गज़ल क्या है ?
मित्रो !मैं कोई उस्ताद शायर नहीं हूँ जो गज़ल सिखाने का दंभ करूं।मेरे कुछ लेख गज़ल के बारे मेंविभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर कुछ लोगों द्वारा सराहे गये थे।और युग्म पर पोस्ट हुई मेरी पिछ्ली गज़ल पर कुछ गज़ल सत्संग शुरू हो गया
था उसी को आगे बढा़ते हुए ये लेख--
गज़ल क्या है ?
बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन उलझा -उलझा ,
।पहले गीत व गज़ल में क्या फ़र्क है यह जाने।हालांकि दोनो की
बुनियाद संगीत पर आधारित है
अ
१ बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या
ब
१ मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की
२
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता
स
१ जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां
२ उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है
अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर १ गीत हैं और २ गज़ल हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं कि गीत में स्त्रैण कोमलता है
,जबकि गज़ल कहने में पुरुषार्थ झलकता है।
या
गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा
इसी तरह शे’र के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता कि
अगले मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता
इन्हें पढें और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र जनाब शहरयार साहिब के हैं।[उमराव जान फ़ेम वाले ]
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की शर्तों पे जीता नहीं
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं
यति और गति या ग्त्यात्मकता और लयात्मक्ता के बिना गज़ल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।क्योंकि गज़ल की बुनियाद सरगम की तरह संगीत के आधार पर[और कहें तो गणित के आधार पर] टिकी है।गज़ल का हर शे‘र अपने आप में सम्पूर्ण तो होता ही है,
वह श्रोता या पाठक को अद्भुत,आकर्षक,अनजाने और एक निराले अर्थपूर्ण अनुभव तक ले आने में सक्षम होता है।
देखें कुछ उदाहरण
चाँद चौकीदार बनकर नौकरी करने लगा
उसके दरवाजे के बाहर रोशनी करने लगा
चाँद को चौकीदार केवल गज़ल का शायर ही बना सकता है
बाल खोले नर्म सोफ़े पर पड़ी थी इक परी
मेरे अन्दर एक फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा
अब बतलाएं फ़रिश्ते को खुद्कुशी करवाना शायर ,गज़ल के शायर् के अलावा और किसके वश में है।
ऐसा विचित्र एवम चमत्कृत करने वाला अनुभव साहित्य की किस विधा में मिल सकता है
कुछ और उदाहरण देखें
तुझे बोला था आँखे बंद रखना
खुली आँखों से धोखा खा गया ना
मेरे मरने पे कब्रिस्तान बोला
बहुत इतरा रहा था आ गया ना
(जनाब-महेश दर्पण)
मित्रो एक बात और गज़ल की सारी कमनीयता,सौष्ठव व चमत्कृत करने की क्षमता बहर या छंद पर ही टिकी है.
हम कह सकते हैं कि गज़ल शब्दों की कलात्मक बुनकरी है ।
अगर हम उपरोक्त शेर को बह्र के बिना लिखें
मरने पे मेरे कब्रिस्तान बोला
इतरा रहा था बहुत आ गया ना
आप ही कहें सारे शब्द वही हैं ,केवल उनका थोड़ा सा क्रम बदलने से क्या वह आनन्द जो पहली बुनकरी में था,गायब नहीं हो गया।बस इसी लिये बहर का ज्ञान आवश्यक है
इसके अतिरिक्त कुछ और लेख मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं।
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25 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut bdiyaa jaankari hai
Yesss.. हिंद युग्म पर मैं इस तरह की समीक्षा या लेख या कहे कि छोटी कक्षा की राह देख रहा था |
यह एक चिंतन लेख है और सुंदर भी है | मैं कहूंगा कि श्यामजी , आपके चिठ्ठे पर बुलाने के बजाय आप उसे यहीं हम सबसे बाँटें |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
श्याम जी ,
इतने खूबसूरत शेर , शायरों की जादूगरी ,क्या बात है ?चाँद -चौकीदार ,
उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है |
श्याम जी
आप ऐसे ही लिखते रहे तो ,
न जाने इस गुलशन में (हिन्दयुग्म )
कितने शायर आज के आज ही पैदा हो जायेंगे |
अविनीश जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि हम आगे भी इसी मंच पर आपको पढ़ना चाहेंगे
श्याम जी,
लेख अच्छा लगा, बहर पता लगाने मे काफी मुशकिल होती है कभी शायर एक ही अक्षर को 1 गिनता है कभी 2 बस इसी दुविधा मे बहर मे लिखने की कोशिश ही नही की, गुरू जी ने जहाँ तक सिखाया काफिया और रदीफ संभाल लेता हूँ
सुमित भारद्वाज
श्याम जी,
मैं अरुण,............... आपका वही अल्पज्ञानी साहित्य प्रेमी,
मुझे लगता है गजल और गीत में अंतर के लिए हमें गजल मनीषियों के सिखाये गजल के भौतिक स्वरुप को देखना चाहिए, हो सकता है वो आप पहले ही बता चुके हों मैं शायद सत्संग में देरी से आया, पर मेरे अल्पज्ञान के आधार पर मुझे लगता है कि गीत और गजल में अंतर भावः पक्ष के आधार पर नहीं किया जा सकता गजल का सीधा सा हिसाब है "गजल विभिन्न शेरों कि माला है, एक शेर दो पंक्तियों का होता है जो काफिया और रदीफ़ कि बंदिशों में होता है तथा शेर कि दोनों पंक्तियाँ एक ही बहर में होती है गीत में शेर नहीं होते मुखडा और अंतरा होता है .............
ये मेरी समझ हो जो सरासर गलत भी हो सकती है ...........
अरुण अद्भुत
वाह! हम जैसे नए कवियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने! धन्यवाद!आगे भी आपऐसी जानकारी से लाभान्वित करते रहेगे ऐसी उम्मीद करती हूँ!
Bahut hi badhiya.
infact I was looking for such a learning post.
bahut anand aa gaya isko padh kar...
Keep posting such things. Aur gyaan baanTne se badhta hai...
अल्प ग्यानी तो अब आया है ..अन्ताक्षरी में ...जी मुझे ज़रा सत्संग,,,,कीर्तन,,,,गुरुओं आदि से ज़रा परहेज सा है..तो बस इसे अन्ताक्षरी कह रहा हूँ..
पर अरुण जी आप ने ख़ुद को अल्पज्ञानी क्यों कहा......??मैं कहू तो समझ भी आता है...
वो तो कह देगा के , के अनपढ़ भी है, जाहिल भी है
"बे-तखल्लुस" क्या कहेंगे ये किताबों वाले.....????
एक सवाल है....बस अभी अभी एक अकेला मिसरा दिखा तो जोड़ दिया...
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ ख़ुद
"शमा की मेहर पे कब भला जाता हूँ."
ये उन अनामी जी के लिए है....जिनको मैं तीन बार संकेत दे चुका हूँ.....कृपया वे समझे और इसी ज़मीन पर उत्तर भी दे,...और हाँ ,...अनाम होकर ही दें....मुझे ख़ुद पता चल जाएगा..और उनका अनाम रहना ही सही है.....नहीं तो नाम ही.खरा ........खैर...
ज़ब्र का ज़हर कुछ भी हो पीता नहीं,
" मैं तो महफ़िल से उठकर चला जाता हूँ"
ये उनके लिए ...जो अद्रश्य हैं ....ये तो खैर ज़वाब नही देंगे ....इनसे कोई उम्मीद भी नही है.....
और एक मतला सा कुछ ...
"लोग कहते हैं के मैं ,जला जाता हूँ,
जब भी दौरे-सियासत छला जाता हूँ."
ये मतला उन वाले अनामी के लिए है जिहोने मफिल उठने के बाद आख़िर में हमारे नाम पर तालियाँ बजाने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी.......
इन्हे हम समझे नहीं थे ...ये क्रिपया ...अपनी आई डी से लिखे......हालांके इनसे भी उम्मीद नही है....क्यूं की अगर ये ....वाकई मजाक कर रहे थे...तो इसका मतलब है के...इनमे मेरे जवाब देने की योग्यता ही नही है.......
मगर पहले वाले साहिब मेरे भाव अवश्या समझेंगे...और अनाम होकर ही उत्तर भी देंगे...
हाँ अगर ख़ुद चाहे तो ओपन हो सकते हैं....मुहे पता लग ही जाना है...आख़िर तीन बार संकेत दिया है मैंने....
श्याम जी,
बेहद उम्दा जानकारी...
बहुत खूबसूरती से आपने हमें गज़ल और गीत में अंतर समझाया.. बहुत बहुत शुक्रिया... आप आगे भी ऐसे ही इसी मंच से हमें सिखायें, हमें अच्छा लगेगा।
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ ख़ुद
"शमा की मेहर पे कब भला जाता हूँ."
manu ji kya likha hai ,magar baaki kuch palle nahi pad raha hai ,is sabko unki id par hi likhiye please ,aap se haath jodkar iltiza hai .
आप सभी को धन्यवाद,आप स्वयं देखे हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल पर औसतन १८-२० टिप्प्णियां आती है,त्वरित मोड में इस लेख पर रुक-रुक कर ११,मुझे लगता हैकि यहां पोस्ट करने से उन लोगों अ ज्यादती होगी जो गज़ल पढ़्ना भर चाहतें हैं,छंद से उन्हे कोई सरोकार नहीं ऐसे में ऐसे लेख उनपर थोपे हुए न लगें
अरुण जी! आप नाराज लगते हैं,मैने आपको अल्पज्ञानी कभी नहीं कहा,केवल आपके बहर रुक्नों पर अल्पज्ञान की बात कही थी क्योंकि आपने लिखा था कि फ़ाइलुन को छोड़कर शेष रुक्न ७ मात्राओं के होते हैं।अगर इस बात से आपका दिल दुखा है तो क्षमा करें
श्याम सखा‘श्याम
श्याम जी, यहाँ तो सभी तरह के पाठक आते हैं.. वैसे यदि आप अपने लेख यहाँ भी लिखेंगे.. तो पाठक वर्ग को फायदा होने ही वाला जैसा आप अकसर अपनी गज़ल के आखिर में बहर लिख देते हैं.. उसी क्रम को थोड़ा आगे बढ़ाना होगा.. आप जितना बताते हैं.. हमें अच्छा लगता है।
सादर
pratham tipni manu ji ki hoti to 11 bhi shayd nahi ati,log gajl chaht hai lekh nahi
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