मै मांगती हूँ
तुम्हारी सफलता
सूरज के उगने से बुझने तक
करती हूँ
तुम्हारा इंतजार
परछाइयों के डूबने तक
दिल के समंदर में
उठती लहरों को
रहती हूँ थामे
तुम्हारी आहट तक
खाने में
परोस के प्यार
निहारती हूँ मुख
महकते शब्दों के आने तक
समेटती हूँ घर
बिखेरती हूँ सपने
दुलारती हूँ फूलों को
तुम्हारे सोने तक
रात को खीच कर
खुद में भरती हूँ
नींद के शामियाने में
सोती हूँ जग-जग के
तुम्हारे उठने तक
इस तरह
पूरी होती है यात्रा
प्रार्थना से चिन्तन तक।
कवियत्री- रचना श्रीवास्तव
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रार्थना और चिन्तन, यही दो किनारे हैं जीवन के। इन्हीं के बीच बँधा रहे मन, बाहर न छलके, यही ईश्वर से प्रार्थना है।
समर्पित सुमनों से गुंथी एक पवित्र रचना |
बधाई
विनय के जोशी
"अनवरत"pryas hi istri chetna hai..sundar rachna
खाने में
परोस के प्यार
निहारती हूँ मुख
महकते शब्दों के आने तक
समेटती हूँ घर
बिखेरती हूँ सपने
दुलारती हूँ फूलों को
तुम्हारे सोने तक
रात को खीच कर
खुद में भरती हूँ
नींद के शामियाने में
सोती हूँ जग-जग के
तुम्हारे उठने तक
bahut dino baad yugm per ayi aur ananad aa gaya. rachnaji bahut sundar likha hai. badhayi sweekaren
apka prem pooja se kam nahi...subhkamnayen...anvarat badhta rahe apka pyar
रचना श्रीवास्तव जी, सचमुच बहुत ही हृदस्पर्शी काव्य प्रस्तुति है ये आपकी तरफ से| बधाई|
ओह...लाजवाब !!!!
प्रशंशा को शब्द कहाँ से लाऊं...सोच रही हूँ....
प्रेम समर्पण का जो रूप आपने यहाँ दिग्दर्शित किया है....दर्शनीय है...
prem sahaj hota hai par uski abhivyakti utni sahaj nahi hoti.prem prathna se hote huye chintan tak mein aa jaye to vyaktitve ko premmay hone mein kuch bachta hi kaha hai.poori kavita mein prem ki lay dikthi hai.rachna ka silp prabhavit karta hai.
तुम्हारी यह "अनवरत" साधना चलती रहे...अपने बच्चों में मानस में ये जज्बा देख कर ही तो कहता हूँ कि "शाबाश" ...
सतीश चाचा
Bahut sundar likha hai rachna ji
aap sabh ke sneh shbdon ka dhnyavad
hamesh ki tarah punah yahi asha karti hoon ki aap logon ke shbd isi tarah milte rahemge
dhnyavad
rachana
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
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