जुलाई माह की सातवीं कविता एक ग़ज़ल है। इसके रचयिता स्वप्निल तिवारी आतिश की ग़ज़लें लम्बे समय से हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होती रही हैं।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
वो इक कागज़ के टुकड़े को सफीना* मान लेता है
फ़क़त हँसने-हँसाने को वो जीना मान लेता है
हवस इंसान के सर चढ़ के जिस पल बोलती है तब
वो इक बीमार कुतिया को हसीना मान लेता है
मई ओ जून में हम सब दुआएँ माँगते हैं जो
उन्हें झट से दिसम्बर का महीना मान लेता है
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
पढ़े गुलज़ार को कोई, उन्हीं पे जान देता है
वो उनके गाँव "दीना" को मदीना मान लेता है
फ़क़त इक आँच ही तारीफ कुछ उसकी अगर कर दे
तो आतिश खुद को इक महँगा नगीना मान लेता है
(सफीना- नाव)
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
बाकी सब तो अच्छा था आतिश साहब, बस वो कुतिया वाला मिजाज कुछ शायराना नहीं लगा. देखने वाले क़यामत की नज़र रखते है, और सोचने वाले तो कुदरतन खतनाक ही होते है. जरा ख़याल रखिये तो बेहतर.
वो इक कागज़ के टुकड़े को सफीना* मान लेता है
क्या कहने
कागज का सफीना हो
हौसले की पतवार
जीजिविषा गर सलामत रहे
तो उतरेंगे उस पार
वो इक कागज़ के टुकड़े को सफीना* मान लेता है
फ़क़त हँसने-हँसाने को वो जीना मान लेता है
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
पढ़े गुलज़ार को कोई, उन्हीं पे जान देता है
वो उनके गाँव "दीना" को मदीना मान लेता है
आज बहुत मन कर रहा है की आपसे ही कुछ शब्द छीन लूँ.... और कह दूँ, "कतल कतल कतल"
इन तीनो के लिए और कुछ है भी नहीं...
और बिना शक..आप एक बेहद चमकदार और बेशकीमत नगीना तो हैं ही.
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
लाजवाब शेर बधाई।
उस दिन ये गज़ल सुनाते तो कितना बढ़िया रहता...मंच पर सुनाने लायक बेहतरीन गज़ल है....
मां वाला शेर सचमुच बहुत खूबसूरत है....गज़ल में भाव के साथ बहर मेंटेंन रखने में आप माहिर हैं...कुतिया को हसीना सुनने में चलताऊ लगता है, मगर है बहुत मारक शेर.....तन्हाई को टाटा कर टाइप.....आप अच्छा लिखते हैं...
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है !
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां दिल को छूते हुये शब्द अनुपम प्रस्तुति ।
Bahut hi Umda Ghazal kahi hai.. aapne Swapnil bhai.. aur woh bimar kutia wala sher,., toh bahut hi gajab tha. :)
bahut acchi ghazal hui hai swapnil
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
पढ़े गुलज़ार को कोई, उन्हीं पे जान देता है
वो उनके गाँव "दीना" को मदीना मान लेता है
फ़क़त इक आँच ही तारीफ कुछ उसकी अगर कर दे
तो आतिश खुद को इक महँगा नगीना मान लेता है
ye teeno sher lajavaab hain....
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
kya baat hai janab..!!!!...
padhkar man me jo bhav aaye samajh me nahi aata.. unhe peeda kahooon.. dard kahoonn.. ya kuchh or...
dil se vah-vah!!! nikli hai.. kabool kijiye.
चलताऊ नहीं...
अच्छा शे'र लगा..बीमार कुतिया वाला...
हाँ, ग़ज़ल के अदब और तौर से मेल नहीं खाता..पर अच्छा लगा...
चलता है...
आपके मकते अलग ही होते हैं...उस दिन भी नोट किया था...
तन्हाई को टाटा कर..
कुछ तो सैर सपाटा कर...
:)
:)
वो इक कागज़ के टुकड़े को सफीना* मान लेता है
फ़क़त हँसने-हँसाने को वो जीना मान लेता है
अगर दिल के ग़मों को मुहज़बानी ना बताये माँ
तो बेटा आँसुओं को भी पसीना मान लेता है
bahut sunder
badhai
rachana
श्याम सुन्दर सारस्वत का कहना है कि -
शेर के दोनों मिसरो (पंक्तियों ) में आपस में राब्ता यानी सबंध होना चाहिए .....मगर उस शेर में ऐसा नहीं है ...
मई ओ जून में दुआएं मांगते है जो ... उन्हें झट से दिसंबर मान लेता है....क्या है ये ....
हवस इंसान के सर चढ़ के जिस पल बोलती है तब
वो इक बीमार कुतिया को हसीना मान लेता है
अदब में कुत्ते , कुत्तिया आदी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल ठीक नहीं माना जाता है...
इन शायर साहेब से अगर आपका तार्रुफ़ है तो इन्हें समझाए .....
August 26, 2010 5:17 PM
shayd kahin ka kament kahin chhap gaya hai
http://kavita.hindyugm.com/2010/03/blog-post_8353.html
shyam sundar ji ...:)
jo aapne poocha...ki kya hai wo sirf ...ek rahat ki baat hai ...dhundh lijiye na ho to ..rahat...garmi se ..pyaas se..dhoop se ...
rahi adab kee baat ....to haan adabi mahfilon me ..main ye sher sunane se bachunga...kyunki maine wahaan sannata taari hote hue dekha hai ...
rahi bat aisa kuch likhne ki to wo main likhunga ... kyunki ghazal sirf nazuk ladki nahi hai mere liye ..ye meri har abhivyakti ka madhyam hai ....
baharhaal bahut bahut shuqriyaa aap ka ...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)