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Sunday, March 22, 2009

सृष्टि की प्रारम्भिक और अंतिम तरंग


यूनिकवि प्रतियोगिता के फरवरी माह के शीर्ष १० सूची की अंतिम रचना कवि प्रदीप वर्मा की है। प्रदीप वर्मा की एक कविता हमने पिछले माह भी प्रकाशित की थी।

पुरस्कृत कविता- प्रेम प्रतिध्वनि

जब सब कुछ लौट जायेगा
अपने मूल में
सूर्य, चंद्र, पृथ्वी सब पिघल जायेंगे
और समाहित हो जाएँगे
उसी शून्य में
जहाँ से प्रकृति का प्रथम गीत
गूँजित हुआ था

तब भी मूल ध्वनि-तरंगें
यूँ ही गूँजित होती रहेंगी
तरंगें जिन पर होकर सवार
तुम्हारा मौन संदेश आता है
तरंगें जो हमारे मध्य के एकमात्र
अंतर को मिटाती हैं

तरंगें जो कृष्ण-बाँसुरी की तान थीं
मीरा की पीड़ा का गान थीं
जो राधा के प्रेम का मान थीं
और केवल वही तरंगें
तब भी रहेंगी
जिनमें प्रेम प्रतिध्वनित होगा


प्रथम चरण मिला स्थान- पाँचवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- दसवाँ


पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति


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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत ख्‍ूबसूरत रचना है।

Divya Narmada का कहना है कि -

अच्छी रचना, उच्चतर स्थान मिलना था.

manu का कहना है कि -

bahut hi achchhi rachnaaa lagi,,,,

Anonymous का कहना है कि -

जो राधा के प्रेम का मान थीं
और केवल वही तरंगें
तब भी रहेंगी
जिनमें प्रेम प्रतिध्वनित होगा
राधा सचमुच इसीलिए मानिनी थीं कि केशव उनका मान रखते थे।
सुन्दर रचना पर बधाई
श्यामसखा‘श्याम’

Ria Sharma का कहना है कि -

अर्थपूर्ण रचना !!
प्रथम कुछ पंक्तियाँ निस्संदेह बहुत ही खूबसूरती से लिखी गयीं हैं

बहुत बधाई !!!

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