युवा कवि प्रदीप वर्मा विगत 4 महीनों से यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं और लगातार तीन बार शीर्ष 10 में रहकर एक तरह की हैट्रिक लगा चुके हैं। इस बार इनकी कविता शीर्ष 20 में शामिल रही।
कविता- दृष्टा
प्रदीप वर्मा की अन्य रचनाएँ
तुम हमेशा ही
प्रेम प्रतिध्वनि
समय की नदी
दृश्य वैसे ही रहते हैंजैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
नजदीक से देखने की
अभ्यस्थ आँखों को
दिखाई नहीं देती
उम्मीद की रोशनी
उसे दिखती है
लोगों की भीड़,
दौड़ती-भागती,
न जाने कहाँ पहुँचने को
व्याकुल, विचलित, बे-सब्र
बनाती है चित्र, विचित्र
भय, दर्द और निरशा से भरा
धूसर, अ-स्पष्ट और अन-अभिष्ठ
दृष्टा नहीं देखता
इतने नजदीक से
दिखलाई देता है
उसे क्षितिज
क्षितिज के पूर्व के पर्वत
पर्वत से बहते झरने
झरनों से बनती नदियाँ
नदियों के किनारों पे उगे
पर्वतों जितने बूढ़े वृक्ष
वृक्षों की टहनियों से झांकता सूरज
सूरज की छन कर आती किरणें
किरणों से रोशन होते आँगन
आँगन में खेलते बच्चे
बच्चों की आँखों में उम्मीदें
नजदीक से देखने की
अभ्यस्थ आँखों को
दिखाई नही देती
उम्मीद की रोशनी
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
प्रथम चरण मिला स्थान- दसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सत्रहवाँ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रदीप जी,
बहुत ही सही कहा है :-
दृष्टा नहीं देखता
इतने नजदीक से
दिखलाई देता है
उसे क्षितिज
एक नये दृष्टीकोण से युक्त कविता नई सोच देती है अपने आस-पास देखने के लिये।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बड़ी गहरी बात कही आपने,नज़रिया सही लगा आपका।
सही द्रष्टिकोण के साथ आपकी रचना बहुत अच्छी है,,,बहुत-बहुत-बधाई!
सूरज की छन कर आती किरणें
किरणों से रोशन होते आँगन
आँगन में खेलते बच्चे
बच्चों की आँखों में उम्मीदें
नजदीक से देखने की
अभ्यस्थ आँखों को
दिखाई नही देती
उम्मीद की रोशनी
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
बहुत गहरे और सुन्दर भाव लियेच्छी कविता प्रदीप जि को बहुत बहुत बधाई
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
देखने का नज़रिया कितना कुछ बदल देता है ...इंसान की सोच भी
सुन्दर दार्शनिक रचना !!!
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
एक नयेपन के अहसास के साथ एक अच्छी रचना|
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
sacha kaha, badal jaata hai dekhne wala nazariya.
bahut hi sundar kavita kahi hai sir.
badhai
अभ्यस्थ आँखों को
दिखाई नही देती
उम्मीद की रोशनी
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
वास्तविकता यही है कुछ नहीं बदलता युगों बीत गयें हम बदलने के झूठे अह्म में स्वयं ही परेशान होते हैं.
नजदीक से देखने की
अभ्यस्थ आँखों को
दिखाई नहीं देती
उम्मीद की रोशनी
बहुत गहरे भाव, बेहतरीन प्रस्तुति बधाई ।
दृश्य वैसे ही रहते हैं
जैसे उन्हें होना चाहिये
अर्थ बदलती है केवल
देखने की रीत, दृष्टी
उम्दा रचना
NAyi soch aur naye drishtikon ko badava deti hai.
Badhayi.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)