जब भी बाँधी है
तेरी कलाई पे
अपनी दुआओं की तितली मैंने
तुझे हर पल, हर घडी मुश्किल की
साथ पाया भी है मैंने
अबकी फिर से सोचती हूँ
एक तितली दुआओं की
सजा के स्नेह के रंगों से
बाँध दूँ फिर से तेरी कलाई पे
शायद फिर से तेरी नज्मों की गुल्लक से
निकाल के कुछ शब्द
बुन के दे दे मुझे
एक नज़्म तू तोहफे में
मैं दुआएं दूँ तुझे लम्बी उम्रों की
तू वचन दे मुझे साथ रहने का
और चलता चले हर डगर पे सदा
होता जाये सुगम फिर ये जीवन सदा !
मेरे प्यारे भैया.. राखी का त्यौहार मुबारक तुम्हें
कवयित्री- दीपाली आब
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुंदर रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
दीप जी के साथ सभी पढने वालों को रक्षा पर्व की बधाई...
दुआओं की तितली...
बहुत प्यारा शब्द निकाल लाईन हैं आप...
शायद फिर से तेरी नज्मों की गुल्लक से
निकाल के कुछ शब्द
बुन के दे दे मुझे
एक नज़्म तू तोहफे में
और शायद इससे खूबसूरत तोहफ़ा कोई और नहीं हो सकता
सुन्दर और सामयिद रचना
इस बार भी
कलाई कुछ सूनी रही
नहीं आई उड़ के
कोई तितली दुआओं वाली
खुद-बखुद
कल शाम तोड़ दिया
गुस्से में नज़्मों वाली
गुल्लक और उसमें
पिछले कुछ सालों में
आई दुआओं की तितलियों के
चंद पंखो के सिवा
कुछ भी तो नहीं था ...
...बधाई स्वीकारें
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, रक्षाबंधन की बधाई के साथ शुभकामनायें ।
बेहद ख़ूबसूरत...:)
बहुत ही सुन्दर रचना
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