फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, December 24, 2010

एक क़ुबूलनामा


स्वप्निल तिवारी ’आतिश’ एक सक्षम कवि और सक्रिय पाठक के तौर पे हिंद-युग्म पर जाने जाते हैं। इनकी गज़लें और नज़्में अक्सर प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशित होती हैं और पाठकों का प्रतिसाद पाती हैं। इनकी पिछली रचना अगस्त माह मे प्रकाशित हुई थी। नवंबर माह मे इनकी प्रस्तुत रचना आठवें स्थान पर रही है।

पुरस्कृत रचना: एक क़ुबूलनामा 

समुन्दर पी लेता है मुझे
और हो जाता है और गहरा,
मेरी छाँव में आते जाते
घटती बढती रहती हैं
कलाएं चाँद की,
मेरी कई तासीरों मे से एक
मांगकर बरस लेते हैं बादल,
कायनात की हर शय “मैं” हूँ,
बस ये धरती है जो मैं नहीं हो पाया,
वामन बन कर कोशिश भी की
कि नाप लूँ एक कदम मे इसे
और खुद हो जाऊं धरती
ताकते जब्त* मगर मुझमे नहीं इस जैसी |

इंसान ने
पुराने रिवाजों की जंज़ीर की तरह
काट दिए पेड,
मेरा ही नाम अलग अलग तरह
रख कर
लड़ रहा है आपस मे
मेरे सही नाम के लिए,
लम्हा-लम्हा क़तरा-क़तरा
निगल रहा है धरती को....

इंसान से धरती को बचाने की खातिर
मैंने तूफानों मे ज्यादा हवा भरी,
पानी की शक्ल भी बाढ़ की तरह
भयानक की,
कितने ही ज्वालामुखियों में
वक़्त-बेवक़्त  फूँक मारी है मैंने
ताकि मर जाएँ इंसान
इससे पहले कि धरती मर जाये
मगर बार-बार ये बचा लेती है इन्हें
छिपा के अपने आँचल में
....माँ की तरह !
और माँ के सामने तो मैं भी बेबस हूँ,
सच, मैं धरती होता तो
घूम गया होता उल्टा,
क़यामत के वक्त
न ले जाने दी होती
मनु को वो नाव
या नूह को वो कश्ती
और खत्म हो जाने दी होती
इंसानी तहज़ीब,
मगर अफ़सोस
मैं धरती नहीं हूँ
मैं खुदा हूँ
जो आता है बन कर सुनामी
मगर धरती कर देती है जिसे चुप
उतरे हुए बाढ़ के पानी की तरह ... !
_____________________________________________________________
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

धरती धारिणी है, गुरुतर कर्तव्य है यह, निभाने के लिये। सरल है, धरती न होना।

Unknown का कहना है कि -

:)

रंजना का कहना है कि -

ओह ...क्या बात कही....

सचमुच प्रशंसनीय कविता है..

मन बाँध लिया इसने...

बहुत बहुत सुन्दर रचना...

कडुवासच का कहना है कि -

... prabhaavashaalee rachanaa !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

धरती इंसान कि सारी गलतियों को माफ कर देती है ....बहुत अच्छी नज़्म ..

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

मैं धरती नहीं हूँ
मैं खुदा हूँ
जो आता है बन कर सुनामी
मगर धरती कर देती है जिसे चुप
उतरे हुए बाढ़ के पानी की तरह ... !

बहुत खूब स्वप्निल जी बहुत खूब| बधाई स्वीकार करें|

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुन्दर रचना के लिए बधाई

rachana का कहना है कि -

फटाफट (25 नई पोस्ट): जब ग़ज़ल मुश्किल हुई
। एक क़ुबूलनामा । अनवरत । तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है । हम शब्दों के बुनकर हैं । प्रतीक्षा । ओ बिरादरी वालों । उस वक्त को याद करते हुए उमेश पंत । बस्तर के गाँव में । जरूरी संवादों के संग नवंबर यूनिप्रतियोगिता के परिणाम । आँसुओं के ढेर में । 48वीं यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता में भाग लें । यह देवालय का छल है । लड़कियाँ । बेटियाँ । रहस्यमयी प्रेम कथाओं वाले मित्र । आंख में तिनका या सपना । कंकरीट के जंगल में । जैदी तुम आओगे ? । उसके नाम पर । क्रान्ति बीज लो । तुम कब आओगे पता नहीं । टुकड़ा-टुकड़ा वक़्त चबाती तनहाई । उम्र के धूप चढ़ल । खोल दो । जब ग़ज़ल मुश्किल हुई www.hindyugm.com
Friday, December 24, 2010
एक क़ुबूलनामा
स्वप्निल तिवारी ’आतिश’ एक सक्षम कवि और सक्रिय पाठक के तौर पे हिंद-युग्म पर जाने जाते हैं। इनकी गज़लें और नज़्में अक्सर प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशित होती हैं और पाठकों का प्रतिसाद पाती हैं। इनकी पिछली रचना अगस्त माह मे प्रकाशित हुई थी। नवंबर माह मे इनकी प्रस्तुत रचना आठवें स्थान पर रही है।

पुरस्कृत रचना: एक क़ुबूलनामा

समुन्दर पी लेता है मुझे
और हो जाता है और गहरा,
मेरी छाँव में आते जाते
घटती बढती रहती हैं
कलाएं चाँद की,
मेरी कई तासीरों मे से एक
मांगकर बरस लेते हैं बादल,
कायनात की हर शय “मैं” हूँ,
बस ये धरती है जो मैं नहीं हो पाया,
वामन बन कर कोशिश भी की
कि नाप लूँ एक कदम मे इसे
और खुद हो जाऊं धरती
ताकते जब्त* मगर मुझमे नहीं इस जैसी |

इंसान ने
पुराने रिवाजों की जंज़ीर की तरह
काट दिए पेड,
मेरा ही नाम अलग अलग तरह
रख कर
लड़ रहा है आपस मे
मेरे सही नाम के लिए,
लम्हा-लम्हा क़तरा-क़तरा
निगल रहा है धरती को....

इंसान से धरती को बचाने की खातिर
मैंने तूफानों मे ज्यादा हवा भरी,
पानी की शक्ल भी बाढ़ की तरह
भयानक की,
कितने ही ज्वालामुखियों में
वक़्त-बेवक़्त फूँक मारी है मैंने
ताकि मर जाएँ इंसान
इससे पहले कि धरती मर जाये
मगर बार-बार ये बचा लेती है इन्हें
छिपा के अपने आँचल में
....माँ की तरह !
aap ki ye panktiyan mujhe bahut achchhi lagin
bahut bahut badhai ho.
rachana

rachana का कहना है कि -

इंसान से धरती को बचाने की खातिर
मैंने तूफानों मे ज्यादा हवा भरी,
पानी की शक्ल भी बाढ़ की तरह
भयानक की,
कितने ही ज्वालामुखियों में
वक़्त-बेवक़्त फूँक मारी है मैंने
ताकि मर जाएँ इंसान
इससे पहले कि धरती मर जाये
मगर बार-बार ये बचा लेती है इन्हें
छिपा के अपने आँचल में
....माँ की तरह !
aap ye panktiyan mujhe bahut achchhi lagin
badhai
rachana

प्रिया का कहना है कि -

I Salute to this thought. Ye sach mein Dharti maa ke liye tribute hai

Good One swapnil

अनिल कार्की का कहना है कि -

पुराने रिवाजों की जंज़ीर की तरह
काट दिए पेड,
मेरा ही नाम अलग अलग तरह
रख कर
लड़ रहा है आपस मे
मेरे सही नाम के लिए,
लम्हा-लम्हा क़तरा-क़तरा
निगल रहा है धरती को...


स्वप्निल जी सुन्दर भावाभिव्यक्ति हैं ......

अनिल कार्की का कहना है कि -

पुराने रिवाजों की जंज़ीर की तरह
काट दिए पेड,
मेरा ही नाम अलग अलग तरह
रख कर
लड़ रहा है आपस मे
मेरे सही नाम के लिए,
लम्हा-लम्हा क़तरा-क़तरा
निगल रहा है धरती को...


स्वप्निल जी सुन्दर भावाभिव्यक्ति हैं ......

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

Vandana Singh का कहना है कि -

behad khoobsoorat najm swapnil ......:):)

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