यूनिकवि प्रतियोगिता की चौथी कविता के रचनाकार नाम प्रदीप वर्मा मध्य-प्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर शहर में रहते हैं। भाषा और साहित्य से लगाव है इसलिये अंग्रेजी साहित्य में एम॰ ए॰ की पढ़ाई कर रहे हैं। पिछले 2 वर्ष से कविताएँ एवं अन्य लेख लिखने और सीखने का प्रयास कर रहे हैं। पेशे से एक सॉफ्टवेयर डेवलपर हैं और पढ़ाने का शौक है इसलिये "Institute of Management Studies, Devi Ahilya University, Indore" में "Visiting Faculty" के रूप में कार्यरत हैं।
पुरस्कृत कविता- तुम हमेशा ही
तुम हमेशा ही देते रहे हो
बिन मांगे
बिन कहे
उमंग, उल्लास, उत्साह
तुमने ही भरे हें मेरे मन में
तुम्हारे सामने आते ही
धुल जाता है मन
ग्लानि
क्लेश
पीड़ा
सब मिट जाते हैं
तुम्हारे चहरे का तेज़
तुम्हारी मोहक मुस्कान
तुम्हारे नयनों का सौंदर्य
तृप्त कर देता है
मेरे प्यासे मन को
बिन मांगे ही देते हो
तुम, सब कुछ
और स्वीकारते कुछ भी नहीं हो
जो कुछ भी अर्पण करता हूँ
लौटा देते हो
वापस मुझ ही को
सहज ही
किसी योगी की तरह
मैं तुम्हारे भावः में ही
मगन रहने वाल
स्वीकार कर लेता हूँ उसे भी
तुम्हारा उपहार जान
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ५, ६॰६५
औसत अंक- ५॰०१६७
स्थान- सत्रहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- २॰५, ६, ५॰०१६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰५०५५
स्थान- सोलहवाँ
अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक- ५
स्थान- चौथा
टिप्पणी- यह कविता एक प्रेम-कविता है जो कविता के वृहत्तर दायरे में प्रार्थना का स्वरूप ग्रहण कर कविता वृहत्तर आयाम देती है। समर्पण का भाव भी कविता को अर्थपूर्ण बनाता है।
पुरस्कार और सम्मान- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी लगी |
याद आ गयी जगजीत सिंह जी की गायी एक ग़ज़ल - " मेरा जो कुछ है सब उसका है , ... जितना सब चर्चा है सब उसका है ... " |
अवनीश तिवारी
तुम्हारे चहरे का तेज़
तुम्हारी मोहक मुस्कान
तुम्हारे नयनों का सौंदर्य
तृप्त कर देता है
मेरे प्यासे मन को
" प्यार की नाजुक सी अभिव्यक्ति....सुंदर"
Regards
aapko rachana ke lie bahut bahtu badhai.
www.salaamzindadili.blogspot.com
ये तो लगता है मुक्त छंद कविता है .......... पर मुझे क्या पता ये तो महाकवि परम आदरणीय अरुण मित्तल जी ही बता पाएंगे............
भाई मनु जी और अरुण जी ये तो बड़ी बेइंसाफी है इसी तरह की दो कविताओं की तो आप धज्जियाँ उडा देते हो और इस कविता पर कुछ नहीं कह रहे मुझे तो ये कविता भी उन जैसी ही लगती है ...............
kal raat ko ek kahaani jaisi cheej apne blog par daali hai......
jaaker padh lo....
pataa chal jaayegaa ke manu ne cheekhnaaa kyoon band kar diyaa hai...
बधाई स्वीकारें प्रदीप जी...
वापस मुझ ही को
सहज ही
किसी योगी की तरह
मैं तुम्हारे भावः में ही
मगन रहने वाल
स्वीकार कर लेता हूँ उसे भी
तुम्हारा उपहार जान
बहुत सुन्दर ! अंतिम जज की टीप्प्णी अर्थपूर्ण है !!
कविता का समर्पण भाव ही इस कविता को अर्थवाह बनाता हुआ कविता को महत्वपूर्ण बनाता है. सहज भाषा और सहज प्रवाह इस कविता को पठनीय बनाते हैं.
इस कविता को धन्यवाद
तुम्हारे सामने आते ही
धुल जाता है मन
ग्लानि
क्लेश
पीड़ा
सब मिट जाते हैं
कविता लिखना सीखने का प्रयास सराहनीय ,है ,आगाज अच्छा है तो अंजाम बेहद खूबसूरत होगा ही |
बिन मांगे ही देते हो
तुम, सब कुछ
और स्वीकारते कुछ भी नहीं हो
जो कुछ भी अर्पण करता हूँ
लौटा देते हो
वापस मुझ ही को
सहज ही
किसी योगी की तरह
मैं तुम्हारे भावः में ही
मगन रहने वाल
स्वीकार कर लेता हूँ उसे भी
तुम्हारा उपहार जान
कविता के भावः बहुत सुंदर हैं ये पंक्तियाँ कविता को और भी भावपूर्ण बना रही हैं
रचना
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