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Thursday, July 23, 2009

दिशाओं के निमंत्रण पर क्षितिज की माँग आ पहुँची


प्रतियोगिता की 12वीं कविता की रचयिता दीपा पन्त हमारे लिए बिलकुल नई हैं। 30 अगस्त को उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी में पैदा हुईं और पलीं-बढ़ीं दीपा ने मेरठ कॉलेज से सर्वोच्च अंकों के साथ एम॰ ए॰ (हिन्दी) एवं बी .एड .किया। विगत 18 वर्षों से हल्द्वानी स्थित एक सीनिअर सेकेंडरी स्कूल में हिन्दी पढ़ाती हैं। ये बचपन से ही कविताएँ लिखती थीं, स्कूल और कॉलेज में इन्हें कई पुरस्कार मिले, कई पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके एक काव्य संग्रह 'मन वृन्दावन' का शीघ्र ही विमोचन होने वाला है।

रचना- अधूरी कामनाएँ

अधूरी कामनाएँ फिर मेरे सपनों में आ पहुँची
कोई उद्दाम अभिलाषा सभी प्रतिबंध तोड़ेगी
नियम के साथ क्या मन को
हमेशा बाँधना होगा
खुले आकाश के नीचे
धरा को नापना होगा
दिशाओं के निमंत्रण पर क्षितिज की माँग आ पहुँची
उडानें पंछियों की फिर नए सम्बन्ध जोड़ेंगी
बड़ा अभिमान लहरों को
किनारे साध कर चलती
उसे मालूम क्या गति पर
नहीं बैसाखियाँ लगतीं
अनिश्चय बांटती राहें हमारे पास आ पहुँचीं
संभालो गाँव-घर अपने, नदी तटबंध तोड़ेगी
मिटाया विवशताओं ने
अधूरी रात का सपना
हमें कब तक ना आएगा
हृदय को बाँध कर रखना
ये तन-मन की निराशाएं मेरे सिरहाने आ पहुँचीं
कोई व्याकुल प्रतीक्षा अनछुए सन्दर्भ ढूँढ़ेगी
सदा पहरा नहीं चलता
बड़ी संवेदनाओं पर
बहुत बीमार हैं आँखें
नहीं रहतीं ठिकाने पर
उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी


प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा


द्वितीय चरण मिला स्थान- बारहवाँ

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

बहुत मार हैं आँखें
नहीं रहतीं ठिकाने पर
उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी
खुबसूरत कविता की ये खुबसूरत पंक्तिया है .बधाई .

Disha का कहना है कि -

अत्यन्त सुन्दर रचना
बधाई

Riya Sharma का कहना है कि -

सदा पहरा नहीं चलता
बड़ी संवेदनाओं पर
बहुत बीमार हैं आँखें
नहीं रहतीं ठिकाने पर
उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी..

बहुत सुन्दर भाव है दीपा जी
बधाई !!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

दासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेग
बहुत सुन्दर भावमय कविता है दीपा जी को बहुत बहुत बधाई

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत सुंदर भाव हैं !!

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना है.

सदा पहरा नहीं चलता
बड़ी संवेदनाओं पर
बहुत बीमार हैं आँखें
नहीं रहतीं ठिकाने पर
उदासी बेखबर होकर मेरे आँगन में आ पहुँची
पुरानी ओढ़नी पर ये नए पैबंद जोड़ेगी

manu का कहना है कि -

मालूम है के लोग मेरा मजाक बना सकते हैं..
पर मुझे पूरा-पूरा गजल का मजा आया है...
किसी को कुछ कहना है इस बारे में तो कह सकता है...
बहुत ही मामूली सा फर्क लगा मुझे...आपकी इस छंद-मुक्त कविता के गजल होने में...
आप दोबारा भेजियेगा प्लीज....
ऐसी ही गजल....!!!!!!!!!!!!!!!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

ek behatreen rachana hai ye .... zabardast lay samayi hui isme ...... bhaav bhi usi lay me bahte se nazar aate hain ..hind yugm ka saubhagya hai ki .. aap yahaan hain .......
saadar

Anonymous का कहना है कि -

बड़ा अभिमान लहरों को
किनारे साध कर चलती

बहुत ही सुन्‍दर ।

kamal kishore singh का कहना है कि -

Depa Jee dil gadgad hoy gya paDh kar.
Aisee shabd shilpkala,shabd shrigar
Wah! wah!!. Lagata hai isme Pant ka shrigar aur Dinkar ka hunkaar ek saath samaahit hai.
Bahut srahaneey aur smaraNeey kavita.
Intjaar rahegee bhaishya me aane walee aapakee kavitaon kee.
Kamal Kishore Singh, MD
USA

mohammad ahsan का कहना है कि -

bahut hi khoobsoorat kavita. manu is right. i will translate it into urdu.

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