भूख
भूख लगी है
"जानम" अब कुछ लफ्ज़ खिला दो
कबसे शांत खलाओं में
तेरी एक गाली को ढूँढ रहा हूँ
जिसको
तुमने ये कह कर फेंका था
"जाओ, नहीं देती.."
भूख लगी है "जानम"
एक गाली दे दो
अल्लाह रहम करेगा...!!
अंतर
लव यू मॉम
लव यू डैड
कह के घर से निकला
मेट्रो में सीट के लिए
एक अंकल से झगडा किया
क्या संवेदनाएँ
चेहरों की मोहताज होती हैं?
मौत
रात सिसकियों में
काटी थी इंतज़ार ने
सुबहा
तेरी आवाज़ की
बूँदें पी कर
आँखें मूँद ली
अधूरापन
कितनी अजीब बात है
तुम थे तो सारे रिश्ते तुम्हारे
मेरे थे
पर मेरी कोई पहचान नही थी
आज तुम नही
पर मैं खुद से मिल पाई
यह अधूरापन
सच कितना पूरा है..!!
चोट
कुछ शोर-सा हुआ है भीतर
कुछ टूट गया शायद
नींद में थे एहसास
कोई लम्हा
चुभ गया पाँव में
कुछ ख्वाब गिर गए
मोहब्बत के हाथ से
दिल संभालो
ज़रा नाजुक है...!!
दिल के दौरे
मुद्दतों बाद
उसने मेरा नाम लिया
मैंने
चुपके से
अपने दिल को थाम लिया
दिल के दौरे
अक्सर
ज्यादा ख़ुशी से आते हैं॰॰
चालाक दिल
चेहरे को छू के
जब नर्म-सर्द हवा जाती है
आँखों पे तेरे
कोसे एहसास की
याद दिलाती है
चालाक दिल
तुझे याद करने के बहाने ढूँढ़े..
कवयित्री- दीपाली आब
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26 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छा
दिल संभालो
ज़रा नाजुक है...!!
बहुत नाज़ुक हैं .. जी हाँ
और ये क्षणिकाएँ भी तो बहुत नाज़ुक और खूबसूरत हैं
छोटे छोटे अवलोकन गहरे हैं और मर्मयुक्त ।
मनोरंजक क्षणिकाएं !...एक से बढ कर एक!
सुन्दर शब्द, गहरे भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
अलग अलग तरह की संवेदनाएं लिए..सभी क्षणिकाएं अच्छी लगीं...
भूख..
अंतर ..
मौत..
अधूरापन...
चोट..
दिल के दौरे..
चालाक दिल....
चेहरे को छूकर जब नर्म-सर्द हवा जाती है....(इस प्रचंड गर्मी में ये लाईन पढ़ना सुखद लग रहा है...)
गुलज़ार का प्रभाव दिख रहा है आपकी इस रचना पर.. सारे बिम्ब और प्रतीक वहीं से उठाये हुए लगते हैं। पढ्ते हुए ऐसा नही लगा कि कुछ नयी बात पढ रहा हूं।
क्षणिकाएं सफल कही जा सकती हैं अगर वे चौंकायें। और चौंकाने के लिये कथ्य की नवीनता ज़रूरी है यही क्षणिका का मुख्य तत्व भी होता है!
अंदाज़-ए-बयां बढिया था और भी बेहतर के इंतज़ार में...
@ madhav ji
shukriya
verma ji
in nazuk ehsaason ko pasand karne ka shukriya
praveen ji
marm ko mehsoos karne ke liye shukriya
aruna ji
aapka manoranjan hua, mujhe khushi hui. aabhar
sada ji
dhanyawaad
manu ji..
shukriya, aapne sabhi ehsaason ko pasand kiya,
aur jis nazm ki aapne baat kahi hai, wo aati aati sardiyon mein kahi thi.. :)
socha garmi mein sardi ka ehsaas hi ho jaye .. :)
@vipul ji
गुलज़ार का प्रभाव दिख रहा है आपकी इस रचना पर..
darasal rachna, ek nahi, 7 hain..shayad aapne theek se padha nahi, title hi kehta hai 7 kshanikayein..
सारे बिम्ब और प्रतीक वहीं से उठाये हुए लगते हैं।
पढ्ते हुए ऐसा नही लगा कि कुछ नयी बात पढ रहा हूं।
"भूख लगी है "जानम"
एक गाली दे दो
अल्लाह रहम करेगा
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क्या संवेदनाएँ
चेहरों की मोहताज होती हैं?
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रात सिसकियों में
काटी थी इंतज़ार ने
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यह अधूरापन
सच कितना पूरा है..!!
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नींद में थे एहसास
कोई लम्हा
चुभ गया पाँव में
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दिल के दौरे
अक्सर
ज्यादा ख़ुशी से आते हैं॰॰
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चालाक दिल
तुझे याद करने के बहाने ढूँढ़े..
MERE KHAYAL SE INMEIN SE EK BHI METAPHOR, KABHI BHI GULZAR CHACHA KI KISI BHI NAZM/GAZAL/TRIVENI/RUBAAI/GEET MEIN ISTEMAAL NAHI HUA..
ek baat aur, is style mein likhna sirf gulzar saheb ka copyright nahi hai, main to tab se isi style mein likhti hun jab gulzar saheb itne famous nahi thi, aur main isi style ke liye jaani jaati hun, aur meri nazmein isi style ke liye pechani aur pasand ki jaati hain..
क्षणिकाएं सफल कही जा सकती हैं अगर वे चौंकायें। और चौंकाने के लिये कथ्य की नवीनता ज़रूरी है यही क्षणिका का मुख्य तत्व भी होता है!
shayad main iska jawab upar de chuki hun
अंदाज़-ए-बयां बढिया था और भी बेहतर के इंतज़ार में...
andaaz e bayaN pasand karne ke liye shukriya...
yahan main kehna chahungi, wahi jo main har baar kehti hun..
kisi ne bahut khoob kaha hai
"SIRF ANDAAZ E BAYA.N BAAT BADAL DETA HAI,
WARNA DUNIYA MEIN KOI BAAT NAYI BAAT NAHI..!!
AUR SHAYAD YEH SHER AAPKE SABHI SAWAALON(ILZAAMON) KA JAWAAB HAI. :)
a big time Thanx for you time
"गुलज़ार साहब फेमस नही थे"......मेरे विचार से यदि दीपाली जी की उम्र साहब जितनी हो तब ही वो ये कहें ....गुलज़ार साहब के प्रतिष्ठा स्वतंत्रता के बाद से ही है....उनका उतना बैठना तब सुमन जी पंत जी अग्येय जी जैसे लोगो के साथ था,....खैर अगर क्षनिकाओं की बात आती है तो वे किसी कविता का अंश लगती है ना की क्षणिका.... ज़ाहिर है वे चौकात नहीं हैं..... बिंब एवं रूपक आचसे प्रयुक्त किए है.... उनके लिए साधुवाद ...दिल के दौरे मुझे विशेष पसंद आई.... "भूक" एक कविता के तौर पर ख़ासी अच्छी है... पर कविता के तौर पर छोटी है..... विपुल जी से निवेदन है की वे इतने आक्रामक टिप्पणिया ना करें....ये कवि को परेशन कर सकती है..... दीपाली जी के लिए शुभकामनाएँ....
"गुलज़ार साहब फेमस नही थे"......मेरे विचार से यदि दीपाली जी की उम्र साहब जितनी हो तब ही वो ये कहें ....गुलज़ार साहब की प्रतिष्ठा स्वतंत्रता के बाद से ही है....उनका उठना-बैठना तब सुमन जी पंत जी अज्ञेय जी जैसे लोगो के साथ था। खैर अगर क्षणिकाओं की बात आती है तो वे किसी कविता का अंश लगती है ना की क्षणिका। ज़ाहिर है वे चौकातीं नहीं हैं..... बिंब एवं रूपक अच्छे से प्रयुक्त किए है.... उनके लिए साधुवाद ... दिल के दौरे मुझे विशेष पसंद आई.... "भूख्" एक कविता के तौर पर ख़ासी अच्छी है पर कविता के तौर पर छोटी है.
विपुल जी से निवेदन है वे इतने आक्रामक टिप्पणिया ना करें। ये कवि को परेशन कर सकती है
दीपाली जी के लिए शुभकामनाएँ...
piyush ji
itna famous se mera matlab yeh tha ki jitne famous aaj hain, zahir hai ki aaj ek chhota baccha tak gulzar saheb ki nazmein gaata hai, yeh baat agar das saal peeche ja kar dekhi jaye to farq asaani se pata chal jayega, aur yehi kaha jayega ki aaj woh peak par hai..
haan main aapki baat se ittefaq rakhti hun ki gulzar saheb hamesha se logo ke dil mein hi rahe hain.. meri baat se aapko thes hui to muafi chahungi.
main khud chacha ke mureedon mein se ek hun, aur unke liye kuch sun nahi sakti, shayad mera kehne ka tareeka theek nahi tha, ya fir aap hi ne galat samajh liya.
kshanika ya kavita (aap jo bhi samjhein) yeh lekhak par hi nirbhar karta hai ki wo use kitni lambai dein aur kaise baandhe.. mere man ne jitna kaha maine unhe usi prakar se baandha. aapne samay diya, uske liye shukriya. :)
अच्छी क्षणिकायें!
धन्यवाद!
लगता है दीपाली जी बुरा मान गयीं।
ज्यादा तल्ख टिप्पणी के लिये माफी चाहूंगा।
मैनें आपकी रचनाओं को रचना कहा क्योंकि मुझे वह पीयुष भाई की ही तरह “किसी कविता का अंश” लगीं। लगा जैसे इन्हे एक ही मनोदशा में एक बार में ही बैठकर लिखा गया है।
एक बात और कि मैनें यह नहीं कहा कि आपने गुलज़ार की तरह लिख दिया है। मेरे कहने का मतलब था कि आपने गुलज़ार की तरह लिखने की कोशिश की है । आपने एक दम गुलज़ार की तरह लिखा होता तो मैं कहता कि “हमें एक और गुलज़ार मिल गया है” । मगर तब भी यह गुलज़ार की प्रशंसा होती। किसी की तरह लिखने में यही नुकसान है।
निस्सन्देह गुलज़ार की शैली उनका कॉपीराईट नहीं है मगर अगर कोई ऐसा करता है तो उसे यह सुनने के लिये तैयार रहना चाहिये कि आपने गुलज़ार जैसा लिखने की कोशिश की है। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुरा मानने वाली बात है।
रही बिम्बो और प्रतीकों की बात तो आपके बिम्ब गुलज़ार की रचनाओं में वैसे के वैसे नहीं बल्कि और ज्यादा विकसित होकर सामने आते हैं। गुलज़ार कभी लम्हे को तोडकर आग में डाल देते हैं तो कभी अंगुली पर् चांद का छाला पड जाता है!
किस रचना को कितनी लम्बाई देना है यह कवि पर निर्भर है मगर जैसे गज़ल में एक मतला होता है, काफिये का ध्यान रखना होता है वैसे ही हर विधा की कुछ खास बात होती है। इसी तरह मेरे मतानुसार क्षणिका में उसका चौंकाने वाला तत्व ही उसे अलग बनाता है। (बहुत सम्भव है कि मेरा मत गलत हो)। प्रस्तुत रचना इससे एक अलग एहसास देती है। लगता है कुछ अलग-अलग कविताओं के सबसे अच्छे हिस्से अलग करके रख दिये गये हों।
पहले भी मैनें जब इस तरह प्रतिक्रिया दी और अभी भी इतनी लम्बी बात कही क्योंकि मैनें आपका ब्लॉग देखा और आपकी रचनायें पढ कर लगा कि आप काफी लिख चुकी हैं और शायद मेरी बात को सकारात्मक रूप में लेंगी। वरना रचना को सिर्फ “बहुत अच्छी रचना”
बोलकर भी निकला जा सकता था।
एक बात और... हमारी बात सिर्फ अन्दाज़-ए-बयां पर ही नहीं बल्कि समझने के अन्दाज़ से भी बदल जाती है. मैंनें अन्दाज़-ए-बयां को बढिया कहा था मगर बढिया भी तो बेहतर हो सकता है ना... और ऐसा मैनें लिखा भी था कि ‘बेहतर के इंतज़ार में’ !
आशा है कि आप मेरी बात को सकारात्मक रूप में लेंगी।
तो आपसे मैं वही कहना चाहूंगा जो मैनें आज तक किसी को नहीं कहा (क्योंकि पहले सुना ही नहीं था)
किसी ने (और आपने भी) क्या खूब कहा है..
“सिर्फ अन्दाज़-ए-बयां बात बदल देता है, वरना दुनिया में कोई बात नयी बात नहीं।”
क्या बात है छोटी-छोटी क्षणिकाओ मे बहुत बड़ी-बड़ी और गहरी बाते दीपाली जी बहुत-बहुत बधाई!!
sari chanikaye acchi lagi...
ek naya andaaz bhi mila
baat kahne ka
sari chanikaye acchi lagi...
ek naya andaaz bhi mila
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