प्रतियोगिता की तीसरी कविता शाहिद मिर्जा ’शाहिद’ की है। पेशे से पत्रकार शाहिद जी उर्दू और हिंदी शायरी की विधा मे खासा रुझान रखते हैं। इन्होने दूरदर्शन, आकाशवाणी और अन्य तमाम मंचों पर अपनी कविताओं का पाठ किया है। शाहिद जी ब्लॉग के माध्यम पर भी काफ़ी सक्रिय हैं। यह हिंद-युग्म पर उनकी पहली कविता है।
पुरस्कृत कविता: प्रतीक्षा
सूर्योदय से
सूर्यास्त के बीच
व्यस्त जीवन की त्रासदी से दूर
वो सुहानी नींद के क्षण
और
सपनों के संगेमरमर से निर्मित
कल्पना के
ताजमहल का विचरण
हमें यथार्थ से कितनी दूर ले जाता है
लेकिन
सूर्य की पहली किरणें
छिन्न-भिन्न कर देती हैं
चिन्तन मुक्त क्षणों को
और
हमे लौट आना पड़ता है
सपनों से दूर
भावनाओं रहित
मशीनी जीवन के धरातल पर
पुनः
सूर्यास्त की प्रतीक्षा में
क्षण-प्रतिक्षण.....
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
रात की खामोशी नींद सपने इसी लिए बने है कि यथार्थ से दूर चिंता मुक्त हो पाए चाहे कुछ पल सुबह फिर सपनो का अँधेरा मिट जाता है और ज़िन्दगी का यथार्थ रौशनी बिखेर देता है...
Achhi rachna hai Shahid Bhai. Badhaayi !!
सुंदर कविताeraj
सुंदर रचना के लिए बधाई
sundar rachna..
सपनों के संगेमरमर से निर्मित
कल्पना के
ताजमहल का विचरण
हमें यथार्थ से कितनी दूर ले जाता है
बहुत सुंदर !
सच्चाई से बहुत क़रीब !
Bahut hi sundar kavita ....badhaiyan.
sapnon aur nind pr aap ne kya sunder likha hai suraj ki pahli kiran ab achchhi nahi lag rahi
bahut khoob badhai
saader
rachana
saare din hum ikaadh sapno ko such karne ki koshish mein bhagte rehte hai.aane wale kuch saalo mein sapne bhi sametane padange, jyada sapne hatasa dete hai.
acchi rachna ke liye badhyee.
हमे लौट आना पड़ता है
सपनों से दूर
भावनाओं रहित
मशीनी जीवन के धरातल पर
बहुत ही सुन्दर शब्द ।
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