हिंद-युग्म की जनवरी 2011 की यूनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम ले कर हम उपस्थित है। परिणामों की घोषणा मे विलम्ब के लिये क्षमा माँगते हुए हम प्रतियोगिता के सभी प्रतिभागियों और अपने पाठकों द्वारा धैर्य रखने के लिये आभारी हैं।
जनवरी माह की प्रतियोगिता यूनिप्रतियोगिता के उन्चासवीं कड़ी थी। इस बार कुल 40 प्रतिभागियों की कविताएं सम्मिलित की गयीं, जिन्हे दो चरणों मे परखा गया। प्रथम चरण के तीन निर्णायकों के दिये अंकों के आधार पर 20 कविताओं को द्वितीय चक्र मे स्थान मिला, जहाँ दो निर्णायकों ने कविताओं के शिल्प, कथ्य, सामयिकता आदि के विविध पक्षों के आधार पर उनको आँका। इस प्रतियोगिता की एक खास बात यह रही कि कई सारी ग़ज़लें प्रविष्टि के तौर पर शामिल हुई। इस बार की यूनिकविता का खिताब भी एक ग़ज़ल को गया है, जिसके रचनाकार होने का श्रेय नवीन चतुर्वेदी को जाता है। निर्णायकों ने उन्हे जनवरी माह का यूनिकवि चुना है।
यूनिकवि: नवीन चतुर्वेदी
हमारे नियमित पाठक नवीन जी की कलम से परिचित होंगे। नवीन जी प्रतियोगिता से कुछ समय पहले ही जुड़े हैं और इनकी पहली ही रचना नवंबर माह मे छठे स्थान पर रही थी। मुख्यतया गज़ल विधा मे महारथ रखने वाले नवीन जी रचनाकार के अलावा एक गंभीर पाठक के तौर पर भी हिंद-युग्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। अंतर्जाल पर साहित्यिक अभिरुचि के प्रचार-प्रसार मे खासे सक्रिय नवीन जी का परिचय हम पहले भी अपने पाठकों से करा चुके हैं मगर अपने नये पाठकों के लिये एक बार पुनः उनका संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।
यूनिकविता: ग़ज़ल
गगनचरों को दे बुलावा चार दानों पर|
बहेलिए फिर ताक में बैठे मचानों पर |१|
बुजुर्ग लोगों से सुना है वो सुनाता हूँ|
हवाएँ भी हैं नाचती दिलकश तरानों पर |२|
हुनर हो कोई भी, बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर |३|
अवाम के पैसे पचाना जानते हैं जो|
हुजूम बैठा ही रहे उन के मकानों पर |४|
विकास की खातिर मदद के नाम पर यारो|
लुटा रहे लाखों करोड़ों कारखानों पर |५|
जिन्हें तरक्कियों से निस्बतें होतीं हरदम|
न ध्यान देते वो फ़िज़ूलन तंज़ - तानों पर |६|
पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुँचते हैं|
फिसल चुके हों जो कभी उन की ढलानों पर |७|
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पुरस्कार और सम्मान: हिंद-युग्म से सद्यप्रकाशित सुधीर गुप्ता ’चक्र’ के नये काव्य-संग्रह ’उम्मीदें क्यों’ की प्रति तथा प्रशस्तिपत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इसके अतिरिक्त दिसंबर माह के शीर्ष 10 के अन्य कवि जिनकी कविताएं हम यहाँ प्रकाशित करेंगे और जिन्हे हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें दी जायेगी, उनका क्रम निम्नवत है-
वसीम अकरम
वंदना सिंह
सुवर्णा शेखर दीक्षित
धर्मेंद्र कुमार सिंह
डिम्पल मल्होत्रा
अनिता निहलानी
अरविंद कुमार पुरोहित
सुधीर गुप्ता चक्र
आरसी चौहान
शीर्ष दस के अतिरिक्त हम जिन चार अन्य कविताओं का प्रकाशन इस प्रतियोगिता के अंतर्गत करेंगे, उनके रचनाकारों के नाम हैं
अनवर सुहैल
सनी कुमार
रमा शंकर सिंह
विवेक कुमार पाठक अंजान
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 10 मार्च 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं
मनोज कुमार
पंकज भूषण पाठक प्रियम
रविंद्र कुमार श्रीवास्तव बेजुबान
बोधिसत्व कस्तुरिया
योगेश कुमार ध्यानी
प्रदीप वर्मा
आलोक गौर
सुमित वत्स
शोभा रस्तोगी शोभा
अल्पना गिरि
नीलेश माथुर
ब्यूटी मालाकार
रवि शंकर पांडेय
विनोद वर्मा प्रेम अंजाना
रतन प्रसाद शर्मा
शील निगम
अनिरुद्ध सिंह चौहान
विभूति कुमार
दीपक कुमार
योगेंद्र शर्मा व्योम
प्रवेश सोनी
रिक्की पुरी
आशीष पंत
आलोक उपाध्याय
प्रवीण चंद्र राय
सीमा स्मृति मलहोत्रा
यूनिपाठक सम्मान
पिछले कुछ माहों से हमने यूनिपाठक सम्मान की घोषणा नही की थी। विगत कुछ माहों मे प्रकाशित रचनाओं पर पाठकों द्वारा की गयी प्रतिक्रियाओं को आँकते हुए इस बार यूनिपाठक का खिताब धर्मेंद्र कुमार सिंह ’सज्जन’ को जाता है। एक पाठक के तौर पर अपनी निरंतरता और प्रतिक्रियाओं की गुणवत्ता और उससे झलकती पठनीयता के आधार पर सहज ही धर्मेंद्र जी प्रभावित करते हैं। यूनिप्रतियोगिता मे नियमित रूप से हिस्सा लेने वाले धर्मेंद्र जी ’एक अच्छा लेखक होने के लिये अच्छा पाठक बनना भी अपरिहार्य है’ की उक्ति को चरितार्थ करते हैं।
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें और वार्षिकोत्सव मे वरिष्ठ साहित्यका्र द्वारा प्रशस्ति पत्र।
इसके अतिरिक्त जिन चार अन्य पाठकों का हम उल्लेख करना चाहेंगे जिन्होने पिछले कुछ माहों मे अपनी रचनात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा कवियों का उत्साह बढाया है वे निम्नवत हैं
स्वप्निल कुमार आतिश
रंजना सिंह
एम वर्मा
जितेंद्र जौहर
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29 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रतियोगिता के इस परिणाम का दिल से इंतजार था बहुत बहुत आभार !
नवीन जी को बहुत बहुत बंधाई ..इस खूबसूरत ग़ज़ल और यूनी कवी चयन के लिए .. :)
नवीन जी की रचना पढ़कर ही प्रतीत होता है कि यूनिकवि श्रंखला का इस बार का चयन भी हर कसौटी पर खरा है. उन्हें ह्रदय से बधाई. ना सिर्फ यूनिकवि बनने के लिए बल्कि एक बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिए भी. ईश्वर उनकी कलम को बेहतरी बख्शे.
बहुत शानदार गज़ल है। एक-एक शेर लाज़वाब। अनूठे प्रयोग और मौलिक चिंतन ने इस गज़ल को बेहतरीन बना दिया है। नवीन जी को बहुत-बहुत बधाई।
हिन्द युग्म परिवार के इस स्नेह को पा कर मैं अभिभूत हूँ| अन्य प्रतिभागी मित्रों की रचनाओं को
पढ़ने का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा|
मैं मूल रूप से भारतीय छंद विधा का विद्यार्थी हूँ| कालांतर में गजल और कविताएँ कहना शुरू किया|
यहाँ का पता ठिकाना देने वाले भाई धर्मेन्द्र कुमार का एक बार फिर से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा| मेरी कोशिश को सम्मान देने के लिए हिन्द युग्म परिवार का बहुत बहुत आभार|
वंदना जी, दीपक मशाल जी और देवेन्द्र पाण्डेय जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों एवम उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार|
वाह वाह वाह नवीन भाई क्या अशआर कहे हैं आपने। हर एक शे’र दहाड़ रहा है। किसी एक शे’र को कोट करना दूसरे की तौहीन होगी। बहुत बहुत बधाई नवीन भाई। वाकई ये ग़ज़ल किसी भी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने लायक है, नए प्रयोगों में तो आपका कोई सानी नहीं। यूनिकवि बनने पर पुनः बधाई।
bahut sundar!!!
अवाम के पैसे पचाना जानते हैं जो|
हुजूम बैठा ही रहे उन के मकानों पर
विकास की खातिर मदद के नाम पर यारो|
लुटा रहे लाखों करोड़ों कारखानों पर
navin jee ko open books online par pahli baar padha tha... aur aaj yahan padh raha hoon... ek se badh kar ek rachnaayen.... khaaskar ye ghazal... jiske sher desh me maujoudaa haalaton par badi hi sanyat tareeke se vyangya par vyangya kiye jaa rahi hain...
naveen bhai...badi acchi ghazal hai...bahut se maslon par comment karti hai .... nishchit roop se puraskaar kee hakdaar hai ...dharmendr jee ne wakai bahut hausala badhaya hai..wo bhi badhai ke hakdaar hain.... sabhi ko bahut bahut badhai ...
धर्मेन्द्र भाई ये आपका बड़प्पन है| मेरी कोशिश को सम्मान देने के लिए शुक्रिया मित्र|
स्वप्निल कुमार जी जर्रानवाजी के लिओए आभारी हूँ बन्धुवर|
आकर्षण कुमार गिरी भाई आप ने मेरे कम को सराहा, ये मेरी खुशकिस्मती है|
अनाम बन्धु, शुक्रिया|
प्रतियोगिता के इस परिणाम का दिल से इंतजार था बहुत बहुत आभार !
नवीन जी को बहुत बहुत बधाई ..इस खूबसूरत ग़ज़ल और यूनी कवी चयन के लिए .
नवीन जी की इस ग़ज़ल की अंतर्वस्तु में निहित कथ्य ग़ज़ल को एक नया संस्कार देते हैं।
नवीन जी बहुत -बहुत शुभकामनायें |एक उम्दा ग़ज़ल पढने को मिली |गज़ल का आख़िरी लाइन-'पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुचते हैं ,फिसल चुके होंजो कभी उन ढलानों पर 'कोशिश करने वालो को निराश ना होने का सन्देश देती है |एक वार फिर बधाई |
भाई मनोज कुमार जी अंतरजाल पर मेरे जैसे नये व्यक्तियों का उत्साह वर्धन करना कोई आपसे सीखे| आपके अनमोल वचनों ने मुझमें नयी स्फूर्ति भर दी है|
पुनिता जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार|
नवीन जी को बहुत बहुत बधाई...
सचमुच लाजवाब ग़ज़ल है...
सभी के सभी शेर मनमोहक हैं...
आनंद आया पढ़कर...ऐसे ही लिखते रहें,शुभकामनाएं..
आभार !!!
ek umda gazal padhne ko mili ...Naveen ji ko badhaee ..
तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया रंजना जी
कोशिश करूँगा कि आप लोगों की उम्मीद पर आगे भी खरा उतरूं
आभार शारदा जी
naveen ji aap ko padhna bahut achchha lagta hai .aap ki lekhni ko pranam.aap ko bahut bahut badhai
dhrmendra ji aap bahut achchha likhte hain.aap ko pathak samman ke liye badhai.
punah aap dono ko badhai
saader
rachana
रचना जी साहित्यिक प्रयासों की सराहना करने में आप भी कम नहीं हैं| सराहना के लिए बहुत बहुत आभार|
हुनर हो कोई भी, बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर,,,
:)
nice jaisaa kuchh...
नविन जी आपको यूनीकवि बनने की कोटिश बधाई ..गज़ल बहुत ही उम्दा हे ,एक एक शेर सार्थक,लाजवाब और अनूठा हे ,पुनः बधाई स्वीकारे
मनु जी मैं आपके हुनर का भी अभिनंदन करता हूँ
प्रवेश सोनी जी सराहना एवं हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
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