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Friday, December 17, 2010

हम शब्दों के बुनकर हैं


जून 2010 के यूनिकवि रह चुके आलोक उपाध्याय की कलम से हिंद-युग्म के पाठक खूब परिचित हैं। खासकर गज़लों मे महारत रखने वाले आलोक की प्रस्तुत गज़ल नवंबर माह मे सातवें पायदान पर है।

 पुरस्कृत कविता: गज़ल
माना  तुमसे कमतर हैं
कहीं कहीं हम बेहतर हैं

पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं

वो  जज़्बाती अव्वल सा है  
हम तो जन्म से पत्थर हैं

आना कुछ दिन बाद यहाँ
हालात शहर में बदतर हैं

मौत से हम  घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ  सह कर हैं

अबकी साँसे थमी हैं  जाके
यूँ मरे तो उनपे अक्सर हैं

ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ  सारी घर पर हैं
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पुरस्कार- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।


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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Vivek Ranjan Shrivastava का कहना है कि -

मुखड़े पर कोई कापीराइट तो नही बनता , पर मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि " हम सब्दो के बुनकर हैं " मेरी २००८ में रचित कविता में मेने प्रयोग किया था ...लिंक देखें ...

http://vivekkikavitaye.blogspot.com/2008/05/blog-post.html

आज उसे इस नये रूप में देखकर अच्छा लगा ... बधाई

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुंदर रचना के लिए बधाई

M VERMA का कहना है कि -

अच्छी रचना

ritu का कहना है कि -

shabdo ka bunkar hi hota hai ek kavi.sundar rachna

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

शब्दों के बुनकर भाई आलोक उपाध्याय जी बहुत बहुत बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए|

निर्मला कपिला का कहना है कि -

पहचान हमारी खतरे में
हम शब्दों के बुनकर हैं
वाकई आलोक जी शब्दों के बुनकर हैं। इन्हे अच्छी गज़ल के लिये बधाई।

शारदा अरोरा का कहना है कि -

बहुत अच्छी पकड़ शब्दों पर ,
कितने कवि बुनकर बन कर
समय की चादर में
कुछ फूल टाँके जाते हैं

ManPreet Kaur का कहना है कि -

bahut hi badiya likha hai..
mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

विवेक जी नमस्ते ..
ये महज़ एक इत्तेफाक की बात है .....
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया ......
अगली टिप्पणी में शायद कुछ लिख सकूँ ...अभी थोडा सा जल्दी में हूँ | पर आऊंगा ज़रूर ....और अपनी सफाई भी दूंगा ....

rachana का कहना है कि -

मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं
sahi kaha aap ne
ग़ैर देश में नज़र है तनहा
खुशियाँ सारी घर पर हैं
kya dard pakda hai .aap ki soch kitni sahi hai
bahut bahut badhai
saader
rachana

Akhilesh का कहना है कि -

alok ki gajlo ki taajgee kushnuma ahsas karati hai tab bhi jab sahitya,lekhko ke padne ki cheej bankar rah gaya ho.inki gajle naye pristbhoomi par jakar pathak talasne ki chamta rakhti hai.sahaj sabdh aur gahre bhaavo ke saath ,kuch alag rasto par chalne wale log bhi aapki kavitao ke samne dekh tahre ,aisi asha hai.
sarthak rachna ke liye badhayee.

सदा का कहना है कि -

मौत से हम घबराएं कैसे
जिंदा सब कुछ सह कर हैं

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

Unknown का कहना है कि -

bahut hi achchhi ghazal
shubhkamnayin

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