प्रतियोगिता की दूसरी कविता वसीम अकरम की है। यूनिप्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागी वसीम की कविताओं के केंद्र मे सामाजिक और आर्थिक विसंगतियाँ होती हैं, रूढियों और अन्याय के प्रतिरोध का स्वर हो्ता है और सामाजिक परिवर्तन का आह्वान भी होता है। नवंबर माह के यूनिकवि रह चुके वसीम अकरम की एक ग़ज़ल पिछले माह भी शीर्ष दस मे रही थी।
पुरस्कृत कविता: लोकतंत्र में लोक
तुम अनाज उगाओगे
तुम्हे रोटी नहीं मिलेगी,
तुम ईंट पत्थर जोड़ोगे
तुम्हें सड़क पर सोना होगा,
तुम कपड़े बुनोगे
और तुम नंगे रहोगे,
क्योंकि अब लोकतंत्र
अपनी परिभाषा बदल चुका है
लोकतंत्र में अब लोक
एक कोरी अवधारणा मात्र है,
सत्ता तुम्हारे नहीं
पूंजी के हाथ में है
और पूंजी
नीराओं, राजाओं
कलमाडियों और टाटाओं के हाथ में है,
तुम्हारी ज़बान, तुम्हारी मेहनत
तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारा अधिकार
सिर्फ संवैधानिक कागजों में है
हकीकत में नहीं,
तभी तो
तुम्हारी चंद रुपये की चोरी
तुम्हें जेल पहुंचा देती है
मगर
उनकी अरबों की हेराफेरी
महज एक
राजनितिक खेल बनकर रह जाती है।
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
मगर
उनकी अरबों की हेराफेरी
महज एक
राजनितिक खेल बनकर रह जाती है।
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bahut barhiya vyangya...
aakarshan
सुंदर, सारगर्भित सटीक रचना, मुझे हरीश भदानी जी का यह नवगीत याद आ गया।
सड़कवासी राम!
न तेरा था कभी
न तेरा है कहीं
रास्तों दर रास्तों पर
पाँव के छापे लगाते ओ अहेरी
खोलकर
मन के किवाड़े सुन
सुन कि सपने की
किसी सम्भावना तक में नहीं
तेरा अयोध्या धाम।
सड़कवासी राम!
सोच के सिर मौर
ये दसियों दसानन
और लोहे की ये लंकाएँ
कहाँ है कैद तेरी कुम्भजा
खोजता थक
बोलता ही जा भले तू
कौन देखेगा
सुनेगा कौन तुझको
ये चितेरे
आलमारी में रखे दिन
और चिमनी से निकलती शाम।
सड़कवासी राम!
पोर घिस घिस
क्या गिने चैदह बरस तू
गिन सके तो
कल्प साँसों के गिने जा
गिन कि
कितने काटकर फेंके गए हैं
ऐषणाओं के पहरूए
ये जटायु ही जटायु
और कोई भी नहीं
संकल्प का सौमित्र
अपनी धड़कनों के साथ
देख वामन सी बड़ी यह जिन्दगी
कर ली गई है
इस शहर के जंगलों के नाम।
सड़कवासी राम!
-- कविता कोश से साभार
बहुत बहुत बहुत ही सही कहा...
झकझोरती हुई अतिसार्थक और सुन्दर रचना...
आभार.
बहुत -बहुत बधाई |लोकतंत्र में लोक कविता में सही ही लिखा है |आज लोक -तंत्र कहने को है सब कुछ तानाशाही है भ्रष्ट नेताओ के हाथ देश की पतवार है आज के परिवेश का सटीक चित्रं प्रस्तुत किया छोटी सी कविता में |
sunder rachna ...loktantra ka sach yahi hai ....is sunder or sateek kavita ke liye bandhai :)
वर्तमान हालातों में एसी कलम की तलवारे चलना जरुरी हे ...कलम की क्रांति से ही शायद भ्रष्टाचारी दानवों के विरुद आन्दोलन की शुरुवात हो सके ... पीड़ित आम जन को कुछ मानसिक राहत तो मिलेगी ...बधाई
वसीम भाई आपकी लेखनी काफी दमदार है
सं सामयिक विषय पर काफी अच्छा लिखा है आपने
बधाई स्वीकार करें
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