गूंजता सुमधुर स्वर धरा नभ
छेड़ा किसने स्वप्निल तान .
पल्लवित पुलकित पावन प्रकृति
सुना रही क्या मधुरिम गान .
व्याकुल तन था अंतस अधीर
जीवन प्रस्तर नीरव भान .
सुचि सुर संयत शीतल समीर
आ आ कर भरे हृदय प्राण .
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान .
पावन अंचल मन प्रांगण मौन
संचित पावक गात म्लान .
झरनों सी झर झर धाराएँ
बिखरे सुर मृदु स्वप्न समान .
धधक धधक कर जल रही अग्नि
फूट फूट नयनों से धार .
बह बह सुर संगीत अलौकिक
हंस हंस भरते जीवन सार .
आतप तापित गरल प्रवाहित
शापित कलुषित उलझी राह .
सरगम सरिता श्वास जगाती
भरती जग जीने की चाह .
कवि कुलवंत सिंह
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपकी कलम को नमन.....
अप्रतिम अद्वितीय रचना....मन को मुग्ध कर गयी....वाह !!!
kahane ko shabda nahi hai ...itana surmay ......itana madhur ......bilkul saras gaan
व्याकुल तन था अंतस अधीर
जीवन प्रस्तर नीरव भान .
सुचि सुर संयत शीतल समीर
आ आ कर भरे हृदय प्राण .
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान .
मंत्रमुग्ध करने वाला सरस गान |
बधाई !
आतप तापित गरल प्रवाहित
शापित कलुषित उलझी राह .
सरगम सरिता श्वास जगाती
भरती जग जीने की चाह .
कुलवन्त जी खोजने से कलुषित वातावरण में भी जीने की राह मिल ही जाती है.
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान ....बहुत दिनों बात ऐसी रचना पड़ने को मिली,,अच्छी रचना,,,बहुत-२ बधाई!
उच्च कोटि की रचना . बहुत बधाई
मुहम्मद अहसन
बहुत ही सुन्दर रचना ।
बहुत ही सुन्दर रचना ।
madhur rachna.
aapki is tarah ki rachnaayen jaishankar prashaad ji ki kaamayni v aanso jaisi amulya kratiyon ki yaad dilaa jaati hain
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान
कुलवंत जी अद्भुत रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
गूंजता सुमधुर स्वर धरा नभ
छेड़ा किसने स्वप्निल तान .
पल्लवित पुलकित पावन प्रकृति
सुना रही क्या मधुरिम गान .
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई ।
कुलवंत जी,
बहुत दिनों के बाद आपने ऐसी कोई रचना लिखी है। मुझे इस तरह की कविता हमेशा हीं अच्छी लगी है।
बधाई स्वीकारें।
चलिए अब थोड़ा कविता का पोस्टमार्टम करता हूँ :) -
"आ आ कर भरे हृदय प्राण" -इसमें शायद "मे" छूट गया है।
इसी तरह "छेड़ा किसने स्वप्निल तान" में "छेड़ा" की जगह "छेड़ी" होना चाहिए।
"भरती जग जीने की चाह"- यहाँ पर "जग" का क्या अर्थ है- दुनिया या जगना.. अगर जगना है तो "जगाती" इस पंक्ति में पहले हीं आ चुका है और अगर दुनिया है तो यहाँ भी "में" की कमी है।
मेरे ये सारे प्रश्न शायद सही न हों,लेकिन मुझे जो लगा वो मैने लिख दिया। कृप्या जवाब देंगे।
-विश्व दीपक
हर लिहाज से बहतरीन कविता है। प्रवाह कमाल का है,अर्थ बेहद खूबसूरत और शब्द और भाषा तो बेमिसाल।
सुंदर
आप सभी प्रिय मित्रों का हार्दिक धन्यवाद
कुलवंत जी,
सुन्दर कविता, भावों से ओत-प्रोत ।
बधाई,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
व्यथित विकल विकराल वेदना
कुंठित दुख का नही निदान .
संगीत लहर विमल अनुभूति
जाग्रत प्राण सहज मुस्कान
कुलवंत जी बहुत बहुत बधाई
Alankar yukt rachana hai.
Badhayi.
मंत्रमुग्ध कर गयी...बहुत ही सुन्दर रचना
गूंजता सुमधुर स्वर धरा नभ
छेड़ा किसने स्वप्निल तान .
पल्लवित पुलकित पावन प्रकृति
सुना रही क्या मधुरिम गान .
कुलवंत जी अद्वितीय,उच्च कोटि की रचना
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