दीपाली आब हिन्द-युग्म के सक्रियतम पाठकों और लेखकों में से एक है। प्रस्तुत कविता जिसने मई माह की यूनिप्रतियोगिता में 15वाँ स्थान बनाया है, की रचयित्री आब ही हैं।
कविता: तेरी आवाज़ क्यूँ नहीं मिलती
तेरी आवाज़ क्यूँ नहीं मिलती
कहते हैं फ़ज़ाओं में
अल्फाज़ तैरते रहते हैं
जुबाँ से फिसल जाने के बाद
वही है रेशमी चाँदनी अब भी
वही है नर्म संदली सी हवा
गेसू-ए-शब अब भी
उतनी ही तारीक है
इसके ही किसी ख़म में जा उलझी होगी
तेरी आवाज़
मुझे देख कर छुपी होगी
है यकीं मुझको वो यहीं होगी
खामशी* ओढ़ कर के सोयी नहीं
तेरी आवाज़ अब भी जिन्दा है
वरना इक वक्फा ही तो गुज़रा है
अभी तो तुमको ठीक से मैंने
अलविदा भी नहीं कहा जानाँ
तेरी आवाज़ जो मिल जाये मुझे
बाँध के रख लूँ उसको दामन से
आखिरी लफ्ज़ हैं तेरे हमदम
ऐसे जाया न कहीं हो जाए
ढूँढ़ती फिरती हूँ हवाओं में
चाँद के, तारों के दालान में
तेरी आवाज़ पर नहीं मिलती
तेरी आवाज़ क्यूँ नहीं मिलती...!!
*खामोशी
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 कविताप्रेमियों का कहना है :
है यकीं मुझको वो यहीं होगी
खामशी* ओढ़ कर के सोयी नहीं
तेरी आवाज़ अब भी जिन्दा है
दीपाली इन सुन्दर-सुन्दर लाईनो के लिए बहुत-बहुत बधाई! रचना के भाव बेहद भोले है....अति सुन्दर
भावुक मनमोहक सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति.....
तेरी आवाज़ जो मिल जाये मुझे
बाँध के रख लूँ उसको दामन से
बिलकुल ठीक
ख़ामुशी के मकाम पर कुछ भी,
अनकहा, अनसुना नहीं होता
वही है रेशमी चाँदनी अब भी
वही है नर्म संदली सी हवा
गेसू-ए-शब अब भी
उतनी ही तारीक है
इसके ही किसी ख़म में जा उलझी होगी
तेरी आवाज़
मुझे देख कर छुपी होगी
kavita ke sabd rui se mulayam hai.
acchi rachana
aab,
prem aur dard ki sundar abhivyakti...
तेरी आवाज़ जो मिल जाये मुझे
बाँध के रख लूँ उसको दामन से
आखिरी लफ्ज़ हैं तेरे हमदम
ऐसे जाया न कहीं हो जाए
badhai tumko.
्वाह्……………गज़ब्………………क्या कहूँ इस अभिव्यक्ति पर्……………बेहद दर्द भरा है।
aap sabhi ka tah e dil se shukriya, aashirwaad banaye rakhein..!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)