वो बचपन की पहेली,
हम जिसे अब तक नहीं समझे..
तुम्हारा मुंह चिढ़ाती है,
ज़रा तुम भी चिढ़ाओ ना..
उठो, जल्दी से आओ ना...
वो एक तस्वीर अलबम की,
जिसमें मैं खड़ा आधा-अधूरा सा,
तुम्हें फुर्सत नहीं अपनी शरारत से...
तुम्हें तस्वीर का हिस्सा बनाने में,
मैं खींचता तो हूं...
मगर तस्वीर थोड़ा और पहले
खिंच ही जाती है....
मैं फिर खड़ा हूं,
सब खड़े हैं, हंसते चेहरे...
तुम कहां हो....
हथेली को बढ़ाओ ना...
उठो जल्दी से आओ ना...
मैं कितनी देर तक हंसता रहा था...
गुलाबी फ्रॉक वाली एक लड़की
लाल घूंघट में...
शरम से लाल होकर छिप रही थी..
मुस्कुराती थी....
...............
अचानक...
कौन था...जिसने की चोरी
सांसों की गठरी..
मैं कुछ क्यों कर नहीं पाया....
अचानक..
चार कंधों पर....
ये लंबी नींद की चादर.....
मैं कुछ क्यों कर नहीं पाया....
अभी गहरी उदासी में...
तुम्हें तो मुस्कुराना था...
अभी तो उम्र की कई सीढ़ियों के
पार जाना था...
मैं रोना चाहता हूं,
उस नए मेहमान की खातिर,
जिसे भरनी थी किलकारी
सभी की गोदियां चढ़कर...
खिलौने, दूध की बोतल
पटक कर तोड़ देनी थीं...
सुनाए कौन अब वो तोतली बोली,
दिल कैसे बहल जाए, बताओ ना...
उठो जल्दी से आओ ना...
अभी तो इक महकती
फूल-सी लड़की को
सारी रात जगकर...
मेरी आंखों में तकना था....
हंसना था, महकना था..
ज़िद तारों की करनी थी...
मेरे कंधे पे चढ़कर
चांद की ठुड्डी पकड़नी थी...
......................
मैं अब भी बंद आंखों से,
तुम्हारी राह तकता हूं...
मैं सोया हूं बहाने से....
ज़रा चुपके, सिरहाने से....
मेरा तकिया हिलाओ ना....
मैं सोया हूं, जगाओ ना...
मेरी छोटी बहन पूजा,
मेरी अच्छी बहन पूजा,
उठो जल्दी से आओ ना...
...................................
निखिल आनंद गिरि
(साल 2010 का पहली कविता....एक छोटी बहन थी जो डिलीवरी से पहले ही डॉक्टरों और ससुरालवालों की लापरवाही का शिकार हो गई...उससे जुड़ी यादों को सहेजने की कोशिश )
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
nikhil jee ,
namaskar !
kavita ne bhavuk kar diya , sunder abhivyakti jo man se basi hai,
saduwad
मार्मिक ।
दर्द और भावुकता के इतने अहसास कि पढ़कर आँखों में आँसू आ गये..
अति मार्मिक रचना....
भावुक श्रद्धांजलि....
एकदम मन भर आया पढ़कर...
कविता पर यह टिप्पणी करते वक़्त मैं सोच रहा हूं कि अगर आप इस कविता को लिखने के साथ ही इसे अपनी आवाज़ भी दे देते तो मैं फिर अपनी टिप्पणी में क्या लिखता !
marmsparshi rachna.. Dil ko chuu gayi
अंत और सन्दर्भ ने निशब्द कर दिया ..
मार्मिक अभिव्यक्ति.
ऑफिस से लौटकर देर रात ही पढ़ ली थी कविता,
पर कुछ कहते नहीं बन रहा था...अब भी नहीं कहा जा रहा कुछ...
बस..
शायद पहली कविता है जब इसे पढ़ना शुरू किया तो सपने में भी नहीं लगा था की निखिल आनंद गिरी की हो सकती है...
जब नीचे आपका नाम पढ़ा तो हैरानी हुई...कि अरे.. ...!
हम आज पहचान ही नहीं पाए आपकी कविता......
फिर कविता का कारण पढ़ा...
और बस...कंप्यूटर बंद कर दिया..
इस रचना ने तो बिल्कुल नि:शब्द कर दिया, दिल के गहराई से निकले शब्द भावुक कर गये...दर्द को बयां करती यह पोस्ट, आपकी लेखनी को सलाम ....।
behad shandar rachna...dil nam ho gaya
बेहद मार्मिक या फिर दर्दभरी रचना नहीं कहूँगा...
क्योंकि
ऐसी कविताएँ नहीं लिखी जानी चाहिए,
ऐसी घटनाएँ नहीं होनी चाहिए..
मै समझ सकता हूँ कि लिखने वक्त आपके दिल पर क्या बीत रही होगी। बस इसी जख्म को महसूस करते-करते मैने पूरी कविता पूरी की और खत्म होने के बाद अपने आँसूओं को नहीं रोक सका।
क्या कहूँ....
ऐसी घटना किसी के साथ न हो, यही दुआ करता हूँ।
-विश्व दीपक
भावुक रचना.....मार्मिक अभिव्यक्ति...!!
सुन्दर व मार्मिक भावनाओं को काव्य मालिका में पिरोया है. अत्युत्तम
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