माँ!
कहने को इस शहर से रिश्ता
साल भर का हो गया है
अब तक तो इसे चलना सीख लेना था
पर जाने क्यूँ माँ
इसे बीमारी लग गई है, अकेलेपन की
और ये रिश्ता, अपाहिज हो गया है
सोचा था इस शहर के रिश्ते से
नए रिश्ते मिलेंगे, मगर
यहाँ रिश्ते मोबाइल में बंद रहते हैं
एसएसएस पर पलते हैं
कोई भूली-सी हँसी
या कोई फीकी-सी डाँट
बस इतनी-सी है अब तक की जमापूँजी माँ
दौड़ में शामिल हैं, या खुद से भागते हैं
इस शहर के लोग, जाने किस जल्दी में रहते हैं
बहुत तरसती हूँ माँ
फातिमा बुआ की डांट को, और पिंकी बुआ के दुलार को
कुच्हू की झगड़ने की आदत को
लवली दीदी के प्यार को
यहाँ पड़ोस में रिश्ते नहीं मिलते माँ
बस लोग हैं, जिन्हें कहने को पडोसी कहते हैं
यहाँ की रिश्ते तो जैसे सोये हुए रहते हैं
कुछ दिन हुए
शर्मा आंटी भी घर बदल गई
तुमसी बस वो ही थी
वो भी चली गई
डाँटी थी, तो बचपन याद आता था
और जब परांठे खिलते हुए, सर पे हाथ फेरती थी
मैं अपने सारे गम भूल जाती थी
याद है माँ
जब मैं रूठ जाती थी
तू मेरे लिए, खोये की बर्फी बनती थी
जाते जाते, शर्मा आंटी डिब्बा भर दे गई हैं
उन्हें खाती हूँ तो रोना आता है
मीठा इतना तीखा कभी नहीं लगा माँ
कहते हैं भगवान् हर जगह नहीं होता
तभी माँ होती है अपने बच्चों के पास
मेरे पास न तो तू है, न भगवान्...!!
तेरी बेटी।
कवयित्री- दीपाली आब
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
यहाँ रिश्ते मोबाइल में बंद रहते हैं
एसएसएस पर पलते हैं
और फिर
मीठा इतना तीखा कभी नहीं लगा माँ
रिश्ते, महानगर, हम और माँ
बहुत आत्मीय शब्द और भाव दिये हैं
सुन्दर कविता
सुंदर कविता बहुत बहुत बधाई।
माता का दर्जा सभी से ऊँचा होता है अतः हमें मदर्स डे की जगह माता पिता को समर्पित जीवन मनाया जाना चाहिये।
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
अच्छी कविता.
-बधाई.
rishto ki kiad me band nahi hota ma ka pyar.vo har bandhan se [pare hai. bahot hi sundar.
nice poem
happy mothers day
we even got happy fathers day
aap sabhi ka tah e dil se shukria :)
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