साहित्य प्रेमियो,

इस महीने हम आपको मिलवा रहे हैं साहित्यजगत में देवी की तरह पूजी जाने वाली लेखिका महाश्वेता देवी से। हममें शायद ही कोई ऐसा हो जिन्होंने महाश्वेता देवी को न पढ़ा हो। ढाका (बांग्लादेश) में जन्मी महाश्वेता देवी विभाजन के बाद भारत आ गईं और कलकत्ता में कलम चलाने लगीं। यहाँ आकर इन्होंने रविन्द्र नाथ ठाकुर के विश्वभारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और अंग्रेजी में बी॰ए॰ ऑनर्स पूरा किया। बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी से ही एम॰ ए॰ किया।
महाश्वेता देवी ने १९६४ में बिजोयगढ़ कॉलेज में अध्यापन शुरू किया। इसी बीच इन्होंने पत्रकारिता और लेखन भी आरम्भ किया। और लेखन इस तरह चला कि आज तक बदस्तूर जारी है। महाश्वेता देवी की कृतियों पर बॉलीवुड में फिल्में भी बनीं। १९६८ में 'संघर्ष', १९९३ में 'रूदाली', १९९८ में 'हजार चौरासी की माँ', २००६ में 'माटी माई'।
महाश्वेता देवी को १९७९ में बंगाली भाषा का 'साहित्य अकादमी अवार्ड', १९८६ में 'पद्मश्री', १९९६ में 'ज्ञानपीठ', १९९७ में 'रमन मैगसेसे पुरस्कार', २००६ में 'पद्म विभूषण' सम्मान मिला है।
हिन्दी में '1084वें की माँ', 'जंगल के दावेदार', 'जली थी अग्निशिखा', 'बनिया बहू', 'झाँसी की रानी' इत्यादी कृतियाँ प्रसिद्ध हुई हैं।
आपके मन में जो भी सवाल हो, कृपया १० फरवरी २००९ तक निम्न पंजीकरण फॉर्म के माध्यम से भेज दें।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह!! बढ़िया है...
बहुत अच्छी बात है
महाश्वेता जी से आप लोग पूछें....अपनी तो तमन्ना किसी और से पूछने की है....
कमाल की पहल है......
आलोक सिंह "साहिल"
अपने चहेते साहित्यकारों से मिलने का यह अन्दाज पसन्द आया. क्या यह सवाल-जवाब लिखित तौर पर उपलब्ध नहीं रहेंगे?
आपका यह प्रयास स्थायी महत्व का है. इसका लिपिबद्ध रूप भी हिन्द-युग्म पर प्रस्तुत करने की कृपा करें, आभारी रहूंगा.
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