प्रतियोगिता की पाँचवीं रचना भी एक ग़ज़ल है। रचनाकार धर्मेंद्र कुमार सिंह प्रतियोगिता मे नियमित भाग लेते हैं और इनकी रचनाएं भी पाठकों का प्रतिसाद पाती रहती हैं। धर्मेंद्र जी इस बार के हमारे यूनिपाठक भी बने हैं। इनकी पिछली गज़ल दिसंबर माह मे सातवें स्थान पर रही थी।
पुरस्कृत रचना: गज़ल
जो तेरे दर पे हम नहीं आते
तो खुशी ले के गम नहीं आते
बात कुछ तो है तेरी आँखों में
मयकदे वरना कम नहीं आते
कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
होगा इंसान सा कभी नेता
मुझको ऐसे भरम नहीं आते
आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतने गरम नहीं आते
कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
धर्मेन्द्र कुमार जी बहुत बहुत बधाई |बढ़िया ग़ज़ल है |शब्दों का चुनाव भी सुन्दर है |शुभकामनाये |
Bahut sundar ghazal hai dharmendra ji....
धर्मेन्द्र जी अच्छी ग़ज़ल है .. बधाई हो ..
कड़वी सच्चाई ...
कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
वाह धर्मेन्द्र भाई वाह, क्या खूब अशआर निकले हैं बन्धु~ बधाई
इस गजल का केनवास बहुत प्रभावित करता है
नए जमाने की गजल है ये, रिवायाती गज़लों से अलग हट कर
फ्यूचर ऐसी गज़लों का ही है
कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
वाह धर्मेन्द्र भाई वाह, क्या खूब अशआर निकले हैं बन्धु~ बधाई
इस गजल का केनवास बहुत प्रभावित करता है
नए जमाने की गजल है ये, रिवायाती गज़लों से अलग हट कर
फ्यूचर ऐसी गज़लों का ही है
कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
धर्मेन्द्र जी का हर एक शेर दिल को छूता हुया। इस सुन्दर गज़ल के लिये उन्हें बधाई।
ek ek sher... kya kahoon....
bas... badhaai....
Aakarshan
कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
होगा इंसान सा कभी नेता
मुझको ऐसे भरम नहीं आते
ये और अंतिम वाले ने तो वाह ,वाह निकाल दी मुंह से...
लाजवाब ग़ज़ल लिखी है आपने...सारे के सारे शेर मन को छू मोहित कर जाने वाले...
बहुत बहुत सुन्दर...वाह. ...
कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
यह पंक्ति वाकई दिल को हिलाने वाली हे ...एक नया सा अनुभव मिला इस गज़ल को पढ कर ...बधाई स्वीकार करे
धर्मेन्द्र कुमार जी बहुत बहुत बधाई |
बढ़िया ग़ज़ल है |
शब्दों का चुनाव भी सुन्दर है |
शुभकामनाये |
कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
BAHUT SUNDER
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
SAHI LIKHA HAI AAP NE
SABHI SHER LAJAVAB HAIN
BADHAI
SAADER
RACHANA
पुनीत जी, स्वप्निल जी, दीपक जी, नवीन भाई, निर्मला जी, आकर्षण जी, रंजना जी, प्रवेश जी, सुनील जी और रचना जी, ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।
ek-ek sher dil ko chhune wala
bahut hi achchhi ghazal
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
dharam bhaai...
bahut achchhaa lagaa aapko padhnaa...
badhaayi ho...
निशा जी, सदा जी और मनू जी आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।
dharmendra jee, gazal bahut hi achchhee hai, har sher badhiya. badhaiyaan
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