka ye main hi hoon....
par agr ye manu hotaa to apni safaai pesh karne kyoon aataa..? aur aapko ye likhnaa kahaan se meraa andaaz lag gayaa...?
mujhe maaloom hai ke ye kaun hain...magar kewal 99 % ke aadhaar par aur binaa saboot ke kuchh nahin kah saktaa.....
aap kahti hain ke hamein sab pataa lag jaata hai....
sabse badi baat ye hai ke agar aapko pataa bhi hai to aap naam nahin le sakte...agar aaap ko itnaa nahin pataa ..to..kuchh nahi pataa....
aur aisi baat hai to shaayad aap kabhi bhi yahaan meri tippani naa dekhein.....
कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
खुद को खानाखराब रखता है
सबसे अच्छा शेर है गजल का......
निम्नलिखित अशआर में बहर कुछ लडखडाती हुई लगी, मेरी भूल भी हो सकती है........ जरा देखियेगा और शंका का समाधान भी कर दें तो आभारी रहूँगा ..........
इस शेर की पहली पंक्ति
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है
इसकी भी............
श्याम' चितचोर,नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है
अरुण जी,
पहले वाले शेर में ५०.....५० चांस हैं...पर पर आखिरी वाले में तो दिक्कत है......जबान पर नही आ रहा है....१२...२१..१२..२१..करके आ जाए तो मालूओम नही...पर नही उस से भी नही आयेग.....दूसरा मुझे दो मकते समझ नही आए....हमें तो खैर एक से भी परहेज है...
पर दो तो किसी भी तरह हज़म नही हुए....अगर भाव मैं सही समझ रहा हूँ ग़ज़ल के तो एक शेर कह दूण...............
" बे-तखल्लुस" इस लिए बे मक्ता कहता है ग़ज़ल,
कुछ कसक बाकी रहे, हर बात कह लेने के बाद,
चलो एक और...अब बैठ ही गए तो........
के
चारागर उनसा नहीं कोई, हाँ, ये है और बात
के वो लाते हैं मरहम ,हर दर्द सह लेने के बाद.
वैसे तो श्याम जी बहुत अछे शायर हैं उन्होंने गजल के साथ बहर भी लिखी है ............ हो सकता है ये टंकण सम्बन्धी गलती हो....... कोई बात नहीं ..... वो अधिक अच्छी तरह से स्पष्ट कर पाएंगे....................... दो मकते तो मुझे भी समझ नहीं आये पर यह सोचकर कि हो सकता है जैसे कतआ युक्त गजल होती है, बेमतला गजल होती है, हुस्ने मतला होता है वैसे ही कहीं कोई गजल का व्याकरण शायद दो मक्तों को ठीक मानता हो ....................
पर वाह वाह आपने तो कमाल ही कर दिया एक तो आपका तखल्लुस जबरदस्त है और दूसरा आपका शेर
" बे-तखल्लुस" इस लिए बे मक्ता कहता है ग़ज़ल,
कुछ कसक बाकी रहे, हर बात कह लेने के बाद,
............ कमाल है भाई कहाँ छुपाकर रखा था ये नगीना .......... मैं तो फैन हो गया ..........
अरे अरुण जी, कमेन्ट काहे डिलीट कर दिया...??सब चलता है....कमेन्ट में तो...
हाँ...अगर ये ही गलतिया...बहार में या ..अब देखिये मुझ से भी हो रही है....पर चलता है..
पहला शेर तो अब ठीक लगा.....आईने वाला...
अपनी दिक्कत ये है के अपना शेर को देखने का तरीका अलग है....समझना अलग है....और भी काफ़ी कुछ है ...जो सबसे अलग है...
ye hoon main........
anaam hokar bhi manu......
ji haan,
manu hi hoon ,agar kal ko koi is style ko copy kar ke kisi pe kaisa bhi waaar kare, to please mujhe dosh naa tdenaa.....
GAZLAL KA SATSNG गज़ल का सत्संग
्वाया- अरुण मित्तल,मनु
V/s arun mitaal and manu
aap sbhi miton ka aabhaar
gazal pasnd karne hetu
कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
2 122 121 2 2 2
खुद को खानाखराब रखता है
2 1 22 121 2 2 2
सबसे अच्छा शेर है गजल का......
निम्नलिखित अशआर में बहर कुछ लडखडाती हुई लगी, मेरी भूल भी हो सकती है........ जरा देखियेगा और शंका का समाधान भी कर दें तो आभारी रहूँगा ..........
इस शेर की पहली पंक्ति
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
2 12 2 1 2 12 1 1 2
कब किसी का हिजाब रखता है
इसकी भी............
श्याम' चितचोर,नचनिया है
21 2 2 1 2 1 2 2
कैसे-कैसे खिताब रखता है
21 2 2 1 2 1 2 2 2
खुद को खानाखराब रखता है इसमे ’को” की मात्रा गिरेगीisame ko ki matra girege ,
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो इसमे ‘ई’
कैसे-कैसे खिताब रखता है इसमे पहले कैसे मे ’से” की मात्रा गिरेगी
और ऐसा करना उरूज [छंद-विधान] के मुताबिक जायज है। फ़िर भी चौकस रहन चाहिये,कभी टाइपिंग तो कभी बड़े-बड़े उस्तादों से भी गलती रह जाती है.श्याम तो आपके ही खेत की मूली है
हिन्दी गज़ल के बेताज बादशाह दुश्यन्त की लगभग २० गल्तियां लोगों ने लिखी हैं और जायज लिखी हैं
मैन ऐसे सम्वादों को गज़ल का सतसंग कहता हुं।.थिस is healthy trend manata hun
मेरे ब्लोग पर आये गज़ल सत्संग हेतु
श्याम सखा
my blogs
gazal k bahane and katha kavita
श्याम जी धन्यवाद, ये पंक्ति तो अब भी नहीं गले उतर रही,
श्याम' चितचोर,नचनिया है
21 2 2 1 2 1 2 2
खैर आपसे जब मिलेंगे तो पूरी छानबीन करेंगे, वैसे दुष्यंत कुमार का प्रशंशक मैं भी हूँ पर गलती चाहे कोई भी करे गलती तो गलती है......... एक और बात बताना चाहूँगा की दुष्यंत को कभी उर्दू-हिन्दी के मशहूर शायरों ने शायर नहीं माना, इस विषय पर मैंने एक लेख अपने ब्लॉग पर भी डाला है आप पढेंगे तो अच्छा लगेगा.......... मेरा ब्लॉग है
www.kavitayugm.blogspot.com
TERAA MUJH SE HAI PAHLE KAA NAATA KOI...............
ARUN JI AAP AUR HAM SADAA EK SAATH HI KYOON PRAGAT HOTE HAIN...???
AUR YE HI MAIN BHI AGLI POST PAR LIKH KAR AA RAHAA HOON...
is aakhiri laain me hai kuchh ,,,jo ki jabaan par fit nahin baith rahaa......
aur kyoonki main ginati waalaa bandaa nahin hoon.....
jubaan se samjhtaa hoon....so is ko note kar ke rakh letaa hoonn....
kabhi milenge to aap se ye ghazal kaa satsang karenge...
ग़ज़ल की कमी तो पता नही पर जो दिल को छुजाये वही ग़ज़ल है .मुझको बहुत पसंद आई खास कर ये
बाट खुशियों की जोहता है तू
दिल में क्यों फिर अजाब रखता है
सादर
रचना
रचना जी,
दिल को छू जाए वो तो गजल है तो फिर........ फेफडों को को छू जाए ...... वो क्या है
क्या बात करते हैं जी नियम तो नियम है दिल को तो गद्य भी छू जाता है और एक फिल्म का डायलोग भी फिर वो गजल तो नहीं हो जाता ना ..........
मनु जी और अरुण जी से मैं भी सहमत हूँ
मक्ता "श्याम' चितचोर,नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है" का पहला मिस्रा बहर से बाहर जा रहा है। जैसा कि श्याम सखा जी ने खुद कहा है कि ये गज़ल का सत्संग है तो आजादी ले रहा हूं कहने कि-पहले मिस्रे में ’चितचोर’ के बाद एक ’है’ रख दिया जाये तो बैठ जाता है ये मिस्रा बहर पर।
"श्याम चितचोर है,नचनिया है"
क्यों मनु जी सही कह रहा हूँ ?
काश कि इस ब्लौग-जगत में सब के सब मनु जी और अरुण जी जैसी ही ईमानदार टिप्पणी करने लगें,तो क्या कहने...!!!
'आइने से न कर लड़ाई कि वो’ ये मिस्रा भी तनिक अटक रहा है...मिस्रे से बस ’कि’ को हटाने की दरकार है और ये बहर में आ जाती है
’आइने से न कर लड़ाई, वो’
bhaai ji,
main aapko jaantaa hoon.......
veri sorry...aapko kah bhi nahin sakta ke ...open ho jaayein............
aur 101 per cent jaaantaa hoon......
aap kaafi samay ke baaad aye hain ...ye main is liye kah rahaa hoon...ke log galat shak naa kare.....aapke ooper aur bhi bahut si jimmewaariyaan hain.......aur unse zaroori kuchh nahi hai....
koi yaa to mujh pe shak karegaa yaa kisi aur nirdosh par....
lekin aapko sirf ayr sirf...main hi jaan saktaa hoon......
rachnaa ji ek sahriday lekhika.. aur paathika hain.....unhe ese naa kahe.....
aur wo dhunaa mere hi fefdon tak rahne dein....please aap us se door hi rahein.....aap par bahut..zyaada zimmewaari hai....
और मनु जी हम तो मर-मिटे हैं इस बात पर , कहने के इस अंदाज़ पर-"" बे-तखल्लुस" इस लिए बे मक्ता कहता है ग़ज़ल/ कुछ कसक बाकी रहे, हर बात कह लेने के बाद"
सलाम साहिब....
gautam ji,
aap wale hisaab se....pahle waala sher to clear ho gayaa hai...
par doosre mein hai ki kami hai.....
haan ...ye "hai" lagaane ki main bhi sach rahaa thaa........par kisi ki ghazal ko chhedne ki himmat nahi ho paa rahi thi...
aapne lagaa kar ek dam sahi kar diyaa..........khoob ...mazaa a gaya..........
मैने तो पहले ही कहदिया था की ग़ज़ल के नियमों का मुझे पता नही .फ़िर आप क्यों नाराज़ हुए पता नही .क्या अपनी पसंद hum नही लिख सकते ,पता नही
aur jinhon ne tarif ki kya aapko unka pata nahi
सादर
रचना
kripayaa niyantrak dhyaan dein..ke kisi bhi tarah se is anonymouse waali kahaani ko khatm karein..shaayad aisa sambhav bhi ho...
koi kuchh samajh rahaa hai...koi kuhh.....aur ham kisi ko bhi kuchh nahi samjhaa sakte....jisne likhna hi ho to apni ID ka istemaal kare...
shailesh ji ..please kahein ki kyaa aisa ho sakta hai..??
jab ham ek saadhaaran se blog par blog swaami ki anumati ke bagair ek harf bhi nahi likh sakte... to yahaa par kyaa dikkat hai...eise rool nikaalne mein..?
aur fir bhi kisi ko apne fefdon ki jaankaari chahiye to .....yahaan naa likhe..........seedhe us se contect kare...jis se dikkat hai...agar wo main hoon ...to mujh se...baat kare....seedhe..
कृपया नियंत्रक जी इस अनामी वाली बात पर भी गौर करे...कैसे कोई भी ऐरा गैर आकर कुछ भी कह सकता है...?किसी को भी..??मैंने पहले भी इस बात पर एतराज किया है .....हलाँकि मुझे तकनीकी जानकारी एक दम नही है..फ़िर भी लगता है के इस नालायकी को रोका तो जा सकता है...कैसे...?? ये मैं नहें जानता.........पर यदि आप इस बारे में सोचे तो कुछ हो सकता है....
ऐसे तो ये जगह एक सड़क चलती सी हो कर रह जायेगी...के जो मर्ज़ी आकर ..कुछ भी कह डाले....और आप उस के सिर्फ़ शब्दों की भद्रता और अभद्रता को नापते रह जाए...
पहले भी इसके चलते काफ़ी गलतफहमिया हो चुकी हैं...............
दोस्तो !
बहुत दिनो से हिन्द् युग्म,सोया-सोया सा पड़ा था।गज़ल के सत्संग ने इसमें जान फ़ूंक दी है।यानिखुल कर कहना चालू हो गय है।मुझे अनाम से भि कोई शिकायत नहीं है वे बहुत बार अच्छी टिप्पणी भी देते हैं और उन्हे रोकना गलत होगा,मेरे निजी खयाल से,अब गौतम की बात पर
उनका कहना श्याम' चितचोर,नचनिया है में १ मात्रा कम है लेकिन है दो बार लाने की जगह मैने
डायरी में इसे यूं लिखा हुआ है देखें
श्याम' चितचोर है,नचनिया भी,लेकिन है दो बार आना भी ठीक है और अब उसे ही रखूंगा
और अरुन जी की टिप्पणी पर जान्बूझकर लिखा था टाइपिंग गलती के बारे में
हां गौतम भाई मै आपकी दूसरी बात से सहमत नहीं हूं
आइने से न कर लड़ाई कि वो’ ये मिस्रा भी तनिक अटक रहा है...मिस्रे से बस ’कि’ को हटाने की दरकार है और ये बहर में आ जाती है
’आइने से न कर लड़ाई, वो’
कि हटाने से शे‘र की गज़लियत में कमी आयेगी
और मिस्रा अपने पहले रूप में भी
आइने से न कर लड़ाई कि वो बह्र पर है
आ २,इ १ने २ कर २,फ़ाइलातुन
न १ कर२ ल १ ड़ा २ मफ़ाइलुन
ई १[मात्रा गिराकर] कि १ वो२ फ़ेलुन
यहां गौतम की टिप्पणी जिससे पाठकों को असुविधा न हो कि किस पर बात की जा रही है।
मनु जी और अरुण जी से मैं भी सहमत हूँ
मक्ता "श्याम' चितचोर,नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है" का पहला मिस्रा बहर से बाहर जा रहा है। जैसा कि श्याम सखा जी ने खुद कहा है कि ये गज़ल का सत्संग है तो आजादी ले रहा हूं कहने कि-पहले मिस्रे में ’चितचोर’ के बाद एक ’है’ रख दिया जाये तो बैठ जाता है ये मिस्रा बहर पर।
"श्याम चितचोर है,नचनिया है"
'आइने से न कर लड़ाई कि वो’ ये मिस्रा भी तनिक अटक रहा है...मिस्रे से बस ’कि’ को हटाने की दरकार है और ये बहर में आ जाती है
’आइने से न कर लड़ाई, वो’
भाई मनु जी,
मैं तो आदमी कुछ दूसरी प्रकृति का हूँ पर आपकी बात पसंद आई, की अनाम टिप्पणियों को बंद कर देना चाहिए ताकि मंच की सभ्यता बनी रहे................... बेबाकी से अपनी बात आप भी कहते हैं और मैं भी....
श्याम जी,
आपने जिस तरह मेरे नाम का सन्दर्भ लिया, धन्यवाद, आपके सामने अभी बच्चा हूँ. एक बात जरा और गौर करियेगा की ये मफ़ाइलुन रुक्न का वजन कितना है (६ मात्राएँ या सात) क्योंकि "फ़ाइलातुन, का वजन ७ मात्राओं का है. और मुझे लगता है की फाईलुन को छोड़कर सभी मुख्य अरकान का वजन ७ मात्राएँ है.......... क्योंकि कई बार मफ़ाइलुन में "ई" को माना जा सकता है, मतलब गुरु (भूल से या समझदारी से पता नहीं, यही तो प्रश्न है), और कई बार 'इ" लघु, आप जरा गौर कीजियेगा.
प्रिय अरुण
बह्र व रुक्न के बारे मे आप का अल्पज्ञान ही आपकी इस टिप्प्णी का द्योतक है
एक बात जरा और गौर करियेगा की ये मफ़ाइलुन रुक्न का वजन कितना है (६ मात्राएँ या सात) क्योंकि "फ़ाइलातुन, का वजन ७ मात्राओं का है. और मुझे लगता है की फाईलुन को छोड़कर सभी मुख्य अरकान का वजन ७ मात्राएँ है.......... क्योंकि कई बार मफ़ाइलुन में "ई" को माना जा सकता है, मतलब गुरु (भूल से या समझदारी से पता नहीं, यही तो प्रश्न है), और कई बार 'इ" लघु, आप जरा गौर कीजियेगा.मफ़ाईलुन या मफ़ाएलुन जिस की गणना १२२२ होती है,मफ़ाइलुन से बिल्कुअल अलग रुक्न है,अन्य रुक्न फ़ऊलुन आदि भी १२२ यनि ५ मात्रा के होते हैं ।रुक्न की पूरी लिस्ट वज्न सहित देखें ब्लॉग gazal k bahane पर
श्याम सखा ‘श्याम’
yahan to pura manthan chal raha hai khub maza aaya .........
arsh
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)