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Tuesday, June 23, 2009

इंतज़ार एक ठण्ड है


हिन्द-युग्म की मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में बहुत से नये और युवा प्रतिभागियों ने हमें अपनी कविताएँ भेजी और यह एहसास भी कराया कि नई कलम में भी नया ज़ादू है। दिल्ली में रहने वाली युवा कवयित्री दीपाली, 'आब' तखल्लुस से कविताएँ लिखती हैं। ये चाहती हैं कि युवा पीढी में भी साहित्य के प्रति प्रेम जागृत हो। ये मानती हैं कि आजकल के माहौल में जिस प्रकार की शायरी पनप रही है वो शायरी को धीरे धीरे दीमक की भाँति खा रही है। कविता पढने और लिखने का शौक इन्हें बचपन से ही रहा है। दीपाली इसी बात को ऐसे कहती हैं कि कविता इनका प्रेम है। संवेदनाओं को उजागर करना इन्हें अत्यंत प्रिय है, मनुष्य की अनेक संवेदनाएं ऐसी होती हैं जो अनछुई, अनसुनी रह जाती हैं, उन्ही संवेदनाओं को ये सामने लाने का प्रयास करती हैं। इनका यही प्रयास है कि जितना इन्होंने सीखा है, उसे दूसरो तक भी पहुँचा पायें। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करने के उपरांत दिल्ली में ही एक डिजाइनर स्टोर संभालती हैं। और साथ ही साथ उच्च-स्तरीय डिग्री को भी हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं।

कविता- ठण्ड

चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है
कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!

*पैराहन: लिबास


प्रथम चरण मिला स्थान- सातवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- सोलहवाँ

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49 कविताप्रेमियों का कहना है :

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
दीपाली जी ने दर्द को उकेर ही दिया है, नवीन उपमानों का प्रयोग कविता में चार-चांद लगाता है.
दीपाली जी को अच्छी कविता के लिये बधाई और शुभकामनायें उन्हें ऐसी ठण्ड से न गुजरना पड़े.

रंजना का कहना है कि -

वाह वाह वाह !!! शब्दों की कलाकारी और भावों का अभिव्यंजन देखते ही बनता है.....बहुत ही सुन्दर रचना....सतत सुन्दर लेखन हेतु शुभकामनायें.

Unknown का कहना है कि -

umda kavita
kavita jaisi kavita
_______________badhaai yogya kavita !

Jitendra Dave का कहना है कि -

Dard Ki Dil Choone Vaali Abhvyakti. Sundar Kavita. Aise Hi Likhti Rahein...

amar barwal 'Pathik' का कहना है कि -

दीपाली जी। आपकी कविता एक शाश्वत सत्य की तरह भीतर बहुत भीतर उतर जाती है । आप के शब्द बहुत गहरा असर करते हैं बहुत बहुत बधायी...

masoomshayer का कहना है कि -

पढ़ के एक संतोष मिला अभी युवा वर्ग साहित्य को भूला नही है मेरे पास आब जैसे शब्द होते तो अच्छी सी प्रशंसा लिखता अभी तो बस आशीर्वाद लिख रहा हूं की ऐसे बहुत से मुकाम हासिल होते रहें अगर अच्छा लिखने वाले आएँगे तो अच्छा पढ़ने वाले लोग भी मिलते रहेंगे

ओम आर्य का कहना है कि -

ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!

sahi mano in panktiyo par mera jaan nishar ho jaye to bhi kam hogi....g888888888888888888

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

मुझे कविता की ज्यादा पहचान नही, लेकिन आप को पढना बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!

बहुत खूब...............

कविता की पहली चार पंक्तियों का बाकी कविता से जुडाव समझ में नहीं आया.......

अरुण अद्भुत

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है.

दीपाली जी,
अति सुंदर आपकी रचना
लगता है! आगे भी अच्छा पढ़ने को मिलेगा |
बहुत-बहुत बधाई |

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ राष्ट्रप्रेमी जी

इस सुन्दर सराहना और इतनी सुन्दर दुआओं के लिए, स-ह्रदय आभार.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ रंजना जी

शुभकामनाओं और कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद..बस इसी तरह से दुआएं देते रहिएगा.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ अलबेला जी,

बहुत बहुत शुक्रिया

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ जीतेन्द्र जी,
मेरी कविता के शब्द भावनाओं तक पहुचे येः मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं, बहुत बहुत धन्यवाद दुआओं के लिए.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@अमर जी,

बहुत बहुत शुक्रिया, फिर कहती हूँ येः किसी उपलब्धि से कम नहीं कि भावनाएं भावनाओं तक पहुंचें, आभारी हूँ शैलेश जी और हिन्दयुग्म के संचालकों की.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ अनिल भैया, उर्फ़ मासूम शायर जी..

आपका हाथ हमेशा मेरे सर पर दुआएं बन के रहा है, बस इतनी सी गुजारिश है येः हाथ कभी हटे नहीं..
बहुत बहुत शुक्रिया भैया, मेरी कविता को पसंद करने के लिए.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ ॐ जी,

येः हिंद युग्म पर मेरी पहली कविता थी, कभी सोचा भी नहीं था की सबको इतनी पसंद आएगी, जान निसार करने की तो बात बहुत बड़ी है, आप सभी को पसंद आई वही बहुत है मेरे लिए.
शुक्रिया.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ राज जी,

कविता का ज्ञान होना इतना जरुरी नहीं जितना कविता के प्रति प्रेम होना जरुरी है, आपको मेरी कविता पसंद आई, बहुत बहुत धन्यवाद.

manu का कहना है कि -

चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है ,,,

पहले राष्ट्र प्रेमी जी का कमेंट देखा...पूरी की पूरी कविता थी ..बस ये ही ४ लाइने नहीं थीं...
होता है,,,,,हमेशा ,
अगर इन्हें भी कोपी-पेस्ट कर देते तो पूरी कविता ही कोपी हो जाती,,,,
फिर अरुण जी ने भी इन्ही पहले ४ लाइनों का ज़िक्र किया,,,
पर मुझे तो ये सही ही लग रही हैं,,
पूरी कविता के साथ इनका सम्बन्ध साफ़ साफ़ महसूस किया जा सकता है,,,
भले ही समझाया ना जा सके,,( कम से कम मैं तो महसूस कर राहा हूँ,,,,)
बहुत खूबसूरत रचना,,,,

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ अद्भुत जी,

कविता के पहले बंद में ठण्ड का जिक्र किया गया है, येः दर्शाया गया है की ठण्ड कितनी शदीद( strong ) है, और चांदनी का पैराहन जो मैंने पहना है वो ( जो की उन्होंने दिया था) अब हल्का हो चूका है की अब ठण्ड रूकती ही नहीं,
और दुसरे बंद में उनसे गुहार लगे है की चले आओ इस से पहले की रूह को बचाने के लिए मैं जिस्म को न ख़त्म कर दूँ.
येः केवल भावनाओं को उपमाओं में बाँधने की एक प्यारी सी कोशिश की है,
आप ने पसंद किया, बहुत बहुत शुक्रिया.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ अम्बरीश जी,

दुआएं बनी रहे, इश्वर ने चाह तो आगे भी आप मेरी रचनाओं को हिन्दयुग्म पर पढ़ पायेंग.
कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ मनु जी

कविता के भाव समझने और महसूस करने के लिए स-ह्रदय धन्यवाद.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ hind yugm ke liye..


और एक ख़ास धन्यवाद करना चाहूंगी हिन्दयुग्म के सञ्चालन मंडल और शैलेश जी का जिहोने मुझे येः अवसर दिया की मैं अपने शब्दों को आप सभी तक पंहुचा सखुन.

आभारी
दिपाली

mohammad ahsan का कहना है कि -

mujhe bhi is kavita ke prashanskon mein gin liijiye.

manu का कहना है कि -

एक जो इन के परिचय में शायरी का ज़िक्र है,,,वो सही है,,,
सही में लगता है के आज की शायरी एक दीमक ई जो ,,
शायरी को चाट कर जायेगी,,,,एक गीत याद आया..यूं तो गजल है लता जी की आवाज़ में..

रहीं इश्क में न वो गर्मियां, रहीं हुस्न में न वो शोखियाँ ,
न वो गजनवी में तड़प रही, न वो ख़म है जुल्फे-अयाज़ में,,

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत अच्छे... वाह..
बधाई...

सदा का कहना है कि -

तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....

बहुत ही सुन्‍दर अभिवयक्ति ।

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ अहसान जी

नज़्म को सराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ मनु जी,

भाव समझने के लिए एक बार फिर से शुक्रिया.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ तपन जी

बहुत बहुत शुक्रिया.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ सदा जी,

सराहना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

सबको अलग अलग आभार प्रकट कारने का आपका अंदाज बहुत पसंद आया |
धन्यवाद |

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

सबको अलग अलग आभार प्रकट करने का आपका अंदाज बहुत पसंद आया |
धन्यवाद |

Abha Khetarpal का कहना है कि -

तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है


wah kya baat hai Deep...itna sunder to maine shayad bahut kam hi pada hoga...kamaal ka likha hai tumne...
yunhi likhti raho...
god bless you...

Abha Khetarpal का कहना है कि -

तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है


wah kya baat hai Deep...itna sunder to maine shayad bahut kam hi pada hoga...kamaal ka likha hai tumne...
yunhi likhti raho...
god bless you...

विश्व दीपक का कहना है कि -

दीपाली जी!
आपकी रचना बेहद पसंद आई। नई-नई उपमाओं और बिंबों का बड़ा हीं सटीक प्रयोग किया है आपने।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Shamikh Faraz का कहना है कि -

ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!


बहुत ही फिलोस्फिकल कविता है और साथ ही लफ्ज़ बहुत खुबसूरत हैं.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ ambrish ji

bahut bahut shukriya

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ Abha di..

aapko thanx nahi kahungi, aapko kahungi

di l love you a lot..!!

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ Deepak ji


bahut bahut shukriya,saraahna ke liye.!

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ faraz saheb

bahut bahut shukriya

manu का कहना है कि -

ye wakai adbhut hai..

Manju Gupta का कहना है कि -

Viyog aur pidayukt kavita ne dil ko chu liya hai.
Badhayi.

अर्चना तिवारी का कहना है कि -

चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है

दीपाली जी बहुत ही सुन्दर रचना....

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@manu ji

aapne teesri baar is nazm ko padha...bahut bahut shukriya

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ manju ji

bahut bahut dhanyawaad

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ archana ji

shukriya archana ji

Charanjeet का कहना है कि -

beautiful metaphors;khoobsoorat khayaalaat;bahut khoob

Unknown का कहना है कि -

its one of the best ihv read in contemporay writing.. :) HATS OFF.. :)

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