सहरा की धूप में जो जल रहा था,
वेदना के गरल से जो गल रहा था,
काल के निर्मोह हाथों पल रहा था,
सुधा का प्याला उसे तुमने पिलाया ।
मौत के आगोश से तुमने बचाया ॥
जीवन का संघर्ष जिसको छल रहा था,
भरी जवानी में भी जो ढ़ल रहा था,
स्वयं का जीवन जिसको खल रहा था,
अंधकार में उर्मिल बन कर तुम आयीं ।
जीवन में जलनिधि बन कर तुम छायीं ॥
दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥
नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया ॥
सुख की निर्मल छाया का भान कराया ।
गीत प्रीत का मीत बना कर उसे सुनाया ॥
कवि कुलवंत सिंह
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
यह रचना संतुलित भी है और अच्छे शब्दों से भरी |
अर्थ भी अच्छे है | कुल मिलाकर अच्छी रचना बनी है |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥
कुलवंत जी ,
आप जयशंकर प्रसाद की लेखनी को याद लगवाते हैं ,अच्छी रचना पर साधुवाद
दोस्त आज मे आपको आमंत्रित कर रहा हूँ एक ऐसी पोस्ट को पढने के लिए जिसे पढ़कर आपको एक अहसास होगा की हम क्या खो रहे है !!
क्योंकि यह कहानी सिर्फ उस मासूम की नहीं है ,मेरी आपकी या हमारे बच्चों की भी हो सकती है
इस पोस्ट पर अपनी राय जरुर रखें!!
http://yaadonkaaaina.blogspot.com/2008/12/12th.html
नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई
AAp mitron ka haardik dhanyavaad..
आपका शब्द चयन प्रभावी लगता है... आप अधिकतर ऐसे ही शब्द प्रयोग में लाते हैं।
काफी महीने पहले आपकी एक कविता पढ़ी थी जिसमें आपने तीन शब्द लिये थे हर पंक्ति में..और पंक्ति केआखिरी शब्द से अगली लाइन शुरु करी थी..
वैसे प्रयोग फिर करें।
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