1.
आपकी आमद से राहें खुल गईं
बादलों से जैसे चमके रौशनी
ज़हन में कब से जमी थी मायूसी।
2.
आप से मिल के मेरा हाल ऐसा होता है
ज्यूँ समंदर में दिखे अक्स-ए-माह-ए-दोशीजा
दो-दो चेहरे लिए फिरती हूँ महीनों मैं भी।
3.
मेरे चेहरे पे शिकन पढ़ लेती हैं
आँखों में आई थकन पढ़ लेती हैं
बड़ी ही तेज़ तर्रार हैं, आँखें उसकी।
4.
बड़ी अना में कह गए थे वो जाते-जाते
अबकि उठे तो ना लौटेंगे तेरे दर पे सनम
लौट कर आए तो कहने लगे 'दिल भूल गए थे'।
5.
मुझे बे बात के रिश्तों में उलझा के
चल दिया बस अपनी बात बना के
बड़ा मतलबी निकला ये वक़्त।
6.
तेरी याद का एक लम्हा पिया
साँस आने लगी, जीना आसाँ हुआ
दमे की बीमारी है ज़िन्दगी गोया।
7.
खलिश-सी है कि दिल के किसी कोने में
मज़ा नहीं आता अब तो मिल के रोने में
ऐ ग़म अब तू उनके घर जा के रह।
8.
तुम्हारी आँखों से गुज़रते हुए डर लगता है,
जगह-जगह है भरा पानी, और फिसलन है
ना जाने कब से मानसून ठहरा है यहाँ।
कवयित्री- दिपाली आब
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढ़िया
sundar...
प्रेम के मासूम एहसासों को बड़ी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है..1..2..3 के बाद खुशी 123हो जाती है और गमों की अभिव्यक्ति होती है. मिलन या बिछोह दोनो को ही अच्छे से उकेरने में सफल हैं ।
..बधाई।
bahut sundar rachana..........
तुम्हारी आँखों से गुज़रते हुए डर लगता है,
जगह-जगह है भरा पानी, और फिसलन है
ना जाने कब से मानसून ठहरा है यहाँ।
bahut hi sunder
badhai
rachana
दीपाली जी की सभी त्रिवेणियाँ बहुत अच्छी लगी। उन्हें बधाई।
दीपाली जी सभी त्रिवेणियां बहुत सुन्दर है...बहुत-बहुत बधाई!!
बहुत सुन्दर त्रिवेणियाँ .. बेहतरीन अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
“तुम्हारी आँखों से गुज़रते हुए डर लगता है,
जगह-जगह है भरा पानी, और फिसलन है
ना जाने कब से मानसून ठहरा है यहाँ।“ वैसे तो आपकी सभी त्रिवेनियाँ अच्छी हैं मगर इस अंतिम त्रिवेणी से मुझे अनायास ही हँसी आ गई. बहुत बहुत साधुवाद इस सुन्दर कृति के लिए. अश्विनी कुमार रॉय
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