प्रतियोगिता की आठवीं कविता सुधीर गुप्ता 'चक्र' की है। 20 जुलाई 1967 को ग्वालियर (म.प्र.) में जन्मे चक्र ने आईटीआई (इलेक्ट्रॉनिक्स) तथा एम कॉम की डिग्रियाँ प्राप्त की हैं। बचपन से ही मातृ भाषा हिंदी के प्रति विशेष लगाव और साहित्य में रूचि रही। बारह वर्ष की आयु और सन १९७८ में पहली कविता का सृजन किया। मित्रों ने सराहा और प्रगति का प्रतीक 'चक्रÓ उपनाम से संबोधित किया। बस! तब से ही लेखन दैनिक क्रिया का एक अंग बन गया और आज तक विविध प्रकार की नौ पुस्तकों का लेखन किया। पहली पुस्तक वर्ष 2009 में हास्य-व्यंग्य कविताओं का संग्रह 'अरे! हम तो फिसल गए' रवि पब्लिकेशन मेरठ द्वारा प्रकाशित हुई। इनकी दूसरी पुस्तक 'उम्मीदें क्यों?'(कविता-संग्रह) अभी हाल ही में हिन्द-युग्म प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ-साथ काव्य मंच, आकाशवाणी एवं टी वी के माध्यम से कविता पाठ। 'सृजन' पत्रिका का छ: वर्षों तक सफल संपादन करते हुए पत्रिका को नयी ऊँचाईयाँ प्रदान की।
ईमेल- sudhir.bhel@gmail.com
मोबाइल- +91-9451169407
पुरस्कृत कविता- कवि का दु:ख
अगर भूल जाऊँ
कविता लिखना
तो
शीत की तरह
उभर आएँगे
स्मृति पटल पर
तमाम दु:ख
शोक और
मानवीय संवेदनाओं के
मिले-जुले भाव और
तब
हवा के थपेड़ों से पिटती हुई
अनिश्चित गंतव्य की ओर
चलती हुई नाव
और
उसमें प्रथम बार यात्रा कर रहे
सहमे हुए यात्री की आँखों से
निकल आएँगे अश्रु
और
पेट में उठेगा
ज्वार-भाटे सा दर्द
माथे पर होंगे
मिश्रित भाव
तब
शर्म से
समा जाएगी धरती
आकाश में या
पुन: स्मरण हो आएगी
कवि को कविता।
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
तब
शर्म से
समा जाएगी धरती
आकाश में या
पुन: स्मरण हो आएगी
कवि को कविता।
यकीनन उस क्षण कवि को कविता याद आ जायेगी और ज्वार-भाटे की गति को या तो विराम मिलेगा या नवनिर्माण का ज्वार-भाटा और प्रबलतम रूप में परिलक्षित होगा
सुन्दर कविता
कवि कविता लिखना या तो भूलेगा नहीं और अगर भूल भी गया तो अवसरानुकूल ये भाव फिर उभरेंगे ही.
thanks .. very good
अगर भूल गए कवितायेँ लिखना ..
तो फिर फिर
सिखाएंगी परिस्थितियां लिखना ...!
अगर भूल जाऊँ
कविता लिखना
तो
शीत की तरह
उभर आएँगे
स्मृति पटल पर
तमाम दु:ख
शोक
बिलकुल सही कहा एक कवि के मन की आवाज़। सुधीर जी को बधाई।
सुधीर जी बहुत-बहुत बधाई।
सुंदर और सर्वोत्तम कविता लिखी है आपने।
पिंकी पटेल
तब
हवा के थपेड़ों से पिटती हुई
अनिश्चित गंतव्य की ओर
चलती हुई नाव
और
उसमें प्रथम बार यात्रा कर रहे
सहमे हुए यात्री की आँखों से
निकल आएँगे अश्रु
और
पेट में उठेगा
ज्वार-भाटे सा दर्द
माथे पर होंगे
मिश्रित भाव
कवि सुधीर गुप्ता "चक्र" की यह कविता मुझे और मेरे दोस्तों को बहुत पसंद आई।
कल्पना अवस्थी
सर्वोतम से उत्तम कुछ नहीं होता।
बहुत सुंदर कविता है।
मैंने हिंद युग्म पर सैकडों कविताएं पढी हैं लेकिन "कवि का दुःख" जैसी कविता आजतक नहीं पढी। बहुत अच्छी कविता लिखी है। मेरी ओर से कवि सुधीर गुप्ता "चक्र" जी को हार्दिक बधाई।
मैंने हिंद युग्म पर सैकडों कविताएं पढी हैं लेकिन "कवि का दुःख" जैसी कविता आजतक नहीं पढी। बहुत अच्छी कविता लिखी है। मेरी ओर से कवि सुधीर गुप्ता "चक्र" जी को हार्दिक बधाई।
kuchh n kuchh to hoga hi.. kavi ji..
अगर भूल गए कवितायेँ लिखना ..
तो फिर, सुन्दर पंक्तियां, बेहतरीन रचना ।
बहुत दिनों के बाद रचना पढ़ी ....क्षमा चाहूँगा..
दिल की गहराइयों से जुड़ कर मित्र पंक्तियाँ लिखी हैं,
हर कवि के जीवन में अक्सर यह घड़ियाँ दिखी हैं ,
यह कल्पना है, या सचमुच किसी कल की तरुणाई ,
मेरे परम मित्र आपको ... सहृदय बहुत-बहुत बधाई I
मदन पाण्डेय 'शिखर'
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