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Friday, February 18, 2011

छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये



प्रतियोगिता की तीसरी रचना एक गज़ल है। इसकी रचनाकार वंदना सिंह की हिंद-युग्म पर प्रथम रचना है। अपना परिचय देते हुए खुद उनका कहना है कि ’समझ नहीं पा रही हूँ कि परिचय क्या दूं? फिलहाल इतना ही कहना चाहूंगी कि मैं उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर से हूँ। .सितम्बर 1989 का मेरा जन्म है। स्कूल शिक्षा हासिल करने के पश्चात 2008 में भारत से अमेरिका आना हुआ और फिलहाल कॉलेज में हूँ। कविता से प्रेम स्कूल के समय कापी-किताबो के पीछे लिखते-लिखते कब डायरी तक आया पता ही नहीं चला। पर सही रूप से जुड़ने और समझने का मौका नेट की दुनिया ने दिया। इसलिए 2009 को अपनी शुरुवात मानती हूँ। " कागज़ मेरा मीत है ..कलम मेरी सहेली" नामक ब्लॉग पर निरंतर अपनी रचनाये प्रकाशित करती रहती हूँ।   कुछ करीबी कवि-मित्रो की सीख और सराहना हमेशा प्रेरित करती रही है। उन सबका दिल से धन्यवाद करना चाहती हूँ! ’बुजुर्ग लाये हैं दिलों के दरिया से मोहब्बत की कश्ती निकाल कर, हम भी मल्लाह बस उसी सिलसिले के हैं।’

पुरस्कृत रचना: गज़ल

लबो पे  हँसी, जुबाँ पर  ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये

दुनिया में  रिश्तों का  सच  जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये

बेकाबू  न हो जाये ये अंतर्मन  का  शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये

बंजारा हो चला दिल, तलब-ए-मुश्कबू में
लाख बेडियाँ चाहे इस पर  डाले रखिये

ये नजरिये का झूठ और दिल के वहम
इश्क सफ़र-ए-तीरगी है नजर के उजाले रखिये

मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये

कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये

 तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने  वो बुजुर्गो कि  मिसालें रखिये

(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)
______________________________________
पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।

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22 कविताप्रेमियों का कहना है :

आकर्षण गिरि का कहना है कि -

vandana jee
ek dilkash ghazal ke liye badhaiii....
ye silsila banaye rakhiye
aakarshan

प्रिया का कहना है कि -

पता है वंदना! ये यकीन करना मुश्किल हो रहा है के तुमने लिखी है.....किसी नामचीन हस्ती का काम लगता है ....हर शेर खूबसूरत है .....कैसे सोच लेती हो ऐसा...हमने तो कॉपी कर लिया :-)

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुंदर रचना है, इसे ग़ज़ल कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि यह बहर में नहीं है और काफिए का भी पूरी रचना में पालन नहीं हुआ है। "मिसालें" शब्द काफ़िए से बाहर है। पर इसे एक सुंदर रचना कहा जा सकता है और इसके लिए कवियित्री को बधाई।

रचना प्रवेश का कहना है कि -

अच्छी रचना हे ....
लबो पे हँसी, जुबाँ पर ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये

दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये
बहुत ही अच्छा लगी यह पंक्तिया ....बधाई

Ankit Shukla का कहना है कि -

क्या बात है...
सोच कैसे लेती हो ठाकुर साहब इतना??? वैसे भाव पूर्ण रचना है....आप को शुभकामनाये..और लिखो और सुनाओ मतलब पढाओ :)

punita singh का कहना है कि -

वन्दना उम्र के हिसाब से आपकी कविता में गहराई बहुत है जो आप के उज्ज्वल भविष्य का संकेत देता है |स्कुल के दिनों की पुरानी रहीम दास की कविता याद आ गई-रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोह ,सुन इठीलैहैये लोग सब बाट लिये ना कोई 'मन की व्यथा कविता का माध्यम और कविता हिन्दयुग्म से बेहतर माध्यम और कोई हो ही नहीं सकता है |शब्दों का चयन बहुत सुन्दर है |कलम को और धार दार बना कर लिखते रहिये मेरी शुभ कामनाये आप के साथ है |

शारदा अरोरा का कहना है कि -

aanand aaya gazal padh kar..

Vandana Singh का कहना है कि -

हिन्द-युग्म टीम और आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ...आपने रचना को सराहा और इस लायक समझा ...हिन्द युग्म से जुडना मेरे लिए अच्छा रहा ! इस स्नेह के लिए आभारी हूँ

शुक्रिया आप सभी का :)

सुनील गज्जाणी का कहना है कि -

hello
vandana jee !
aap nirantar yhi apna prayaas zaari rakhieyga . aur nikhar aata jaaeyega . sadhuwad

सुनील गज्जाणी का कहना है कि -

hello
vandana jee !
aap nirantar yhi apna prayaas zaari rakhieyga . aur nikhar aata jaaeyega . sadhuwad

रंजना का कहना है कि -

वाह ...वाह...वाह...

बेहतरीन..

लाजवाब...

बेजोड़ ....

आपने इतने विनीत भाव से लिखा कि,लिखना हाल फिलहाल में शुरू किया है....लेकिन रचना पढ़ कौन कह सकता है कि लेखनी मंजी हुई प्रौढ़ परिपक्व नहीं...

मन आनंदित हो गया पढ़कर...

बहुत ही सुन्दर लिखती हैं आप...इस क्रम को अबाधित रखिये...

सुन्दर सुन्दर लिखती रहिये...शुभकामनाएं...

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

सुंदर भावों से सजी अभिव्यक्ति, अच्छी पेशकश|
खास कर 'घर के छींके' वाला प्रयोग बहुत ही प्रभावित करता है|

कम लोग ही प्रांतीय भाषा के शब्दों को प्रयोग में ला रहे हैं| आपका यह प्रयास स्वागत योग्य है |

गजल के बारे में धर्मेद्र भाई की बातों पर गौर करने की जरूरत है

फिर भी इस साहित्यिक प्रयास के लिए आप बधाई की हकदार हैं

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " का कहना है कि -

bahut sundar ,aapko hardik badhai

Vandana Singh का कहना है कि -

बहुत बहुत शुक्रिया तहे दिल से आप सभी का :):) आप सबकी हौंसला अफजाई ही संजीवन बूटी है .कोशिश रहेगी आप सभी कि उम्मीदों पर खरी उतर सकूं भविष्य में ....एक बार फिर आप सब को बहुत बहुत धन्यवाद !!..

आभार !
वन्दना सिंह
http://wwwbloggercom-vandana.blogspot.com/

Safarchand का कहना है कि -

Vandana Ji,aapka swagat hai...aap ko "chapaas" ka roog nahi hai. shayad aapki lekhni zingi ke bahut kareeb hai...aurt style ka to kahana hi kya..waah..baut baut achchi kavita hai ye...
Aapke kavi hiryada ko pranam aur aapke kaushal ( kaya shilp) ko namaskaar.

dschauhan का कहना है कि -

दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये!
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई।

Vandana Singh का कहना है कि -

safarchand ji and DSchauhan ji

aapka bhi bahut dhnyavaad rachna tak aane or sarahne ke liye :)

bahut bahut shukriyaa :)

सदा का कहना है कि -

दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये

बेकाबू न हो जाये ये अंतर्मन का शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

manu का कहना है कि -

achchhi hai...


shabdaarth bhi theek hain...

sid का कहना है कि -

Kaafi acchi rachna hai, badhai, hum sabhi seekh rahe hai aur yaha sabhi rachnao se kuch na kuch sekhne ko mil raha hai.

http://sid-matrubhasha.blogspot.com/

RAKESH JAJVALYA राकेश जाज्वल्य का कहना है कि -

दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये


कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये

अच्छी रचना......

शुभ कामनाये.......बधाई.

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये

बेहतरीन प्रस्‍तुति अच्छी रचना......

शुभ कामनाये.......बधाई.

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