युवा कवि मुकुल उपाध्याय कभी-कभार ही लिखते हैं, लेकिन जब कभी भी कलम उठाते हैं कुछ बेहतर लिख जाते हैं। मुकुल की कविताएँ 38 यूनिकवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संकलन 'सम्भावना डॉट कॉम' में भी संकलित हैं।
कविता: मेरी नायिका
शरतचन्द्र की कहानियों के गाँव में
अशोक के पेड़ों की लम्बी कतारों के बीचों-बीच
सूनसान पगडंडियों पर गुजरती ......
या गर्म दोपहर में आम के बागीचे से लौटती
लाल किनारे वाली सूती धोती पहने
साँवले चेहरे पर उजली धूप लिए
कभी मिली थी तुम एक सफ़े पर
देखा था तुमको मूसलाधार बारिश की किसी शाम
अमरूद के बाड़े की ओर खुलते वरांडे पर
बारिश के साथ रविन्द्रनाथ के प्रेम गीतों में भीगते हुए
किसी नॉवेल में
पर
बाद उसके ढूँढ़ा तुम को ज़िन्दगी में
स्कूल, कॉलेज
बाज़ार, हाट
गली, मोहल्ले
राहों-चौराहों
पोखर-धारे
गाँव-शहर-महानगर, द्वारे-द्वारे
पर तुम कहीं नहीं थी
मेले-ठेले
नाटक, नौटंकी
रामलीलाओं,जगराते
बाजे-घाजे
महफ़िल, सन्नाटे
सब जगह तुम्हारी टोह ली
पर तुम कही नहीं थी....
हिन्दू, मुस्लिम
सिख, इसाई
जैन, पादरी
ब्रह्मण, क्षत्रिय
वैश्य, शू ...
गोरे , काले
सारी जातों, नसलों सब जगह तुम्हें खोजा, खंगाला
तुम्हारी सम्भावना को स्वीकारा.
पर तुम कहीं भी नहीं थी
मेरी नायिका!
शरदचन्द्र को भी तुम बस
उनकी कहानियों में ही मिली हो शायद
मेरी नायिका!
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
hmmm...shayad apni nayika se aapki ummeedein jyada hain, tabhi to wo kahin nahi mili..
bhaavon ko sundarta se bandha hai.badhai
oye mukul... i luv this poem...sunni bhi hai tumse.... :) sach baat bhi hai .. ye nayikayen kewal kahaniyon tak rah gayi hain .. :(
swapnil
khulle aam aisi baatein kahoge to tumhari nayika bura maan jayegi.. Lolz
कविता का बहुत बढिया प्रयास.. अच्छा लगा पढ्कर!
Mukul Bhai sach ye hai aisi ek naayika sabke man me hai aur vidambna ye ki ye kisi ko kabhi nahin milti ...
Mukul Bhai sach ye hai aisi ek naayika sabke man me hai aur vidambna ye ki ye kisi ko kabhi nahin milti ...
भाई, सच यही है नायक-नायिका तो कहानी,कविता,नाटक,फ़िल्म व ख्वाबों में ही मिलते हैं, व्यक्तिगत जीवन में न तो हम नायक बन पाते हैं और न हमें नायिका मिल पाती है. नायिका की खोज करोगे तो अकेले ही रहना पड़ेगा. अतः भलाई इसी में है कि जो भी सफ़र में मिले वही हम सफ़र है और उसी के साथ यात्रा सम्पन्न करो.
www.rashtrapremi.com
वाह भई बहुत खूब कहा.. सुन्दर कविता डा.राष्ट्रप्रेमी जी सहमत हूं न तो हम नायक बन पाते हैं न ही वैसी नायिका मिल पाती है..बधाई हो आपको . ऐसी ही सुन्दर रचनाओ की उम्मीद आगे भी है.
शरतचन्द्र के उपन्यासों - कहानियों की नायिका की तलाश ...
शायद तलाश ही अधूरी रह जाती होंगी या फिर वह दृष्टि (शरतचन्द्र वाली) न होने से चूक जाती होंगी.
ये नायिकाएं तो हर मुहल्ले, हर हाट-बाजार में मौजूद हैं.
कविता शानदार
shukriya gunijano aapko kavita pasand aayi aur aapne uske sambhandh mein likha
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