आज हम जिस रचनाकार से आपका परिचय करवा रहे हैं, वे ब्लॉग बनाने की कोशिश में हिंदी ढूँढ़ते हुए हिन्द-युग्म पर पहुँच गईं, फिर यहीं की होकर रह गईं। अब हिन्द-युग्म पढ़ना संगीता सेठी की दिनचर्या में शामिल है। यद्यपि ये पिछले 30 वर्षों से रचनाकर्म में संलग्न हैं, लेकिन इंटरनेट पर हिन्द-युग्म के माध्यम से पर्दार्पण कर रही हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम में प्रशासनिक अधिकारी और निगम में ही राजभाषा अधिकारी के रूप में ६ वर्ष का अनुभव रखने वाली संगीता सेठी की रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर की सभी पत्र-पत्रिकाओं (मुख्य- कादिम्बिनी, आउटलुक,कथादेश,मधुमती, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर) में प्रकाशित हो चुकी हैं। दैनिक भास्कर रचना पर्व में इनकी कहानी को पंकज बिष्ट जी की कलम से और कमलेश्वर जी के हाथों प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। कवयित्री की कविताएँ पिछले ३० वर्षों से आकाशवाणी बीकानेर से प्रसारित हो रही हैं। ज्ञानी जैल सिंह द्वारा गर्ल गाइड के रूप में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेठी के एक काव्य संग्रह, एक कथा संग्रह, एक डायरी विधा (अपने पिता पर), एक बालकथा शृंखला प्रकाशित हैं तथा एक कथा संग्रह और काव्य संग्रह प्रकाशित होने में कतराबद्ध हैं।
कविता- मानव के अश्रु स्रोत
मैंने कहा था
इससे
उससे
इनसे
उनसे
और सबसे
कि बन जाओ तुम धरती
बन जाओ तुम आसमान
और करो आदान-प्रदान
धरती की तरह वाष्प देने का
आसमान की तरह पानी
बरसाने का
ताकि न रहे धरती प्यासी
न रहे आसमान लबरेज
पर तुम नहीं माने
और खाते रहे
दूसरे के हिस्से की रोटी
पीते रहे
दूसरे के हिस्से का पानी
और खड़ी कर दी दीवारें
हर कदम पर
कट गई धरती
हर उडान पर
बँट गया है आसमान
पी गया है
धरती के हिस्से का पानी
सोख लिए है
धरती के झरने
चबा गया है चाँद बूँदें भी
और धरती निरीह आँखों से
ताकती हुई आसमान को
थक गयी है
तिड़क गयी है
मानव के अश्रु स्रोत
सूख गए है
*तिड़कना- दरार पड़ना
प्रथम चरण मिला स्थान- बत्तीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- अठारहवाँ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
और धरती निरीह आँखों से
ताकती हुई आसमान को
थक गयी है
तिड़क गयी है
मानव के अश्रु स्रोत
सूख गए है
संगीता जी को बहुत बहुत बधाई
samvedansheel soch wali kavita. achchhi bhasha ka prayog.
सुंदर लिखा है...
चिंताजनक भाव दर्शाती रचना,,,,
और हाँ,
मजे की बात ये की हम भी आपकी ही तरह एक दम ऐसे ही पहले हिंदी का ब्लॉग बनाने के चक्कर में ही यहाँ पर फंसे हैं,,,
और फंसे भी ऐसे के निकलने का कोई मूड नहीं है,,,,
पर तुम नहीं माने
और खाते रहे
दूसरे के हिस्से की रोटी
पीते रहे
दूसरे के हिस्से का पानी
और खड़ी कर दी दीवारें
हर कदम पर
प्रभावी रचना |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
कि बन जाओ तुम धरती
बन जाओ तुम आसमान
और करो आदान-प्रदान
धरती की तरह वाष्प देने का
आसमान की तरह पानी
बरसाने का
ताकि न रहे धरती प्यासी
संगीता जी आपकी कविता प्रेरणादायक है
व सोंचने को विवश करती है
संगीता जी,
संवेदनायें जगाती हुई सार्थक कविता की रचना के लिये बधाईयाँ।
नपे तुले शब्दों का सटीक संयोजन और प्रबल भावनायें जैसे कि होना चाहिये (Ought to be)
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मैंने कहा था
इससे
उससे
इनसे
उनसे
और सबसे
कि बन जाओ तुम धरती
बन जाओ तुम आसमान
और करो आदान-प्रदान
धरती की तरह वाष्प देने का
आसमान की तरह पानी
बरसाने का
काश! हम लोगों ने आपकी बात मान ली होती
संगीता जी को बहुत बहुत बधाई.......
प्रभावशाली रचना
कट गई धरती
हर उडान पर
बँट गया है आसमान
पी गया है
धरती के हिस्से का पानी
सोख लिए है
धरती के झरने
चबा गया है चाँद बूँदें भी
और धरती निरीह आँखों से
ताकती हुई आसमान को
थक गयी है
तिड़क गयी है
मानव के अश्रु स्रोत
सूख गए है
सुन्दर बिम्ब के साथ प्रभावशाली रचना
सादर
रचना
मैंने कहा था
इससे
उससे
इनसे
उनसे
और सबसे
कि बन जाओ तुम धरती
बन जाओ तुम आसमान
और करो आदान-प्रदान
धरती की तरह वाष्प देने का
आसमान की तरह पानी
बरसाने का
काश! हम लोगों ने आपकी बात मान ली होती
संगीता जी हिन्दयुग्म पर आपका स्वागत है.
पर तुम नहीं माने
और खाते रहे
दूसरे के हिस्से की रोटी
पीते रहे
दूसरे के हिस्से का पानी
और खड़ी कर दी दीवारें
हर कदम पर
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई ।
Marmik rachana ke liye badhayi.
bahut sundar, apna blog link bataiyega.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)