छठवें स्थान के कवि विवेक आसरी पिछले पांच साल से दिल्ली में पत्रकारिता में हैं और पहली बार किसी सार्वजनिक मंच पर इनकी कविता को स्थान मिल रहा है। पढ़े और बतायें कि कैसी है?
पुरस्कृत कविता- मिडल क्लास
चलो लिस्ट बनाते हैं
घर के सामान की?
नहीं, जिंदगी के सामान की
अच्छी जॉब
एक घर (3 बेडरूम वाला)
एक कार (बड़े वाली)
एक छोटे वाली भी
शेयर मार्किट में इन्वेस्टमेंट
कुछ जूलरी
एक डायमंड नेकलस (जो ऐड में दिखाते हैं)
विदेश में छुट्टियां (यूरोप प्रेफर्ड, नेपाल नहीं)
दो बच्चे (एक लड़की)
उनकी कॉन्वेंट एजुकेशन
विदेश में डिग्री
फिर उनकी शादी।
उफ्फ !!!
जिंदगी की कोई थोक मार्किट नहीं है क्या !!!
क्यों?
कुछ डिस्काउंट मिल जाता...
रहे न तुम...
वही मिडल क्लास आदमी।।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ५, ६॰३५
औसत अंक- ५॰११६७
स्थान- पंद्रहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰३, ५, ५॰११६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰८०५५
स्थान- चौथा
अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक- ४
स्थान- छठवाँ
टिप्पणी- कविता अत्यंत औसत दर्जे की है। जब कविता करते हैं तो कविता की संरचना का, उसकी लय-संगति का और उसके कथ्य यानी अंतर्वस्तु के उसके शिल्प यानी कविता के रूप से तादात्म्य अर्थात एकीभाव करने का भी यत्न और श्रम होता है कविता में। अपने इन उद्देश्यों में कविता जितनी सफल होती है,उसी अनुपात में वह सफलता का सोपान चढ़ती है।
पुरस्कार- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
विवेक जी, आपने वो बात कही है जो मेरे मन की है बधाई, बस मेरी बात का बुरा न मानियेगा. यथार्थ यह है कि आपने जो लिखा है वो बहुत से रूपों में हम सब के सामने पहले ही आ चुका है .... खुशी होती है कि वही चीज़ कविता के रूप में आए अकविता के रूप में नहीं......... मैं तो यही दोहा प्रेषित कर सकता हूँ (कभी काव्य गंगा पत्रिका के कवर पर छपा था)
कविता में अनिवार्य है, कथ्य शिल्प लय छंद.
ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप रंग रस गंध
चलिए बधाई .... अच्छा लगा कि आप पहली बार अपने मंथन को सार्वजानिक तो लाये
यह रचना वास्तव में अच्छे लगी|
लेकिन कुछ काव्य संकेत हो तो अच्छा है जैसा अरुण भाई कह रहें है |
और लिखो बंधू...
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
अरुण जी ,
आप भी मेरी बात का बुरा मत मानियेगा ,कविता -अकविता की समीक्षा में आप तो हिन्दी लिखना भी भूलते जारहे हैं ,
सार्वजनिक लाना नही होता है ,
सार्वजनिक करना होता है शायद ,
भावनाओ को समझिये
अकविता को रहने दीजिये ,
एक से एक धुरंधर समीक्षक
जब अपनी कविता प्रस्तुत करते हैं ,
तो कवित्व की मिठास ,अकविता के सिद्धांत को घर के आले में रख कर चले आते हैं
अभी तो विनय जी ने समझाया था कि,मन पिरोये जो मोती वो कविता होती है |
नीलम जी,
जी, बहुत बहुत धन्यवाद
बुरा मानने की तो मेरी बिसात कहाँ मैं तो साहित्य का एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ. ....... पर हाँ थोड़ा नटखट और शरारती हूँ .
.......... वैसे मन में जो मोती पिरोये वो कविता है?........ मन में मोती तो लघुकथा, कहानी और और संस्मरण भी पिरो सकते हैं फ़िर वो कविता तो नहीं हो जाते .........
माननीय अरुणजी,
कहानी, लघुकथा या संस्मरण में शब्द पिरोये नही जाते संजोये जाते है | शब्द तो गीत कविता ग़ज़ल आदि में ही पिरोये जाते है | इन विधाओं में कारको का अभाव रहता है अतः अदृश्य डोर उपस्थित होती होती है, जो शब्द मोतियों को ही नही वरन इनके मध्य उपस्थित अनकही अभिव्यक्ति को भी बांधे रखती है | नियमानुसार लिखी कविता में यह डोर मजबूत होती है क्योकि उसे लय प्रवाह और नियम भी सहारा देते है | जबकि छंद मुक्त में सारा दारोमदार कहने के अंदाज़ और भावों की गहराई पर ही होता है | ज़रा सा भी चूकने पर उसे सहारा देने वाला कोई नही होता और कीमती शब्द प्रलाप का रूप ले लेते है |
अतः सभी छंद मुक्त कविताएं अस्वीकार्य या निंदनीय नही होती |
क्षमा करे, यह मेरा व्यक्तिगत मत है, किसी को आहत करने का ध्येय नही है |
सादर,
विनय के जोशी
कविता और अकविता की चर्चा चल रही है तो मै भी कुछ विचार रखना चाहता हूँ
मेरा मानना है कई बार छंद मुक्त रचना भी दिल को छू जाती है और कई बार छंद भी समझ से परे हो जाते है, क्योकि पाठक सिर्फ वो ही समझ पाता है जो बात दिल से निकले और दिल को छू जाए
इस रचना के बारे मे यही कह सकता हूँ
कविता प्रभावी नही लगी , शब्दो का चयन सही नही लग रहा
क्योकि कविता मे जो कहने की कोशिश की गई है, आम इंसान की जिन्दगी से जुडी है, और ऐसी कविताए ज्यादातर लोगो को प्रभावित करती है
विनय जी आपने हमारी
समस्या हल कर दी ,
धन्यवाद
विवेकजी,
सर्वप्रथम आप बधाई स्वीकारें..
कविता पर विवाद.. विनय जी.. आपका धन्यवाद जो आपने अपना मत रखा, इससे हमें सीखने को मिलेगा।
विनय जी,
आपकी बात से काफ़ी सहमत....क्यों के छंद मुक्त कहना भी बेहद मुश्किल होता है,,,और वाकई ज़रा चूक होने पर उसका हश्र अक्सर ही बुरा होता है.....पर दिक्कत ये है के लोग उसे समझने के बजाय जो उसका लाभ उठा रहे हैं ...वो वाकई ग़लत है.....और छंद मुक्त कविता निंदनीय कैसे हो सकती है ...पर ये भी सही है के उसी को ग़लत इस्तेमाल किया जाता है,,,
इस हौसलाअफ़ज़ाई के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया...बहस मजेदार और उत्साहवर्धक रही.
मिडिल क्लास मानसिकता व इच्छावों का सच्चा ताना-बाना पिरोया है
सुंदर रचना !!!
न रस, न स्वाद, न मधुरता, न गहरे भाव, न कवित्त
nadi aur pul ke ude bina bhaw kahaa aaiga
" Sargbandho kavyam uchyate tasya lakshanam " - Acharya Dandi.
Kavita mei ek rythm honi chahiye, tabhi use kavita kah sakte hai ...
Aap nibandh ya vyangya mein parivartit kar le ise ...
Dhanyawad
hey vivek bhai,kese ho yaar
bhut dino se tmeeee net per seacrh kr raha tha,aaj saflta mile he,
tumse baat krne ka bhuttttttttttt man kr raha he,plssssss contack me on orkut by my name kapil bhardwaj,kaithal,kurukshetra
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