हर महीने के पहले सोमवार को हिन्द-युग्म हिन्दी कविता के उदीयमान सितारों को वेब पर टाँकता है। हिन्दी कविता का यह दीया पिछले 42 महीनों से रोशन है, जिसमें यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के प्रतिभागी अपनी कलम और पठन का तेल अनवरत रूप से डाल रहे हैं। जून 2010 माह की प्रतियोगिता कई मामलों में खास है। पिछले 2-3 महीनों से हमारी भी और हमारे गंभीर लेखकों की भी यह शिकायत थी कि पाठकों की प्रतिक्रियाएँ अपेक्षित संख्या और तीव्रता के साथ नहीं मिल रही हैं। लेकिन बहुत खुशी की बात है कि जून माह में बहुत से पाठकों ने कविताओं को प्रथम वरीयता देकर, पढ़ा और हमारा और कवियों का मार्गदर्शन तथा प्रोत्साहन किया।
जून 2010 की प्रतियोगिता की दूसरी खासियत यह रही कि कविताओं का स्तर बहुत बढ़िया रहा। जब हमारे निर्णायकों तक एक ही दर्जे की ढेरों कविताएँ पहुँचती हैं तो उन्हें मुश्किल भी होती है और एक तरह की खुशी भी। आप खुद अंदाज़ा लगाइए कि शुरू की 7 कविताओं को निर्णय प्रक्रिया के पहले चरण के सभी 3 जजों और दूसरे चरण के दो जजों ने पसंद किया और इस तरह से अंक दिये कि उसका स्थान लगभग एक जैसा बन रहा था। कुल 58 प्रतिभागी थे। पहले चरण के निर्णय के बाद 28 कविताओं को दूसरे चरण के निर्णय के लिए प्रेषित किया गया। हमारे लिए यूनिकवि चुनना बहुत मुश्किल भरा काम था। इनमें से 2 कवि पहले भी हिन्द-युग्म के यूनिकवि रह चुके हैं। दो युवा कवि हिन्द-युग्म पर लम्बे समय से लिख रहे हैं और ग़ज़ल लिखने में महारत है। दोनों मूलरूप से ग़ाज़ीपुर (उ॰प्र॰) से हैं। एक फिलहाल इलाहाबाद में हैं और दूसरे दिल्ली में। इन्हीं में से एक कवि आलोक उपाध्याय 'नज़र' को हम जून 2010 का यूनिकवि चुन रहे हैं।
यूनिकवि- आलोक उपाध्याय 'नज़र'

उपाध्याय मूलतः उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के टोकवा गांव के निवासी हैं। वर्तमान में Crest Logix Softseve Pvt Ltd इलाहबाद में बतौर Software Engineer काम कर रहे हैं। साथ ही IGNOU से MCA की पढ़ाई भी कर रहे हैं। बचपन से ही उर्दू साहित्य और हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव रहा है। हालाँकि पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक नहीं थी लेकिन इनकी माँ ने अपने मन की कोमलता बचपन में ही इनके मन के अन्दर कहीं डाल दी थी। वक़्त-वक़्त पर मिली उपेक्षाओं और एकाकीपन ने उस कोमल मन पर प्रहार किया तो ज़ज्बात और सोच कागजों पर उभरने लगे। कवि की 2 ग़ज़लें 38 यूनिकवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' में भी संकलित हैं।
फोन संपर्क- 9307886755
यूनिकविता- ग़ज़ल
जिंदगी के अंदाज़ जब नशीले हो गए
दुःख के गट्ठर और भी ढीले हो गए
'मरता क्या न करता' कदम दर कदम
और जीने के उसूल बस लचीले हो गए
टीस सी उठती है हमेशा ही दिल में
दफन सारे ही दर्द क्यूँ नुकीले हो गए
कल से देखोगे न ये शिकन माथे पे
बिटिया सायानी थी हाथ पीले हो गए
ये बेवक्त दिल का मानसून तो देखिये
जो संजोये थे ख्वाब वो गीले हो गए
जहाँ तक तुम थे तो वादियाँ साथ थी
तुम गए क्या ! रास्ते पथरीले हो गए
हीर का शहर बहा वक़्त के सैलाब में
और ख़ाक सब रांझों के कबीले हो गए
'नज़र' मिलने मिलाने में सब्र तो रखिये
गुस्ताख़ हो गए तो कभी शर्मीले हो गए
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पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका
समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-
सत्यप्रसन्न
स्वप्निल तिवारी आतिश
एम वर्मा
सुलभ जायसवाल
हिमानी दीवान
अभिषेक कुशवाहा
नमिता राकेश
प्रभा मजूमदार
संगीता सेठी
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 9 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
सनी कुमार
वसीम अकरम
अविनाश मिश्रा
ऋतु सरोहा ’आँच’
अनवर सुहैल
शील निगम
आशीष पंत
योगेंद्र वर्मा व्योम
प्रवीण कुमार स्नेही
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 1 अगस्त 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
जैसाकि हमने बताया कि हिन्द-युग्म पर बहुत से पाठक पूरी ऊर्जा के साथ सक्रिय हैं। इन्हीं में से एक हैं दीपाली आब, जो खुद एक अच्छी कवयित्री भी हैं और सच कहने में विश्वास रखती हैं। अपनी टिप्पणियों से कवियों का प्रोत्साहन करती हैं और बेहतर लिखने की प्रेरणा देती हैं। हमने इनको जून 2010 की यूनिपाठिका चुना है।
यूनिपाठिका- दीपाली आब

दीपाली सांगवान 'आब' दिल्ली से हैं और कविता वाला दिल रखती हैं। ये चाहती हैं कि युवा पीढी में भी साहित्य के प्रति प्रेम जागृत हो। ये मानती हैं कि आजकल के माहौल में जिस प्रकार की शायरी पनप रही है वो शायरी को धीरे धीरे दीमक की भाँति खा रही है। कविता पढने और लिखने का शौक इन्हें बचपन से ही रहा है। दीपाली इसी बात को ऐसे कहती हैं कि कविता इनका प्रेम है। संवेदनाओं को उजागर करना इन्हें अत्यंत प्रिय है, मनुष्य की अनेक संवेदनाएं ऐसी होती हैं जो अनछुई, अनसुनी रह जाती हैं, उन्ही संवेदनाओं को ये सामने लाने का प्रयास करती हैं। इनका यही प्रयास है कि जितना इन्होंने सीखा है, उसे दूसरो तक भी पहुँचा पायें। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करने के उपरांत दिल्ली में ही एक डिजाइनर स्टोर संभालती हैं। और साथ ही साथ उच्च-स्तरीय डिग्री को भी हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं।
पुरस्कार- समयांतर की 1 वर्ष की मुफ्त सदस्यता । हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।
इनके अतिरिक्त
डॉ॰ अरुणा कपूर ने खूब पढ़ा और टिप्पणियाँ की। इन्हें भी समयांतर की वार्षिक सदस्यता निःशुल्क प्रदान की जायेगी।
हिन्द-युग्म दिसम्बर 2010 में वर्ष 2010 के वार्षिकोत्सव का आयोजन करेगा जिसमें यूनिकवियों और पाठकों को सम्मानित करेगा। पाठकों से अनुरोध है कि आप कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी ज़रूर करें ताकि यूनिपाठक का पदक भी आपके नाम हो सके।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 19 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
संतोष गौड़ ’राष्ट्रप्रेमी’
दीपाली आब
दीपक बेदिल
कविता रावत
सुधीर गुप्ता ’चक्र’
रिम्पा परवीन
राजेंद्र स्वर्णकार
अपर्णा भटनागर
नीलेश माथुर
सुरेंद्र अग्निहोत्री
तरुण जोशी नारद
ब्रजेंद्र श्रीवास्तव उत्कर्ष
प्रकाश जैन
अमित चौधरी
अमिता निहलानी
नीलाक्षी तनिमा
सुरेखा भट्ट
अविनाश रामदेव
अमिता कौंडल
अनिल चड्डा
उषा वर्मा
तरुण ठाकुर
ओम राज पांडेय ’ओमी’
ऋषभ मिश्रा
सुमन मीत
रामपती कश्यप
चंद्रमणि मिश्रा
प्रदीप शुक्ला
अश्विनी राय
वेदना उपाध्याय
अवनीश सिंह चौहान
अमित अरुण साहू
शिवम शर्मा
दीपक वर्मा
कुमार देव
अंतराम पटेल
कैलाश जोशी
लोकेश उपाध्याय
अनरूद्ध यादव