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Sunday, February 20, 2011

यूँ ही आँगन में बम नहीं आते



प्रतियोगिता की पाँचवीं रचना भी एक ग़ज़ल है। रचनाकार धर्मेंद्र कुमार सिंह प्रतियोगिता मे नियमित भाग लेते हैं और इनकी रचनाएं भी पाठकों का प्रतिसाद पाती रहती हैं। धर्मेंद्र जी इस बार के हमारे यूनिपाठक भी बने हैं। इनकी पिछली गज़ल दिसंबर माह मे सातवें स्थान पर रही थी।

पुरस्कृत रचना: गज़ल

जो तेरे दर पे हम नहीं आते
तो खुशी ले के गम नहीं आते

बात कुछ तो है तेरी आँखों में
मयकदे वरना कम नहीं आते

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते

होगा इंसान सा कभी नेता
मुझको ऐसे भरम नहीं आते

आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतने गरम नहीं आते

कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते

प्रेम में गर यकीं  हमें  होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते

कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
________________________
पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

punita singh का कहना है कि -

धर्मेन्द्र कुमार जी बहुत बहुत बधाई |बढ़िया ग़ज़ल है |शब्दों का चुनाव भी सुन्दर है |शुभकामनाये |

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

Bahut sundar ghazal hai dharmendra ji....

deepak का कहना है कि -

धर्मेन्द्र जी अच्छी ग़ज़ल है .. बधाई हो ..
कड़वी सच्चाई ...
कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
वाह धर्मेन्द्र भाई वाह, क्या खूब अशआर निकले हैं बन्धु~ बधाई
इस गजल का केनवास बहुत प्रभावित करता है
नए जमाने की गजल है ये, रिवायाती गज़लों से अलग हट कर
फ्यूचर ऐसी गज़लों का ही है

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते
प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
वाह धर्मेन्द्र भाई वाह, क्या खूब अशआर निकले हैं बन्धु~ बधाई
इस गजल का केनवास बहुत प्रभावित करता है
नए जमाने की गजल है ये, रिवायाती गज़लों से अलग हट कर
फ्यूचर ऐसी गज़लों का ही है

निर्मला कपिला का कहना है कि -

कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते

प्रेम में गर यकीं हमें होता
इस जहाँ में धरम नहीं आते
धर्मेन्द्र जी का हर एक शेर दिल को छूता हुया। इस सुन्दर गज़ल के लिये उन्हें बधाई।

आकर्षण गिरि का कहना है कि -

ek ek sher... kya kahoon....
bas... badhaai....

Aakarshan

रंजना का कहना है कि -

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते

होगा इंसान सा कभी नेता
मुझको ऐसे भरम नहीं आते

ये और अंतिम वाले ने तो वाह ,वाह निकाल दी मुंह से...

लाजवाब ग़ज़ल लिखी है आपने...सारे के सारे शेर मन को छू मोहित कर जाने वाले...

बहुत बहुत सुन्दर...वाह. ...

रचना प्रवेश का कहना है कि -

कोई बच्चा कहीं कटा होगा
गोश्त यूँ ही नरम नहीं आते

यह पंक्ति वाकई दिल को हिलाने वाली हे ...एक नया सा अनुभव मिला इस गज़ल को पढ कर ...बधाई स्वीकार करे

सुनील गज्जाणी का कहना है कि -

धर्मेन्द्र कुमार जी बहुत बहुत बधाई |
बढ़िया ग़ज़ल है |
शब्दों का चुनाव भी सुन्दर है |
शुभकामनाये |

rachana का कहना है कि -

कोइ कहीं भूखा सो गया होगा
यूँ ही जलसों में रम नहीं आते
BAHUT SUNDER
कोइ अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं आते
SAHI LIKHA HAI AAP NE
SABHI SHER LAJAVAB HAIN
BADHAI
SAADER
RACHANA

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

पुनीत जी, स्वप्निल जी, दीपक जी, नवीन भाई, निर्मला जी, आकर्षण जी, रंजना जी, प्रवेश जी, सुनील जी और रचना जी, ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।

Unknown का कहना है कि -

ek-ek sher dil ko chhune wala
bahut hi achchhi ghazal

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

manu का कहना है कि -

dharam bhaai...

bahut achchhaa lagaa aapko padhnaa...

badhaayi ho...

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

निशा जी, सदा जी और मनू जी आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।

सुवर्णा का कहना है कि -

dharmendra jee, gazal bahut hi achchhee hai, har sher badhiya. badhaiyaan

DHARMENDRA MANNU का कहना है कि -
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