आज हम लेकर उपस्थित हैं दिपाली 'आब' की एक कविता। उल्लेखनीय है कि इनकी एक कविता ने पिछले माह की प्रतियोगिता में भी शीर्ष 20 में स्थान बनाया था।
रचना- मैं और तू
'मैं' एक पूरा झूठ हूँ
और 'तू' एक मुकम्मिल सच
'तू' और 'मैं'
ज़िन्दगी की माला के छोर थे
जब बिछड़े तो
इश्क मोतियों की तरह बिखर गया
तू धागा ले गया कशिश का
मैंने इश्क के बिखरे मोती
आँखों में समेट लिए
तूने नए मोती तलाश लिए
मैंने अपने मोती
तेरी याद को तोहफे में दे दिए
'तू' मेरा प्यार है आज भी
'तू' आज भी मुकम्मिल सच है
तूने कहा था
'मैं' तेरी जान हूँ
'मैं' एक पूरा झूठ बन गई...!!
प्रथम चरण मिला स्थान- इक्कीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- तेरहवाँ
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28 कविताप्रेमियों का कहना है :
'तू' और 'मैं'
ज़िन्दगी की माला के छोर थे
जब बिछड़े तो
इश्क मोतियों की तरह बिखर गया
bahut bahvpurn rachana..
badhayi ho!!!
pahle bhi tumhari nazmo ghazlon pe bolte rahgehain ... zindagi mala mekai moti hote hain ... rishte ki ala ya saath ki mala hoti to ye achhi nazm lazawaab lagti ......
hum dono ki taraf se badhai tumhe ...is achhi nazm keliye ....
aanch-aatish
तू धागा ले गया कशिश का
मैंने इश्क के बिखरे मोती
आँखों में समेट लिए
तूने नए मोती तलाश लिए
मैंने अपने मोती
तेरी याद को तोहफे में दे दिए
बहुत ही भावपूर्ण रचना है
बधाई
'मैं' तेरी जान हूँ
'मैं' एक पूरा झूठ बन गई...!! शीर्षक ,कविता को शब्दों के सच में सार्थक कर दिया .
बधाई .
आपकी कविताओं में एक अलग सी फिलोसफी होती है. कितनी खूबसूरत कविता लिखी है. अभी तक "इंतज़ार एक ठण्ड है" को भुला भी नहीं था मैं और अब एक और बहतरीन कविता. आपके कविता संग्रह का इंतज़ार रहेगा मुझे.
'तू' और 'मैं'
ज़िन्दगी की माला के छोर थे
जब बिछड़े तो
इश्क मोतियों की तरह बिखर गया
@ विनोद जी
बहुत बहुत शुक्रिया.
शुक्रिया नीलेश जी
शुक्रिया आंच आतिश
@दिशा जी
शुक्रिया
@ मंजू जी
बहुत बहुत शुक्रिया, नज़्म का मर्म समझने के लिए.
@ फ़राज़ साहेब,
दुआएं बनी रहे, कविता संग्रह छपते ही एक प्रति आपकी हुई.
sach jhooth ke kandhe kas ahara le ek chalata hai
tabhee falta hai
bahut achha likha hai
जब बिछड़े तो
इश्क मोतियों की तरह बिखर गया
जब भी आप लिखती हैं..कमाल लिखती हैं..........
तूने कहा था
'मैं' तेरी जान हूँ
'मैं' एक पूरा झूठ बन गई...!!
क्या बात है....
और भला कैसी होगी रिश्तों की माला,,,
इस रिश्ते को लिए ...लाजवाब है नज़्म...
और हाँ ..ज़रा लेट हो गया..पर शामिख जी के बाद आपके कविता-संग्रह की दुसरी प्रति तो मिल जायेगी ना...?
:)
भावनात्मक अभिव्यक्ति ...वाह
great poetry
तू धागा ले गया कशिश का
मैंने इश्क के बिखरे मोती
आँखों में समेट लिए
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
@ अनिल भैया
आपका आर्शीवाद यूँ ही बना रहे, शुक्रिया.
@ मनु जी
जरुर मनु जी, बस यूँ ही आर्शीवाद बनाये रखिये. नज़्म को सराहने के लिए धन्यवाद.
@अनिल जी
शुक्रिया
@ अहसन जी
बहोत बहोत शुक्रिया
@ सदा जी,
बहुत बहुत शुक्रिया.
'तू' मेरा प्यार है आज भी
'तू' आज भी मुकम्मिल सच है
तूने कहा था
'मैं' तेरी जान हूँ
'मैं' एक पूरा झूठ बन गई...!!
बहुत सुंदर रचना बहुत खूब मैंने पहली बार आपकी कोई रचना पढ़ी है बहुत सुंदर शब्द हैं बधाई हो
bahut hi mukammil rachna likhi hai...........har shabd jaise 'tu aur main' mein hi simat gaya hai ......dil ko choo gayi rachna.......ek alag hi soch .
pahli baar aapki rachna padhi aur bahut pasand aayi.
badhayi sweekarein.
अमिता जी
बहुत बहुत शुक्रिया, यूँ तो येः मेरी हिन्दयुग्म पर पहली रचना नहीं है, परन्तु आपने मुझे पहली ही बार पढ़ा और सराहा, उसके लिए दिल से शुक्रिया.
वंदना जी,
बहुत बहुत शुक्रिया, नज़्म के मर्म तक जाने के लिए
Nazm behtreen hai....Is nazm mein masoomiyat hai bholapan hai aur dard hai. Aapki nazm ko is sthaan par na hokar kaafi upar hona chahiye tha.
.
Hats of to you!!
--Gaurav
thanx Gaurav :)
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