प्रतियोगिता मे छठा स्थान नवीन चतुर्वेदी की ग़ज़ल को मिला है। हिंद-युग्म पर यह उनकी पहली रचना है। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।
पुरस्कृत रचना: अच्छा लगता है
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता
हकीकत का आइना .....बहुत ही सही शब्दों की बुनावाट से सजी आपकी गज़ल ....बधाई
प्रवेश सोनी जी बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए|
क्या बात है नवीन बधाई। बहुत बहुत बधाई प्रतियोगिता में छठवाँ स्थान प्राप्त करने के लिए। शानदार ग़ज़ल।
यहाँ का पता ठिकाना देने वाले मेरे प्रिय मित्र धर्मेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए|
... prasanshaneey gajal !!!
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |
kya gahri baat likhi hai aap ne
sare sher bahut hi lajavab hain
badhai
saader
rachana
उदय जी और रचना जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों के लिए दिल से आभार|
नवीन जी, अापकि ये गजल बहुत पसंद अाई.
कुछ शेर दिल को छू गये. दाद कुबूल करे!
हिंदयुग्म टीम को भी बधाई!!
सुलभ जी उत्साह वर्धन और प्रशंसा के लिए दिल से आभार|
navin ke gajlo ke bhaav prabhavit karte hai, par sabdh chayan ke hisab se swayam chaturvedi ji ke star ki yah gajal nahi hai. jayada samsamayik hone ke chakaar mein ik bhatkaav dikta hai jo rachna ki gambhirta ko kam kar deta hai.
navin ji lambe samay tak saath rahe, hind yugm par unka swagat hai.
अखिलेश जी आप के विचार अनमोल हैं मेरे लिए|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता ।
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम इस रचना में ...।
नवीन जी... बहुत ही साधारण रचना है... एकदम औसत दर्जे की ... केवल तुकबंदी कर देने से किसी रचना में गंभीरता नहीं आ सकती है... शब्द चयन और बेहतर हो सकता था..
भाई अखिलेश जी और भाई सत्येंद्र जी आप दोनो की प्रोफाइल उपलब्ध नहीं हैं| कृपया अपने बारे में जानकारी उपलब्ध कराने की कृपा करें ताकि मैं आप दोनो के अनुभव से समुचित लाभ ग्रहण कर सकूँ|
सदा जी जर्रानवाजी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|
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