तू और मैं
दो अलग जिस्म
जुदा रूह बेशक हों
बेशुभा
दोनों के मायने अलग हों
तू तू है
मेरे और ही रंग हैं
हाँ.., सच है
तू और मैं
ज़िन्दगी के इस
मुअम्मे के
छोर के दो हर्फ़ हैं...
लेकिन
जिस दिन
खुदा की नज़र
हटेगी
उस वक़्त
तू और मैं
मौका देख
उस से नज़र बचा कर
चुपके से आ मिलेंगे
और तेरे मेरे बीच
न कोई मज़हब
न जात, न धर्म
और न ही कोई रिश्ता आएगा
और उस दिन
तू और मैं
मिलकर 'हम' बनायेंगे
और हमारे नए मायने
लोग सदियों दोहराएँगे....!!!
दिपाली आब
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
मानवीय एहसास का बोध कराती सुंदर कविता,सुंदर सकारात्मक भाव को पेश करती हुई कविता दिलों को जीत लेती है.
बधाई!!!
प्रेम की उमंग जीवन को गतिशील .सकारत्मक बना रही है .सुंदर कविता के लिए बधाई .
hindi yugm does not have editing capability at all...,,,,,, god bless them
लेकिन
जिस दिन
खुदा की नज़र
हटेगी
उस वक़्त...
आब जी,
कमाल का लिखा है आपने....
बेशुभा___ ये शब्द शायद बे शुब्हा हो....
और शायद अनाम जी ने इसी के बारे में कहना चाहा हो....
इसे ठीक कीजिये...
ये मिस्टेक हमसे भी बहुत होती है...
फिर से
इस शानदार नज़्म के लिए बधाई
विनोद जी
कविता के मर्म को समझने के लिए शुक्रिया.
--
Regards
-Deep
मंजू जी
बहुत बहुत शुक्रिया.
--
Regards
-Deep
मनु जी,
शुक्रिया ..!!
शायद सही कहा आपने, येः शब्द ही शायद कुछ समस्या है, और अगर गलत भी है, तो इसे बदला जा सकता है, आखिर नज़्म में उसके भाव ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, ना कि शब्द.. विन्यास भावों के बाद ही आता है, और मुझे कोई भी समस्या नहीं है अगर येः गलत है तो इसे बदलने में.
आखिर, झुकने से कोई छोटा तो नहीं हो जाता ना.. अगर कुछ सीखने को मिले तो उस में बुराई क्या है.
इक बार फिर से
नज़्म का मर्म समझने के लिए तह ए दिल से शुक्रिया.
--
Regards
-Deep
काश दुनिया के सारे देश भी तू-तू-मै-मै छोड़कर मिलकर’ ’हम’ बनने के बारे मे सोचे..इतनी गहरी बात के लिये बधाई!
गहरे भावो से गुँथी अहम् भाव को त्यागकर एकाकार होने को प्रेरित करती कविता ..बहुत बधाई ..!!
तू और मैं
दो अलग जिस्म
जुदा रूह बेशक हों
बेशुभा
दोनों के मायने अलग हों
तू तू है
मेरे और ही रंग हैं
हाँ.., सच है
तू और मैं
ज़िन्दगी के इस
मुअम्मे के
छोर के दो हर्फ़ हैं......hmmm dhara or aakash ki maanind
लेकिन
जिस दिन
खुदा की नज़र
हटेगी
उस वक़्त
तू और मैं
मौका देख
उस से नज़र बचा कर
चुपके से आ मिलेंगे.....prem me chori-chori milne ka swaroop...sadharan kintu manbhavak soch...kintu khud ki nazar hatne par kyu
wo kya prem ka dushman hai..??
और तेरे मेरे बीच
न कोई मज़हब
न जात, न धर्म
और न ही कोई रिश्ता आएगा
और उस दिन
तू और मैं
मिलकर 'हम' बनायेंगे
और हमारे नए मायने
....!!!aviral prem ki chatha sanjoye hue bahut komal panktiyan jo dikhati hai ek pavitr or amar prem ka saundrya
लोग सदियों दोहराएँगे....kuch jada ho gaya
प्रेम को बहुत ही सुन्दर शब्दों में ढाला आपने, बहुत ही सुन्दर
बहुत बहुत बधाई
धन्याद
विमल कुमार हेडा
और तेरे मेरे बीच
न कोई मज़हब
न जात, न धर्म
और न ही कोई रिश्ता आएगा
और उस दिन
तू और मैं
मिलकर 'हम' बनायेंगे
और हमारे नए मायने
लोग सदियों दोहराएँगे....!!!
Aazadi ke samay se jaat, dharm to hindustaan ke vikaas mein roda the hi, ab kuch siyaasi logon ki wajah se raajyon mein bhi kheencha taani ho gayi hai.
Na jaane kab Tu aur Main milenge aur Hum banega.
Multi-dimentional rachna ke liye bahut bahut badhai Deepali.
apporva ji, vaibhav, vaani ji, vimal ji, neer..
aap sabhi ko tah e dil se shukriya. :)
दीपाली जी आपने लिखा
तू और मैं
दो अलग जिस्म
मेरे हिसाब से दो जिस्म लफ्ज़ बढ़िया नहीं लग रहा है क्योंकि इस का कुछ और मतलब भी कोई निकल सकता है शायद यहाँ पर बदन लफ्ज़ ज्यादा माकूल रहेगा.
लेकिन
जिस दिन
खुदा की नज़र
हटेगी
उस वक़्त
तू और मैं
मौका देख
उस से नज़र बचा कर
चुपके से आ मिलेंगे
यहाँ पर एक अजीब सी बात लग रही है जैसे खुदा भी मुहब्बत का दुश्मन है. यह बात कुछ जमी नहीं.
न कोई मज़हब
न जात, न धर्म
इन तीन चीज़ों का एक ही मतलब होता है तकरीबन तकरीबन. यहाँ पर कुछ और चीजे भी कही जा सकती थी.
माफ़ कीजियेगा. मुझे जो सही लग रहा है मैं वही कह रहा हूँ.
जिस तरह से आपने पहले कुछ नज़्म पेश की थी. वैसी बानगी मुझे इसमें नज़र नहीं आई.
@शमिख जी,
मेरी नज़्म में उर्दू भाषा प्रयोग की गई है, तो येः इक ख़ास कारण है की यहाँ जिस्म शब्द प्रयोग किया गया, बदन शब्द हिंदी भाषा का हो जायेगा, जहाँ येः काफी खटकेगा भी और गलत भी होगा.
'खुदा' लफ्ज़ उन लोगो के लिए इस्तेमाल किया गया है, जो लोगो पर हुकूमत करना चाहते हैं, समाज के वो ठेकेदार जो जात और धर्म के नाम पर लोगो को अलग करते हैं, येः नज़्म दर्द है उन दो प्रेमियों का जिनमें से इक हिन्दू है तो इक मुस्लिम. इक कोशिश है उनकी तड़प को सामने लाने की, कि किस तरह से लोग मोहब्बत को भी बेडियों में जकड के रखते हैं.
येः लफ्जों का दोहराव, जैसे, जात धर्म, मज़हब.. रिश्ता.. बस उस दर्द को फिर से जागाने के लिए किया गया है.
मज़हब वो कहता है, क्यूंकि वो मुस्लिम है, जात लड़की हिन्दू है तो उसके यहाँ मानी जाती है, धर्म दोनों के अलग हैं, जो इनका सबसे बड़ा दुःख है,
आप से गुजारिश करुँगी, इस नज़्म को इक बार फिर से दिल से पढिये, मुझे यकीन है आप इसके दर्द तक पहुच पायेंगे.
नज़्म को वक़्त देने के लिए शुक्रिया. :)
--
Regards
-Deep
बेहतरीन! खुदा को नज़र हटानी ही होगी
दीपाली जी
मैंने आपके कमेन्ट से आपकी नज़्म की बारीकी को समझा लेकिन एक बात सोचिये आपने खुदा लफ्ज़ उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जो धर्मं के ठेकेदार हैं. लेकिन यह बात नज़्म से कहाँ ज़ाहिर हो रही है के यह बात आपने धर्मं के ठेकेदारों के लिए कही है. क्योंकि अगर नज़्म से ज़ाहिर होती तो मैं यह कमेन्ट नहीं करता की खुदा मुहब्बत का दुश्मन है.
और हाँ बदन लफ्ज़ उर्दू का ही है. हिंदी का नहीं.
Multi-dimentional rachna ke liye bahut bahut badhai Deepali
हँसी आती है ऐसे comments पढ़ कर ..
नीर साहब प्रेम में धर्म,जातीय और भाषाई बंदिशें आजादी से पहले भी थी ,और ईश्वर की कृपा से अंतर्राज्यीय प्रेम हमारे यहाँ स्वीकार्य है
केवल एक-विमीय रचना ही है ..multidimensional कह कर हास्य की स्थिति उत्पन्न न करें
@ Faraz saheb...
behas to lambhi hi chalti rahegi, koshish rahegi agli rachna se aap santusht ho jayein.
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