फटाफट (25 नई पोस्ट):

Wednesday, October 20, 2010

परिंदे सब तुम्हारे क़ैदखाने के कफ़स में हैं


किसानों को ज़मींदारों का जब ऐलाँ बता देंगे,
वो अपनी जान दे कर आप के कर्ज़े चुका देंगे।

परिंदे सब  तुम्हारे क़ैदखाने के  कफ़स  में हैं,
मगर इक दिन ये तूफाँ बन के ज़िन्दाँ को उड़ा देंगे।

तुम्हारी हर हक़ीक़त राज़ के परदे में पिन्हाँ है,
मगर कुछ सरफिरे आ कर कभी पर्दा उठा देंगे।

गिरफ्तः-लब हैं हम गरचे तुम्हारे खौफ़ से अब तक,
खुलेंगे लब तो इक नग्मा बगावत का भी गा देंगे।

सियासतदान नावाकिफ़ हैं सब इखलाक़ से लेकिन,
कभी नेहरु कभी गाँधी सी  तक़रीरें  सुना  देंगे।

कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।

(कफस = पिंजरा, ज़िन्दाँ = जेल, पिन्हाँ = छुपी हुई, गिरफ्तः-लब = बंद ज़बान, गरचे = हालांकि, इखलाक = नैतिकता, तकरीरें = भाषण, आला = ऊंचा)

 बहृ - मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन

कवि: प्रेमचंद सहजवाला

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 कविताप्रेमियों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

तुम्हारी हर हक़ीक़त राज़ के परदे में पिन्हाँ है,
मगर कुछ सरफिरे आ कर कभी पर्दा उठा देंगे।
...उम्दा शेर।

रंजना का कहना है कि -

कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।

क्या बात कही है.....वाह !!!!

सारे के सारे शेर लाजवाब,बेजोड़....
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...पढवाने के लिए शुक्रिया...

manu का कहना है कि -

वो इक आला घराने का था...उसको क्या सज़ा देंगे....?

कमाल का शे'र...!

अपना एक बहुत पुराना शे'र याद आया....



वक़्त के पाबन्द साकी , मयकशों से खौफ खा
सरफिरा फिरता है तेरे क़त्ल का सामां लिए..


बिक चुके जब दहन सारे, रहन हो ईमां जहां
मुंसिफी को क्या कहें, खस्ता-ऐ-जिस्मों-जा लिए..

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“सियासतदान नावाकिफ़ हैं सब इखलाक़ से लेकिन,
कभी नेहरु कभी गाँधी सी तक़रीरें सुना देंगे।
कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।“ प्रेम चंद जी आपके अलफ़ाज़ बहुत विद्रोही स्वर में लिखे गये हैं. व्यवस्था पर अत्यन्त प्रभावशाली चोट की है आपने. आजकल सब ऐसा ही हो रहा है. कवि विद्रोही स्वर में बोल तो सकता है मगर इतनी ताकत नहीं जो बदलाव भी ला सकें. आपकी सुन्दर कृति के लिए आपको बधाई. अश्विनी कुमार रॉय

Anonymous का कहना है कि -

कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।
यह शेर तो वाकई व्यवस्था पर चोट करता है.बहुत-बहुत बधाई प्रेमचन्द जी!!

Aruna Kapoor का कहना है कि -

तुम्हारी हर हक़ीक़त राज़ के परदे में पिन्हाँ है,
मगर कुछ सरफिरे आ कर कभी पर्दा उठा देंगे।

...एक सकारात्मक सोच को जागृत करता उमदा शेर!

M VERMA का कहना है कि -

कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।

अच्छा तंज पिरोया है.

सदा का कहना है कि -

कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था, उस को क्या सज़ा देंगे।

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)