धर्मेंद्र कुमार सिंह पिछले कुछ महीनों से ही हिंद-युग्म पर जुड़े हैं। मगर एक सक्षम कवि और गंभीर पाठक के तौर पर अपनी सार्थक और निरंतर उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इनकी पिछली रचना नवंबर माह मे शीर्ष दस मे रही थी। दिसंबर माह मे भी इनकी प्रस्त्तुत गज़ल ने सातवाँ स्थान प्राप्त किया है।
पुरस्कृत रचना: गज़ल
प्यार तुझसे हुआ नहीं होता
तो मैं इंसान सा नहीं होता
तेरी यादों की गोंद ना होती
टूटकर मैं जुड़ा नहीं होता
मंदिरों में अगर ख़ुदा मिलता
एक भी मयक़दा नहीं होता
काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
ताज को छू के मौलवी तू कह
पत्थरों में ख़ुदा नहीं होता
झूठ ने फेंका है अणु बम जब से
पाँव पर सच खड़ा नहीं होता
शाम की लालिमा में ना फँसता
तो दिवाकर डुबा नहीं होता
लूट लेते हैं फूल को काँटे
आज दुनियाँ में क्या नहीं होता
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
acchi rachna ke liye badhai aapko..
काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
ye sher bahut pasand aayaa...
काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
बहुत ख़ूब !हासिल ए ग़ज़ल शेर है ये
धर्मेन्द्र भाई आप हर बार ही प्रभावित करते हैं, इस बार आपके 'ताज' और 'पेड़' वाले शे'र कलेजा चीर के निकालने वाले अल्फ़ाज़ हैं धर्मेन्द्र भाई| जय हो|
ताज को छू के मौलवी तू कह
पत्थरों में ख़ुदा नहीं होता
ye sher to hamesha yad rahega
aap ki puri gazal hi lajavab hai.
saader
rachana
विशेष कविता।
धर्मेंद्र सिंह जी बहुत अच्छा कहा
काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
बेतरतीब बढ़ जाता ..फ़ैल जाता तो कद यूँ बड़ा नहीं होता ...
काट दी जाती हैं झुकी डालें
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
वाह ...बहुत ही गहन भावों का समावेश इस रचना में ।
सुन्दर शेर लाजवाब ग़ज़ल....
उम्दा...सरल, सहज और अर्थपूर्ण...:)
ग़ज़ल / शे’र पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
dere se pdee aapkee kavitaa.par prashnsaa men deree nahee kr sakatee.bahut khub likhaa hai aapane-maniro men milataa khudaa agar ek bhee maykadaa naheen hotaa hai'gaagar men saagar bharatee hai ye aapkee kavitaa .badhaai sveekaaren.
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