जून 2010 के यूनिकवि रह चुके आलोक उपाध्याय की कलम से हिंद-युग्म के पाठक खूब परिचित हैं। खासकर गज़लों मे महारत रखने वाले आलोक की प्रस्तुत गज़ल नवंबर माह मे सातवें पायदान पर है।
पुरस्कृत कविता: गज़ल
माना तुमसे कमतर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वो जज़्बाती अव्वल सा है
हम तो जन्म से पत्थर हैं
आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
अबकी साँसे थमी हैं जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
_____________________________________________________________
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुखड़े पर कोई कापीराइट तो नही बनता , पर मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि " हम सब्दो के बुनकर हैं " मेरी २००८ में रचित कविता में मेने प्रयोग किया था ...लिंक देखें ...
http://vivekkikavitaye.blogspot.com/2008/05/blog-post.html
आज उसे इस नये रूप में देखकर अच्छा लगा ... बधाई
सुंदर रचना के लिए बधाई
अच्छी रचना
shabdo ka bunkar hi hota hai ek kavi.sundar rachna
शब्दों के बुनकर भाई आलोक उपाध्याय जी बहुत बहुत बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए|
पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वाकई आलोक जी शब्दों के बुनकर हैं। इन्हे अच्छी गज़ल के लिये बधाई।
बहुत अच्छी पकड़ शब्दों पर ,
कितने कवि बुनकर बन कर
समय की चादर में
कुछ फूल टाँके जाते हैं
bahut hi badiya likha hai..
mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
विवेक जी नमस्ते ..
ये महज़ एक इत्तेफाक की बात है .....
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया ......
अगली टिप्पणी में शायद कुछ लिख सकूँ ...अभी थोडा सा जल्दी में हूँ | पर आऊंगा ज़रूर ....और अपनी सफाई भी दूंगा ....
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
sahi kaha aap ne
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
kya dard pakda hai .aap ki soch kitni sahi hai
bahut bahut badhai
saader
rachana
alok ki gajlo ki taajgee kushnuma ahsas karati hai tab bhi jab sahitya,lekhko ke padne ki cheej bankar rah gaya ho.inki gajle naye pristbhoomi par jakar pathak talasne ki chamta rakhti hai.sahaj sabdh aur gahre bhaavo ke saath ,kuch alag rasto par chalne wale log bhi aapki kavitao ke samne dekh tahre ,aisi asha hai.
sarthak rachna ke liye badhayee.
मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
bahut hi achchhi ghazal
shubhkamnayin
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)