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Monday, June 21, 2010

खनक तो पैसे में ही होती है


यक्ष प्रश्न..............

मोची मुझे देखता है
मैं मोची को देखता हूं
मोची को मैं जूता नजर आता हूँ
मोची मुझे बुलाता नहीं है
मैं भी उसके पास जाता कहाँ हूँ
जूते मुझे लेकर स्वयं उसके पास जाते हैं
मैं उससे बातें करता हूँ
लेकिन कहाँ कर पाता हूँ उससे बात
मेरे पास दो-चार सिक्के हैं
जिन्हें मोची ताड़ जाता है
कहता है इतने में ही हो जायेगा काम
गंठ जायेगा जूता श्रीमान
महिने के आखिरी दिनों में
दो-चार सिक्के भी जेब से निकल जायेंगे
सोचकर उदास हूँ
लेकिन मोची की कातर दृष्टि
मुझे भेद जाती है
दोनों एक-दूसरे को देखते हैं
घुल-मिल जाते हैं एक दूसरे के चेहरे
न मैं मना कर पाता हूँ
न ही मुझसे जूता ले पाता है
अजीब कशमकश.....
स्थिर मूर्तियाँ फिर प्राणवान
वो खींच लेता है मेरा जूता
मैं भी कुछ बोल नहीं पाता
क्योंकि मैं अब अपने नहीं
उसके वश में हूँ
जूता तैयार होने के बाद
मेरे आगे बढ़ाता है वो मेरा जूता
उन जूतों को देखकर
मैं अपने पैर बढ़ाता हूँ
लेकिन यह क्या पैर ठिठक जाते हैं
चिंतन की धारा चल पड़ती है
मैं प्राणवान से फिर मूर्तिमान...
बाजार के कोलाहल से टूटती है तन्द्रा
मैं जूते पहन लेता हूँ
मोची मेरी इस विवशता को
नजदीकी से महसूस करता है
पर बोल कुछ नहीं पाता
भीड़ में आते- जाते चेहरे
मुझे और उस मोची को देखकर
कई रंगों में बदलते हैं
पर मेरा और उस मोची का रंग
या तो बदलता नहीं
या बदलता भी है तो जूते के रंग में ही
यह कौन सी विवशता है मेरी और जूते वाले की
अद्भुत सा लगता है सब कुछ
मैं जूते में घिसटकर
आगे बढ़ता जाता हूँ
मोची की आँख मुझे दूर तक करती है पीछा
मैं भी तो उसी को देखता रहता हूँ
मेरी यादों में बसा है उसका वही गोल चेहरा
जो मेरी विवशता भाँप जाता है
फिर क्या विवशता के कोई रंग होते हैं
होते होंगे
....
लेकिन खनक तो पैसे में ही होती है

कवि- मृत्युंजय साधक

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

SANSKRITJAGAT का कहना है कि -

उत्‍तमं काव्‍यम् ।।


उत्‍तमा भावाभिव्‍यक्ति: ।।


आज से संस्‍कृत में टिप्‍पणी करना प्रारम्‍भ करें

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

लेकिन खनक तो पैसे में ही होती है
..सुंदर कविता..वाह!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सुन्दर कविता के लिये बधाई

दिपाली "आब" का कहना है कि -

फिर क्या विवशता के कोई रंग होते हैं
होते होंगे

sach kaha, vivashta ke kai rang hote hain, middle class man ki vivashta khoob darshai hai.

M VERMA का कहना है कि -

कुछ रिश्ते अपरिभाषित होते हैं. कुछ रिश्ते स्वत: बन जाते हैं बेशक रिश्ता परिपुष्ट हो पैसे से पर रिश्ता फिर भी रिश्ता है . .
खूबसूरत कविता

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

achhi rachna...shilp bhi achha hai ..likha bhi khub gaya hai ..par jane kyun iska jitna asar mujhpe hona chahiye tha..wo nahi hua.. :(

Harihar का कहना है कि -

वाह! सुन्दर कविता
विवशता के कईं रंग होते हैं
पर पैसा? "मधुरमधुरो ही मेस्वरं"

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

सुन्दर भाव ।

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

लेकिन खनक तो पैसे में ही होती है
सही बात खनक तो पैसे में ही होती है.

रंजना का कहना है कि -

खनक तो पैसे में ही होती है....
सही कहा...

सुन्दर भावप्रवण रचना...

विपुल का कहना है कि -

सूक्ष्म विश्लेशण करती कविता... शानदार तरीके से रखी आपने अपनी बात!

Akhilesh का कहना है कि -

acchi hai kavita

agli kab padwa rahe hai

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