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Wednesday, June 24, 2009

पीड़ा की गठरी


पीड़ा की गठरी
तारों की नोक पर टंगी थी
बेवफा बादल ने
उस को गला के
मुझपे ही बरसा दिया
आत्मा में
चुभे तुम्हारे शब्द मुस्कुरा दिए
मेरे आस-पास
दर्द की अमर बेलें उगने लगीं
मुझको मुझसे ही नोच
अलग करने लगी
फफोलों से रिसता मेरा वजूद
चीखता रहा
रात देहरी पर
रोती रही
माँ की दुआएं
खटखटाती रहीं
सारी रात दर मेरा
पर एक झिर्री भी न मिली
अंदर आने को

मेरा सच
मेरे पांव में चुभता रहा
दर्द की धारा
जमीं रंगती रही
मैं खुद अपनी लाश
गोदी में लिए सिसकती रही
सुबह धरती ओस से भर गई

कवयित्री- रचना श्रीवास्तव

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मेरा सच
मेरे पांव में चुभता रहा
दर्द की धारा
जमीं रंगती रही
मैं खुद अपनी लाश
गोदी में लिए सिसकती रही
सुबह धरती ओस से भर गई

रचना जी सुन्दर कविता के लिए बधाई. आपने बहुत ही फिलोस्फिकल अंदाज़ में कही कविता.

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

मेरा सच
मेरे पांव में चुभता रहा
दर्द की धारा
जमीं रंगती रही
मैं खुद अपनी लाश
गोदी में लिए सिसकती रही
सुबह धरती ओस से भर गई
रचना जी इतनी दर्दीली, भावुक व दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिये बधाई.

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

रचनाजी, इस दर्द भरी भावुक अभिव्यक्ति के पीछे शायद यही राज होगा |

"आत्मा में
चुभे तुम्हारे शब्द मुस्कुरा दिए"

अच्छी दार्शनिक अंदाज भरी रचना |
बधाई !

सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

शारदा अरोरा का कहना है कि -

पीडा की सुन्दर अभिव्यक्ति , खुद अपनी लाश , क्या वो अरमानों की लाश है ?
ऐसे ही सवालों को जन्म देती , दुःख के किनारों को छूती ......

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में दर्द का इज़हार . मुबारक हो
मुहम्मद अहसन

manu का कहना है कि -

एक भी शब्द तो ऐसा नहीं लिखा की जिसे इग्नोर किया जा सके,,,,
या एक भी शब्द ज्यादा हो,,,kamaal की kavitaa taraashee है rachnaa जी आपने,,,

दर्द की अमर बेलें उगने लगीं

इन amar belon का मतलब तो आप जानती ही होंगी,,,
बहुत सुंदर बयान किया है आपने,,,
आप वाकई उस्ताद हैं...

manu का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
neelam का कहना है कि -

आत्मा में
चुभे तुम्हारे शब्द मुस्कुरा दिए
मेरे आस-पास
दर्द की अमर बेलें उगने लगीं
मुझको मुझसे ही नोच
अलग करने लगी
फफोलों से रिसता मेरा वजूद
चीखता रहा
रात देहरी पर
रोती रही
माँ की दुआएं
खटखटाती रहीं
kya dard hai ????????
behtareen

दिपाली "आब" का कहना है कि -

niyaahati khoobsurat man ko bechain kar dene wali nazm kahi hai aapne..

ek lambe arse ke baad Amrita preetam ji ki yaad dila di kisi rachna ne, bahut bahut badhai

सदा का कहना है कि -

माँ की दुआएं
खटखटाती रहीं
सारी रात दर मेरा
पर एक झिर्री भी न मिली
अंदर आने को

मेरा सच
मेरे पांव में चुभता रहा
दर्द की धारा
जमीं रंगती रही
मैं खुद अपनी लाश
गोदी में लिए सिसकती रही
सुबह धरती ओस से भर गई

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

कविता की शुरूआत में
"पीड़ा की गठरी
तारों की नोक पर टंगी थी" के बहाने "तारों" का जिक्र

और अंत में
"सुबह धरती ओस से भर गई" के सहारे "ओस" की बातें..कविता को एक अलग हीं दुनिया में ले जा रही हैं।

बीच की हरेक पंक्ति से दर्द छलक रहा है और यही कविता की सार्थकता भी है।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

rachana का कहना है कि -

आप सभी के इन्ही स्नेह शब्दों ने मुझे कुछ लिखने के लायक बनाया है ये स्नेह ही मेरी पूंजी है आशा है मेरा ये खजाना सदा बढेगा कभी कम न होगा .
आप सभी का धन्यवाद
रचना

Riya Sharma का कहना है कि -

फफोलों से रिसता मेरा वजूद
चीखता रहा
रात देहरी पर
रोती रही
माँ की दुआएं
खटखटाती रहीं
सारी रात दर मेरा
पर एक झिर्री भी न मिली
अंदर आने को

Amazing !!!

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

आत्मा में
चुभे तुम्हारे शब्द मुस्कुरा दिए
मेरे आस-पास
दर्द की अमर बेलें उगने लगीं
*
बहुत ही प्रभावशाली रचना,
सहज प्रवाही | मन तक पहुंची |
सादर,

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

मेरा सच
मेरे पांव में चुभता रहा
दर्द की धारा
जमीं रंगती रही
मैं खुद अपनी लाश
गोदी में लिए सिसकती रही
सुबह धरती ओस से भर गई
......प्रभावशाली रचना

Manju Gupta का कहना है कि -

Shishak sarthak rachana ke liye
badhayii.

अर्चना तिवारी का कहना है कि -

रचना जी सुन्दर कविता..भावुक व दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई

Anonymous का कहना है कि -

"दर्द की अमर बेलें उगने लगीं"
"सुबह धरती ओस से भर गई"
जैसे साकार हो उठे.
अफसोस कि मैंने "पीड़ा की गठरी" बहुत देर से पढ़ी इतनी जीवंत प्रस्तुति के लिए धन्यवाद्. भावनानाएं यूँ ही छलकती रहें - शुभकामनाएं
-------------
राकेश कौशिक

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