हिन्द-युग्म की मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में बहुत से नये और युवा प्रतिभागियों ने हमें अपनी कविताएँ भेजी और यह एहसास भी कराया कि नई कलम में भी नया ज़ादू है। दिल्ली में रहने वाली युवा कवयित्री दीपाली, 'आब' तखल्लुस से कविताएँ लिखती हैं। ये चाहती हैं कि युवा पीढी में भी साहित्य के प्रति प्रेम जागृत हो। ये मानती हैं कि आजकल के माहौल में जिस प्रकार की शायरी पनप रही है वो शायरी को धीरे धीरे दीमक की भाँति खा रही है। कविता पढने और लिखने का शौक इन्हें बचपन से ही रहा है। दीपाली इसी बात को ऐसे कहती हैं कि कविता इनका प्रेम है। संवेदनाओं को उजागर करना इन्हें अत्यंत प्रिय है, मनुष्य की अनेक संवेदनाएं ऐसी होती हैं जो अनछुई, अनसुनी रह जाती हैं, उन्ही संवेदनाओं को ये सामने लाने का प्रयास करती हैं। इनका यही प्रयास है कि जितना इन्होंने सीखा है, उसे दूसरो तक भी पहुँचा पायें। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करने के उपरांत दिल्ली में ही एक डिजाइनर स्टोर संभालती हैं। और साथ ही साथ उच्च-स्तरीय डिग्री को भी हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं।
कविता- ठण्ड
चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है
कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
*पैराहन: लिबास
प्रथम चरण मिला स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सोलहवाँ
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49 कविताप्रेमियों का कहना है :
कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
दीपाली जी ने दर्द को उकेर ही दिया है, नवीन उपमानों का प्रयोग कविता में चार-चांद लगाता है.
दीपाली जी को अच्छी कविता के लिये बधाई और शुभकामनायें उन्हें ऐसी ठण्ड से न गुजरना पड़े.
वाह वाह वाह !!! शब्दों की कलाकारी और भावों का अभिव्यंजन देखते ही बनता है.....बहुत ही सुन्दर रचना....सतत सुन्दर लेखन हेतु शुभकामनायें.
umda kavita
kavita jaisi kavita
_______________badhaai yogya kavita !
Dard Ki Dil Choone Vaali Abhvyakti. Sundar Kavita. Aise Hi Likhti Rahein...
दीपाली जी। आपकी कविता एक शाश्वत सत्य की तरह भीतर बहुत भीतर उतर जाती है । आप के शब्द बहुत गहरा असर करते हैं बहुत बहुत बधायी...
पढ़ के एक संतोष मिला अभी युवा वर्ग साहित्य को भूला नही है मेरे पास आब जैसे शब्द होते तो अच्छी सी प्रशंसा लिखता अभी तो बस आशीर्वाद लिख रहा हूं की ऐसे बहुत से मुकाम हासिल होते रहें अगर अच्छा लिखने वाले आएँगे तो अच्छा पढ़ने वाले लोग भी मिलते रहेंगे
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
sahi mano in panktiyo par mera jaan nishar ho jaye to bhi kam hogi....g888888888888888888
मुझे कविता की ज्यादा पहचान नही, लेकिन आप को पढना बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
बहुत खूब...............
कविता की पहली चार पंक्तियों का बाकी कविता से जुडाव समझ में नहीं आया.......
अरुण अद्भुत
कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है.
दीपाली जी,
अति सुंदर आपकी रचना
लगता है! आगे भी अच्छा पढ़ने को मिलेगा |
बहुत-बहुत बधाई |
@ राष्ट्रप्रेमी जी
इस सुन्दर सराहना और इतनी सुन्दर दुआओं के लिए, स-ह्रदय आभार.
@ रंजना जी
शुभकामनाओं और कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद..बस इसी तरह से दुआएं देते रहिएगा.
@ अलबेला जी,
बहुत बहुत शुक्रिया
@ जीतेन्द्र जी,
मेरी कविता के शब्द भावनाओं तक पहुचे येः मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं, बहुत बहुत धन्यवाद दुआओं के लिए.
@अमर जी,
बहुत बहुत शुक्रिया, फिर कहती हूँ येः किसी उपलब्धि से कम नहीं कि भावनाएं भावनाओं तक पहुंचें, आभारी हूँ शैलेश जी और हिन्दयुग्म के संचालकों की.
@ अनिल भैया, उर्फ़ मासूम शायर जी..
आपका हाथ हमेशा मेरे सर पर दुआएं बन के रहा है, बस इतनी सी गुजारिश है येः हाथ कभी हटे नहीं..
बहुत बहुत शुक्रिया भैया, मेरी कविता को पसंद करने के लिए.
@ ॐ जी,
येः हिंद युग्म पर मेरी पहली कविता थी, कभी सोचा भी नहीं था की सबको इतनी पसंद आएगी, जान निसार करने की तो बात बहुत बड़ी है, आप सभी को पसंद आई वही बहुत है मेरे लिए.
शुक्रिया.
@ राज जी,
कविता का ज्ञान होना इतना जरुरी नहीं जितना कविता के प्रति प्रेम होना जरुरी है, आपको मेरी कविता पसंद आई, बहुत बहुत धन्यवाद.
चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है ,,,
पहले राष्ट्र प्रेमी जी का कमेंट देखा...पूरी की पूरी कविता थी ..बस ये ही ४ लाइने नहीं थीं...
होता है,,,,,हमेशा ,
अगर इन्हें भी कोपी-पेस्ट कर देते तो पूरी कविता ही कोपी हो जाती,,,,
फिर अरुण जी ने भी इन्ही पहले ४ लाइनों का ज़िक्र किया,,,
पर मुझे तो ये सही ही लग रही हैं,,
पूरी कविता के साथ इनका सम्बन्ध साफ़ साफ़ महसूस किया जा सकता है,,,
भले ही समझाया ना जा सके,,( कम से कम मैं तो महसूस कर राहा हूँ,,,,)
बहुत खूबसूरत रचना,,,,
@ अद्भुत जी,
कविता के पहले बंद में ठण्ड का जिक्र किया गया है, येः दर्शाया गया है की ठण्ड कितनी शदीद( strong ) है, और चांदनी का पैराहन जो मैंने पहना है वो ( जो की उन्होंने दिया था) अब हल्का हो चूका है की अब ठण्ड रूकती ही नहीं,
और दुसरे बंद में उनसे गुहार लगे है की चले आओ इस से पहले की रूह को बचाने के लिए मैं जिस्म को न ख़त्म कर दूँ.
येः केवल भावनाओं को उपमाओं में बाँधने की एक प्यारी सी कोशिश की है,
आप ने पसंद किया, बहुत बहुत शुक्रिया.
@ अम्बरीश जी,
दुआएं बनी रहे, इश्वर ने चाह तो आगे भी आप मेरी रचनाओं को हिन्दयुग्म पर पढ़ पायेंग.
कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद.
@ मनु जी
कविता के भाव समझने और महसूस करने के लिए स-ह्रदय धन्यवाद.
@ hind yugm ke liye..
और एक ख़ास धन्यवाद करना चाहूंगी हिन्दयुग्म के सञ्चालन मंडल और शैलेश जी का जिहोने मुझे येः अवसर दिया की मैं अपने शब्दों को आप सभी तक पंहुचा सखुन.
आभारी
दिपाली
mujhe bhi is kavita ke prashanskon mein gin liijiye.
एक जो इन के परिचय में शायरी का ज़िक्र है,,,वो सही है,,,
सही में लगता है के आज की शायरी एक दीमक ई जो ,,
शायरी को चाट कर जायेगी,,,,एक गीत याद आया..यूं तो गजल है लता जी की आवाज़ में..
रहीं इश्क में न वो गर्मियां, रहीं हुस्न में न वो शोखियाँ ,
न वो गजनवी में तड़प रही, न वो ख़म है जुल्फे-अयाज़ में,,
बहुत अच्छे... वाह..
बधाई...
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति ।
@ अहसान जी
नज़्म को सराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
@ मनु जी,
भाव समझने के लिए एक बार फिर से शुक्रिया.
@ तपन जी
बहुत बहुत शुक्रिया.
@ सदा जी,
सराहना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
सबको अलग अलग आभार प्रकट कारने का आपका अंदाज बहुत पसंद आया |
धन्यवाद |
सबको अलग अलग आभार प्रकट करने का आपका अंदाज बहुत पसंद आया |
धन्यवाद |
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
wah kya baat hai Deep...itna sunder to maine shayad bahut kam hi pada hoga...kamaal ka likha hai tumne...
yunhi likhti raho...
god bless you...
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
wah kya baat hai Deep...itna sunder to maine shayad bahut kam hi pada hoga...kamaal ka likha hai tumne...
yunhi likhti raho...
god bless you...
दीपाली जी!
आपकी रचना बेहद पसंद आई। नई-नई उपमाओं और बिंबों का बड़ा हीं सटीक प्रयोग किया है आपने।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ
चले आओ....!!
बहुत ही फिलोस्फिकल कविता है और साथ ही लफ्ज़ बहुत खुबसूरत हैं.
@ ambrish ji
bahut bahut shukriya
@ Abha di..
aapko thanx nahi kahungi, aapko kahungi
di l love you a lot..!!
@ Deepak ji
bahut bahut shukriya,saraahna ke liye.!
@ faraz saheb
bahut bahut shukriya
ye wakai adbhut hai..
Viyog aur pidayukt kavita ne dil ko chu liya hai.
Badhayi.
चांदनी का पैराहन*
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है
दीपाली जी बहुत ही सुन्दर रचना....
@manu ji
aapne teesri baar is nazm ko padha...bahut bahut shukriya
@ manju ji
bahut bahut dhanyawaad
@ archana ji
shukriya archana ji
beautiful metaphors;khoobsoorat khayaalaat;bahut khoob
its one of the best ihv read in contemporay writing.. :) HATS OFF.. :)
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